जानिए स्वस्तिक का अनछुआ अनकहा रहस्य।
【1】नाग के फन के ऊपर एक नील रेखा होती है। उसे भी स्वस्तिक कहते हैं।
【2】हलायुद्धकोश में इसे धर्म के पवित्र 24 चिन्हों में एक विशेष माना है।
【3】घर या व्यापार स्थल पर स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहने से नजर, है, बाधा, वास्तु दोष नहीं लगता।
【4】स्वस्तिक के रहने से चारों दिशाओं से सकारात्मक प्रभाव एवं ऊर्जा उत्पन्न होती है।
【5】वेद में स्वस्तिक को चतुष्पद यानि चौराहा कहा है।
【6】स्वस्तिक धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थ का रक्षक भी है।
【7】भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान कौस्तुभ मणि स्वस्तिक आकार की है।
【8】स्वस्तिक एक प्रकार से सर्वतोभद्र मण्डल है, यानि चारो तरफ से समान है।
【9】ब्राह्मी लिपि की पध्दति से स्वस्तिक ही विध्नहर्ता गणपति हैं।
【10】प्रसिद्ध खोजकर्ता जार्ज वर्डउड़ ने स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना है। उन्होंने अपने संस्मरणों में लिखा है कि –
जितनी ऊर्जा सूर्य में स्वस्तिक में भी उतनी ही है। बस हम समझ या देख नहीं पाते। घर में या बने स्वस्तिक सर्वसम्पन्नता में सहायक है।
【11】वैदिक अनुशासन पर्व के मुताबिक यज्ञ आदि हवन क्रियाओं में अग्नि प्रज्वलित या उत्पन्न करने के लिए शमी वृक्ष की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। शमी काष्ठ से आग पैदा करने के लिए सबसे पहले स्वस्तिक वाचन और स्वस्तिक पूजन का विधान है अन्यथा अग्नि प्रकट नहीं होती। अज्ञानता के चलते यह वैदिक परंपरा बहुत लुप्त होती जा रही है। इसी वजह से लोगों को अनुष्ठान का फल तत्काल नहीं मिल पाता।
【12】तिब्बत के लामाओं के निवास स्थान एवं मंदिरों में स्वस्तिक अवश्य बना रहता है।
【13】सूर्य के रथ के पहिये, जिनमें धुरियाँ बनी हुई हैं-उनका प्रतीक स्वस्तिक है।
14】भारतीय स्वस्तिक बनाते समय दाएं से बाएं की तरफ ले जाते हैं और ईसाई स्वस्तिक बाएं से दाएं।
【15】स्वस्तिक में छह पंक्तियां हैं, जो सूर्य की मुख्य 6 रश्मियां हैं।
“षड्देवतात्मकम सूर्यरश्मित्वम”
सूर्य देव की 6 रश्मियों के नाम
★ दहनी-जलाने वालय
★ पचनी-पचाने वाली
★ धूम्रा-जलाने वाली
★ कर्षिणी-आकर्षण करने वाली
★ वर्षिणी- वर्षा करने वाली
★ रसा-पदार्थों में रस तथा स्वाद देने वाली
सूर्य की यह 6 रश्मियों को वेद में स्वस्तिक कहा है।
【16】षडवेह स्वरा मुख्या: कथिता मूलकारंणम के अनुसार मुख्य स्वर भी छह होते हैं। छह स्वर ही षड् देवता हैं, जिन्हें दक्षिण में मोरगन स्वामी यानि कार्तिकेय कहते हैैं, जो षडानन रूप में पूजित हैं, ये गणपति के ज्येष्ठ भ्राता भी हैं।
प्राचीन शास्त्रों में स्वस्तिक कैसे बनाएं इसका भी विधान बताया गया है।
स्वस्तिक के ऊपर की तरफ निकली किरणें चार दिशाओं की सूचक हैं।
दोनों तरफ 2-2 पंक्तियां यानि खड़ी लाइनें
रिद्धि-सिद्धि तथा दोनों पुत्र शुभ-लाभ का प्रतीक हैं।
स्वस्तिक के बीच में 4 बिन्दु 4 वेदों की घोतक हैं।