जिस संस्कृति को आज हिन्दू के नाम से जाना जाता है वह कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं है, बल्कि जीवन की एक समग्र दृष्टि है
दुर्भाग्य यह रहा कि विदेशी शिक्षा, चिन्तन और साहित्य का प्रभाव भारत के बड़े-बड़े विचारकों पर पड़ा और वे हिन्दू को मजहब व रिलिजन के सापेक्ष वर्णित करने लगे।
लोग हिन्दू को उसके गुण-धर्म और वैशिष्ट्य के आधार पर नहीं बल्कि एक समुदाय के रूप में खड़ा करने की बात किए। बहुत से लोग तो यह भी कहने लगे कि हिन्दू की सात्विकता, साधना और चिन्तन ही उसके पराजय का कारण है। हिन्दू के महानतम चिन्तकों पर निष्क्रियतावाद का मिथ्या आरोप मढ़ा गया। साधना के मार्गों और पूजा पद्धतियों का उपहास उड़ाया गया, समय की बर्बादी कहा गया।
हिन्दुत्व को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना एक बहुत छोटी सोच है। हिन्दुत्व सृष्टि का विज्ञान है, जीवन की कला है, सत्य का अनुसंधान है और दो पैरों पर चलने वाले जीव को मानव बनाने का विधान है, जो वैदिक काल से आज तक चला आ रहा है। हिन्दू न किसी का प्रतिस्पर्धी है और न ही प्रतिद्वन्दी है, दुनिया में मनुष्य कहलाने योग्य जीवन का शुद्ध मार्ग है। जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह राजनीति में हिन्दुत्व की दृष्टि होनी चाहिए, न कि हिन्दुत्व में राजनीति की दृष्टि।
महामना मदन मोहन मालवीय ने राष्ट्र के नाम अपने अन्तिम संदेश में कहा था 'हमें हिन्दू के संरक्षण की चिन्ता केवल इसलिए नहीं है कि हिन्दू बचा रहे, बल्कि इसलिए है जब दुनिया के लोग अपने-अपने मार्गों से व्यथित होकर सत्य की तरफ बढ़ना चाहेंगे तब उन्हें मार्गदर्शन करने वाला होना चाहिए।"
हिन्दुत्व किसी पर वर्चस्व की स्थापना नहीं है, बल्कि मानव कहलाने के योग्य जीवन दृष्टि प्रदान करने का विज्ञान है। हिन्दुत्व वह है जो मानव रूपी जीव को जीव, जड़, जगत और जगदात्मा की अनुभूति और उसके साथ व्यवहार की कला सिखाता है।
-डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह