🙏🚩 लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात श्री राम जी जानकी जी लक्ष्मण जी और सभी वीर वानरों के साथ अयोध्या की और प्रस्थान🏹
जब लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात श्री राम जी जानकी जी लक्ष्मण जी और सभी वीर वानरों के साथ वापस अयोध्या की और आ रहे थे ।
तब रास्ते में श्री राम जी ने श्री जानकी जी को वह स्थान दिखाया।
जहां श्री लक्ष्मण जी ने मेघनाथ का वध किया था।
*कह रघुवीर देखु रन सीता।*
*लछिमन इहां हत्यो इन्द्रजीता।।*
वह स्थान भी श्री राम जी ने जानकी जी को दिखाया।
जहां पर हनुमान जी और अंगद जी ने राक्षसों को मारा था।
*हनुमान अंगद के मारे।*
*रन महि परे निशाचर भारे।।*
रावण कुंभकरण जिस स्थान पर मारे गए थे ।
वह रण क्षेत्र भी श्री राम जी ने जानकी जी को दिखाया।
*कुंभकरन रावन द्वौ भाई।*
*इंहा हते सुर मुनि दुखदाई।।*
श्री राम जी ने यहां यह नहीं कहा कि इस स्थान पर मैंने रावण कुम्भकरन को मारा था।
केवल यह कहा कि वह दोनों राक्षस भाई यहां मारे गए थे।
श्री सीता जी ने यहां राम जी से एक तरह से व्यंग्य करते हुए कहा।
प्रभु लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को मारा वह स्थान आपने मुझे दिखाया।
अंगद और हनुमान ने राक्षसों को मारा आपने वह स्थान मुझे दिखाया
किंतु आपने यह नहीं बताया कि आपने क्या किया?।
आपने भी तो कुछ किया होगा?
श्री राम जी ने कहा मैंने क्या किया,।
यह आगे चलकर बताता हूं।
कितना उदार चरित्र है, श्री राम जी का।
अपनी प्रशंसा अपने मुख से करना ही नहीं चाहते हैं।
रावण कुंभकर्ण जैसे महा विधर्मी राक्षस योद्धाओं को मारने के पश्चात भी भगवान यहां यह नहीं कह रहें हैं कि इन्हें मैंने मारा।
केवल इतना कहा कि यहां मारे गए हैं।
*इहां हते सुर मुनि दुखदाई।।*
श्री राम जी ने रामेश्वरम का वह स्थान श्री सीता जी को दिखाया। और कहा।
जानकी जी तुम मुझसे पूंछ रही थी मैंने क्या किया।
तो मैं तुम्हें बताता हूं
कि मैनै यहां भगवान शिव जी की स्थापना की है।
सेतु का निर्माण कराया है।
*इहां सेतु बांध्यो अरु।*
*थापेऊं शिव सुखधाम।।*
इस तरह कहते हुए श्री राम जी ने सीता जी सहित श्री महादेव जी को प्रणाम किया।
श्री राम जी सब ऋषि मुनियों के आश्रमो को प्रणाम करते हुए तीर्थराज प्रयाग में आए।
बनवास की अवधि में मात्र 14 घड़ी शेष रह गई थी।
श्री राम जी ने पुष्पक विमान से पूछा?
अयोध्या पहुंचने में कितना समय लगेगा ?
