ऐसे परिवार शायद ही कोई मिलते हों जिसमें स्त्री पुरुष से बहुत श्रेष्ठ हो.. कैरियर में, शिक्षा में, व्यक्तित्व में.. और सब कुछ ठीक ठाक चलता हो। ऐसी जोड़ियां पहले तो बनती नहीं, अगर बनती हैं तो ऐसे परिवार अस्थिर होते हैं, अक्सर टूट कर बिखर जाते हैं। यदि विवाह के बाद स्त्री अप्रत्याशित प्रगति कर ले तो उसका पति को डम्प कर देना कोई आकस्मिक घटना नहीं होती।
इसके लिए ना तो मैं किसी की आलोचना कर रहा हूं ना कोई जजमेंट दे रहा हूं। बस, सामान्य मनःस्थिति का वर्णन कर रहा हूं। प्रकृति में पार्टनर चुनना फीमेल्स का प्रिविलेज है और वे यह प्रिविलेज प्रयोग करती हैं।
स्त्री आज सशक्त हो रही है, उसे अब पुरुष के सहारे की आवश्यकता नहीं है... इससे स्थिति बदल नहीं जाती। सशक्त स्त्री अपने से अधिक सशक्त पुरुष चुनेगी। ऐसा नहीं कि सशक्त स्त्री कोई सा भी पुरुष चुन लेगी। लड़की डीएम बन जाती है तो अपने कलीग को चुनती है, चपरासी को नहीं। डॉक्टर होती है तो अपने से अधिक सफल डॉक्टर को चुनती है, वार्ड बॉय को नहीं।
स्त्री ऐसा पार्टनर खोजती है जो उससे सुपीरियर हो, जो परिवार में प्रभुत्व की स्थिति में रह सके, जो उसे डोमिनेट करना डिजर्व करता हो। यदि पुरुष ऐसा नहीं होगा तो परिवार में समस्याएं होंगी। स्त्री उसका सम्मान नहीं कर सकेगी। सम्मान का अर्थ यहां सुबह उठकर पैर छूना, पैर धोकर पीना नहीं है... म्यूचुअल रिस्पेक्ट का वह मिनिमम लेवल जो परिवार के फंक्शन की शर्त है, वह टूट जायेगा। ऐसा पुरुष कुंठा में रहेगा, और अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए हिंसक और उग्र हो जायेगा। डोमेस्टिक एब्यूज उन परिवारों के सिम्पटम्स हैं जहां यह समीकरण सहज स्थापित नहीं होता। या तो पुरुष इस योग्य नहीं होता, या फिर स्त्री अपने डिल्यूशन में में इस स्थिति को प्राकृतिक स्थिति स्वीकार करने से इंकार कर देती है। और यदि पुरुष इस स्थिति को, परिवार में निचले पायदान पर होने को, विनम्रता से स्वीकार कर लेगा तो यह और बुरी स्थिति होगी.. ऐसा पुरुष स्त्री को ही स्वीकार्य नहीं होगा। वह खुद इस अप्राकृतिक स्थिति का बोझ उठाने में थक जायेगी।
महिलाएं... फेमिनिस्ट्स और ऐसी फेमिनिस्ट जिन्हें मालूम नहीं हैं कि वे फेमिनिस्ट हैं, यह प्रश्न कर सकती हैं कि क्या अपनी पुत्री को भी यही सलाह दूंगा कि वह परिवार में पुरुष का प्रभुत्व स्वीकार करे.. मेरा उत्तर है, मैं उसे ऐसा पुरुष चुनने की सलाह दूंगा जो इस योग्य हो कि वह उसका प्रभुत्व स्वीकार कर सके। मैं कहूंगा, आत्मनिर्भर बनो, सशक्त बनो... पर पुरुष ऐसा चुनो जो तुमसे अधिक सशक्त हो, जिसपर तुम निर्भर कर सको। ड्राइविंग सीखो जरूर, लेकिन जीवन पैसेंजर सीट पर शांति से बिता सको ऐसा पार्टनर चुनो।
क्योंकि रियलिटी ऑप्शनल नहीं होती। आज की स्त्री ऐसा सोचती है और वैसा सोचती है... यह रिटोरिक रियलिटी को जरा भी प्रभावित नहीं करता। आप अपनी मर्जी की रियलिटी इमेजिन कर सकते हैं...और फिर उसका परिणाम भुगत सकते हैं। ऐज ए पैरेंट मेरा काम सिर्फ अपनी बच्ची को गुड़िया रानी, एंजल और राजकुमारी बनाना नहीं है, उसको रियलिटी समझाना है। उसको गाइड करना है, पैंडर नहीं करना। प्रकृति प्रदत्त मनोविज्ञान के अनुसार आप क्या चाहते हैं, और आप जो सोचते हैं कि आप क्या चाहते हैं... के बीच एक संकरी पर गहरी खाई है और मेरा काम मुझे उस खाई से बचाना है ... ना कि बाद में उस खाई से उसके जीवन के टुकड़े चुनना।
डॉ राजीव मिश्रा