ये है सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व कारनामा...सुनकर हैरान हो जाएंगे आप।
पहले खुद सुप्रीम कोर्ट किसी मामले को सुनवाई योग्य मानकर नोटिस इश्यू करता है और फिर वही सुप्रीम कोर्ट कहता है की मामला सुनवाई योग्य नहीं.... क्या सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च न्यायिक संस्था द्वारा ऐसा कृत्य स्वीकार्य है? आखिर ऐसा बदलाव कैसे आ गया?
मामला क्या है?
अश्विनी उपाध्याय जी ने याचिका लगाई की हिंदू मंदिर सरकार के कब्जे में क्यों हैं जबकि अन्य पंथों के धार्मिक क्षेत्रों पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं।
इस याचिका को पहले स्वीकार किया गया और केंद्र समेत राज्य सरकारों को नोटिस भी दिया गया जिसमें आंध्र सरकार का रिप्लाई भी आया लेकिन बादमें इसी सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को अयोग्य बता दिया
ऐसा क्यों??? क्या कारण है? क्या कोई दबाव है या कुछ और..... क्या इससे सुप्रीम कोर्ट को विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाते....?
कैसे मानें की कानून सबके लिए समान है? कैसे मानें की संविधान सबके लिए समान है? जब संवैधानिक पदों पर कानून की रक्षा करने वाले ही ऐसा करेंगे तो जनता क्या सोचेगी???