पुष्पक विमान ने कहा प्रभु कम से कम 16 घड़ी तो अवश्य लगेगी राम जी बड़ा पश्चाताप करने लगे तब तो मैं भरत जी को जीवित नहीं देख पाऊंगा।
उनसे मिल नहीं पाऊंगा।
क्योंकि 14 वर्ष की अवधि पूर्ण होने के पश्चात भरत देह का त्याग कर देंगे।
श्री राम जी को उदास व्याकुल देखकर हनुमान जी ने कहा।
प्रभु चिंता की कोई बात नहीं है। आपका यह भक्त हाजिर है।
केवल एक घड़ी में मैं त्रिलोक की खबर न ला दूं तो हनुमान को हनुमान न कहना।
आप निश्चिंत रहिए ।
आपके आगमन का शुभ समाचार मैं जाकर भरत जी को सुना देता हूं।
हनुमान जी के वचन सुनकर भगवान बड़े प्रसन्न हुए।
श्री राम जी ने हनुमानजी को हृदय से लगा लिया।
श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा हनुमान तुम जाओ अवश्य जाओ।
किंतु ऐसा ना हो मेरे समाचार सुनकर प्रसन्नता के कारण भरत जी की दशा बिगड़ जाए।
मैं भरत को जानता हूं।
इसलिए तुम वहां ब्राह्मण का वेश बनाकर जाना।
अपना रुप बदलकर जाना।
और बड़ी चतुराई से हमारे आगमन का समाचार सुनाना।
*प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई।*
*धरि बटु रुप अवधपुर जाई।।*
और समाचार सुनाकर शीघ्र आना।
हनुमान जी श्री राम जी को प्रणाम करके अयोध्या पुरी को गए।
इधर प्रयागराज में माता जानकी जी ने गंगा मैया का पूजन किया गंगा मैया के चरणों में प्रणाम किया।
उधर भरत जी की व्याकुलता बढ़ती जा रही है।
मन में विचार कर रहे हैं।
कि अब तो जीवन की इन प्राणों की अवधि का एक दिन शेष रह गया है ।
भगवान आए नहीं है।
कहीं भगवान ने मुझे कुटिल कामी जानकर भुला तो नहीं दिया।
संत कहते हैं।
राम जी से मिलन में हमारे पास भी एक दिन शेष है।
किंतु भरत जी के प्रेम में,
और हमारे प्रेम में अंतर है।
भरत जी अपने आप को कुटिल कामी मानते हैं।
और मानते ही नहीं स्वीकार भी करते हैं।
कुटिल कामी तो हम भी अपने आप को मानते हैं ।
किन्तु हम अपने आप को केवल अपनी सज्जनता सिद्ध करने के लिए मानते हैं।
हम लोगों को दिखाने के लिए अपने को कामी कुटिल मानते हैं।
ताकि लोग हमें सज्जन समझें साधु समझें।
हम कुटिल कामी हैं ,ऐसा स्वीकार नहीं करते हैं।
हम मंदिरों में जाते हैं।
बड़े प्रेम से आरती गाते हैं।
*मैं मूरख ख़ल कामी कृपा करो भर्ता ।*
आरती अवश्य गाते हैं ।
अपने आप को भगवान के समक्ष मूरख खल कामी कहते अवश्य है किंतु हम स्वीकार नहीं करते हैं ।आरती के तुरंत पश्चात यदि हमें कोई मूर्ख कह दे।
खल कामी कह दे।
तो हम तुरंत क्रोध करने लगते हैं।
किंतु भरत जी अपने आप को कुटिल कामी कहते ही नहीं है स्वीकार भी करते हैं।
संत का एक यही आदर्श है।
संत की यही पहचान है।
इसी कारण भगवान से मिलने का उन्हें संदेश आ जाता है ।
यदि यही स्थिति हमारी हो जाए अपने आप को कुटिल कामी सच्चे हृदय से स्वीकार कर लें
भगवान के विरह में नेत्रों से अश्रु धारा बहने लगे।
हमारे हृदय में भी यदि सदा एक रस रामजी की भक्ति स्थिर हो जाए तो भगवान से मिलन में हमें भी देर नहीं है।
हनुमान जी देखते हैं।
भरत जी राम जी के बिरह में मगन हो रहे हैं।
राम जी का सुमिरन हो रहा है। और नेत्रों से जलधारा बह रही है। राम जी के प्रेम में मगन होना यह बड़ा अलग विषय है।
राम जी के प्रेम में कभी कभार मग्न हो जाना अलग बात हैं।
तुलसीदास जी ने लिखा है।
मगन तो कुंभकरण भी हुआ था। किंतु रामजी के रूप का स्मरण करके एक क्षण के लिए मगन हुआ था।
*राम रुप गुण सुमिरत ,मगन भयऊं क्षण एक।।*
भगवान के प्रेम में क्षणिक मगन होना यह भावुकता है। भक्ति नहीं।
भरत जी राम जी के प्रेम में सदा मगन रहते हैं।
*भरत सुभाऊ सु सीतलताई।*
*सदा एक रस वरणि न जाई।।*
भगवान के प्रेम में सदा मगन रहना ही भक्ति हैं।
और भरत जी भगवान के प्रेम में सदा मगन रहते हैं।
इतने में ही हनुमान जी ब्राह्मण का रूप बनाकर समाचार लेकर भरत जी के समक्ष उपस्थित होते हैं ।
*राम विरह सागर मंह भरत मगन मन होत विप्र रुप धरि पवनसुत,आइ गयऊं जग पोत।।*
*इसके आगे का प्रसंग अगले पोस्ट में जय श्री राम।।*🙏🚩