संस्कृत: दीपावलिः = दीप + आवलिः = पंक्ति, अर्थात् पंक्ति में रखे हुए दीपक शरदृतु (उत्तरी गोलार्ध) में -
प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक पौराणिक सनातन उत्सव है।यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।
दीपावली :-🚩🌺👏🏻🎁🍱
रंगीन पाउडर का प्रयोग कर रंगोली सजाना दीपावली में काफी प्रसिद्ध है
अन्य नाम
दीपावली
अनुयायी
हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध
धार्मिक निष्ठा, उत्सव
उत्सव
दिया जलना, घर की सजावट, खरीददारी, आतिशबाज़ी, पूजा, उपहार, दावत और मिठाइयाँ
आरम्भ
धनतेरस, दीपावली से दो दिन पहले
समापन
भैया दूज, दीपावली के दो दिन बाद
तिथि
कार्तिक माह की अमावस्या
समान पर्व
काली पूजा, दीपावली (जैन), बंदी छोड़ दिवस
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।
इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं।
जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैंतथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था।
श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी।
तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है और असत्य का नाश होता है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है।
कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है।
लोग दुकानों को भी स्वच्छ कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी स्वर्णिम झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब स्वच्छ और सजे दिखते हैं।
दीपावली के दिन नेपाल, भारत,श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और औस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश होता है।
दीपावली से जुड़ी पांच पौराणिक कथाएं...
दीपावली भारतीय पर्वों में सबसे प्रमुख पर्व है और वर्तमान में ही नहीं बल्कि युगों से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, जिसका प्रमाण इन कथाअों में मिलता है।
सतयुग की दीपावली -
सर्वप्रथम तो यह दीपावली सतयुग में ही मनाई गई। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इस महा अभियान से ही ऐरावत, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत घट लिए धन्वंतरि भी प्रकटे। इसी से तो स्वास्थ्य के आदिदेव धन्वंतरि की जयंती से दीपोत्सव का महापर्व आरंभ होता है।
त्रेतायुग की दीपावली -
त्रेतायुग भगवान श्रीराम के नाम से अधिक पहचाना जाता है। महाबलशाली राक्षसेन्द्र रावण को पराजित कर 14 वर्ष वनवास में बिताकर राम के अयोध्या आगमन पर सारी नगरी दीपमालिकाओं से सजाई गई और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।
द्वापर युग की दीपावली -
द्वापर युग श्रीकृष्ण का लीलायुग रहा और दीपावली में दो महत्वपूर्ण आयाम जुड़ गए। पहली घटना कृष्ण के बचपन की है। इंद्र पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का क्रांतिकारी निर्णय क्रियान्वित कर श्रीकृष्ण ने स्थानीय प्राकृतिक संपदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद किया और गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा बनी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता।
वैसे भी कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं। उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है।
द्वापर युग की दीपावली 2 -
दूसरी घटना कृष्ण के विवाहोपरांत की है। नरकासुर नामक राक्षस का वध एवं अपनी प्रिया सत्यभामा के लिए पारिजात वृक्ष लाने की घटना दीपोत्सव के एक दिन पूर्व अर्थात रूप चतुर्दशी से जुड़ी है। इसी से इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
अमावस्या के तीसरे दिन भाईदूज को इन्हीं श्रीकृष्ण ने अपनी बहिन द्रौपदी के आमंत्रण पर भोजन करना स्वीकार किया और बहन ने भाई से पूछा- क्या बनाऊं? क्या जीमोगे? तो जानते हो, कृष्ण ने मुस्कराकर कहा- बहन कल ही अन्नकूट में ढेरों पकवान खा-खाकर पेट भारी हो चला है इसलिए आज तो मैं खाऊंगा केवल खिचड़ी। हां, क्यों न हो, सारे संसार के स्वामी ने यही तो संदेश दिया था कि- तृप्ति भोजन से नहीं, भावों से होती है। प्रेम पकवान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
कलियुग की दीपावली -
वर्तमान कलियुग दीपावली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद के निर्वाण के साथ भी जोड़ता है। भारतीय ज्ञान और मनीषा के दैदीप्यमान अमरदीपों के रूप में स्मरण कर इनके पूर्व त्रिशलानंदन महावीर ने भी तो इसी पर्व को चुना था अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए। जिनकी दिव्य आभा आज भी संसार को आलोकित किए है प्रेम, अहिंसा और संयम के अद्भुत प्रतिमान के रूप में।
🌺जय सनातन धर्म 🚩🌺👏🏻🎁🍱