इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शामिल अहमद का मानना है की - अगर आप बाइबल बाँटते हैं, अगर आप गाँव में लोगों (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय) को जमा कर सभा करते हैं, अगर आप बच्चों को पढ़ने के लिए कहते हैं, अगर आप लोगों को आपस में झगड़ने से मना करते हैं, अगर आप लोगों को शराब पीना से मना करते है तो ये सब धर्म परिवर्तन के लिए लालच नहीं और इसी मत के अनुशार धर्म परिवर्तन के 2 आरोपित जोस पापाचेन और शीजा को जज ने जमानत दे दी।
क्या वाकई यही कानून है और क्या एक जज के अपने मत को कानून मान लिया जाए क्या आरोपितों के इंटेंशन को नहीं देखना चाहिए? लगातार धर्मांतरण के अनगिनत मामले सामने आ रहे हैं उन्हें तो एक प्रशासन रोकने में असमर्थ है उल्टा अपराधियों को मनोबल देने जैसे कुछ निर्णय या बयान सामने आते हैं जो हिंदुओं के लिए वाकई चिंताजनक है। हिंदुओं को समझ लेना चाहिए कि उन्हें अपनी और अपने धर्म की सुरक्षा के लिए खुद ही तटस्थ होना होगा लोगों को धर्मांतरण से बचने के लिए उन्हें स्वधर्म का ज्ञान देना होगा और विधर्मियों की सच्चाई उनके सामने रखनी होगी बाकी कानून के भरोसे तो न जाने हम कब से बैठे ही हैं।
कल को किसी के द्वारा यह भी कहा जा सकता है की अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करके या धमकियां देकर मजहब कबूल करवाना भी कोई गुनाह नहीं है
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धर्म परिवर्तन के दोनों आरोपितों को जमानत देते हुए जज शमीम अहमद ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में केवल पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार का सदस्य ही एफआईआर दर्ज करवा सकता है। जबकि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के जिला मंत्री ने शिकायत दर्ज की थी।
उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 का उल्लेख करते हुए जज ने बताया:
“शिकायतकर्ता सत्ताधारी पार्टी का जिला मंत्री है। वो न तो पीड़ित व्यक्ति है, न ही उसका माता-पिता, भाई, बहन या कोई ऐसा व्यक्ति है, जो पीड़ित के साथ खून के रिश्ते में है, या विवाह अथवा गोद लिए हुए रिश्ते में है, इसलिए उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 की धारा 4 के तहत वो (शिकायतकर्ता) इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए भी सक्षम नहीं है।”
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले में 24 जनवरी 2023 को इस मामले में शिकायत दर्ज करवाई गई थी। पुलिस ने इसके बाद 2 आरोपितों जोस पापाचेन और शीजा को गिरफ्तार किया था। दोनों पर आरोप था कि ये गाँव में जाकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए लालच देते थे।
जेल में बंद दोनों आरोपित इससे पहले भी जमानत के लिए अदालत गए थे। इस साल मार्च में इन दोनों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत विशेष न्यायाधीश ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद ये लोग इलाहाबाद हाई कोर्ट गए, जहाँ जज शमीम अहमद ने दोनों पक्षों के वकीलों की बात सुन जमानत दी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में आरोपितों के वकील ने तर्क दिया कि ये दोनों केवल अच्छी शिक्षा के लिए प्रेरणा दे रहे थे, लोगों में बाइबल बाँट रहे थे, गाँव के लोगों को जमा कर सभा आयोजित कर रहे थे और ‘भंडारा’ करा रहे थे। वकील के अनुसार इन सारे कामों को धर्म परिवर्तन के लिए लालच नहीं कहा जा सकता है।
इस मामले में सरकारी पक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोपित उत्तर प्रदेश में ईसाई राज्य स्थापित करना चाहते थे। ये अन्य धर्मों के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए अनुचित प्रभाव से लोगों को लुभा रहे थे, गाँव वालों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे थे।
शिक्षा के नाम पर ईसाई बनाने का खेल नया नहीं
2-3 महीने पहले की ही घटना है। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में शिक्षा की आड़ में ईसाई धर्मांतरण हो रहा था। धर्म-परिवर्तन की साजिश वहाँ भी बच्चों को फ्री शिक्षा के बहाने की जा रही थी। फ्री में किताबें और पेंसिल के साथ-साथ ईसाई मत की किताबें भी बाँटी गई थी।
स्कूलों में ईसाई धर्मांतरण का खेल कैसे खेला जाता है, इस जाल में कैसे बच्चे और उनके परिवार वाले फँसते हैं, कैसे छात्र-छात्राओं को यौन शोषण के दलदल में फँसाया जाता है, ऐसे 15 मामलों की लिस्ट हमने पिछले साल बनाई थी। इस लिस्ट में भी सिर्फ वही मामले हैं, जो मीडिया में आ पाए। सच्चाई यह है कि न जाने कितने बच्चे-परिवार ऐसे हैं, जो लालच में आकर ईसाई बन भी गए और खो भी गए।