भगवान के अवतारों के मुख्यतः छःभेद है-:
1) पुरुषावतार-: महा विष्णु के अवतार रूप में यह संकर्षण के अंशावतार हैं जो अपने भ्रुकुटी विन्यास से प्रकृति कोविक्षुब्ध कर महतत्व आदि द्वारा इस प्रपंचात्मक विश्व की सृष्टि करते हैं।
2)गुणावतार-: जो सत्वगुण द्वारा विश्व के पालक विष्णुस्वरूप है उन्हीं के द्वारा रजोगुणात्मक सृष्टिकारक ब्रह्मा तथा तमोगुणात्मक सृष्टिसंघाहरक शिव की उत्पत्ति है.
3) मन्वंतरावतार यह 14 प्रकार के हैं।ब्रह्मा के 1 दिन में 14 मन्वंतर होते हैं प्रत्येक मन्वंतर में 1-1 अवतार होते हैं.
4) शक्त्यावेशावतार-: इसके आवेश, प्रभाव, वैभव तथा परावस्थ भेद है ईस में उत्तरोत्तर अधिक शक्ति एवं प्रकाशक रूप में अवतारों की श्रेष्ठता है.
5) युगावतार-: सत्य, त्रेता, द्वापर एवं कलयुग इन चार युगों में भगवान युगावतार रूप में अवतीर्ण होते हैं.
सतयुग में भगवान शुक्ल वर्ण जटा वक्कल वस्त्र धारी मृग चर्म यज्ञोपवीत अक्षमाला तथा दंड कमंडलु धारण कर अवतरित होते हैं
त्रेतायुग मे भगवान रक्त वर्ण चतुर्भुज त्रिगुण मेखला धारक सुनहरे केश त्रयी वेदात्मक रूप तथा स्त्रुक- स्त्रुवादि धारण कर अवतीर्ण होते हैं.द्वापरयुग में भगवान श्याम वर्ण पीतांबर धारी चक्र आदि आयुधो सहित कौस्तुभ आदि मणियों से अलंकृत होकर अवतीर्ण होते हैं
कलयुग में भगवान कृष्ण वर्ण होकर अपने पार्षदों के साथ अवतीर्ण होते हैं.
6)लीलावतार-: भगवान के श्री वामन वराह कूर्म धन्वंतरि आदि अनेक लीला अवतार है.
जो प्रतीक कल्प में एक बार अवतरित होते हैं इनकी अंशावतार रूप में परिगणना है राम और कृष्ण को पूर्ण लीला अवतार माना जाता है।