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🔏 लेखक : पंकज सनातनी
कहा जाता है कि मनुष्य को 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य योनि में जन्म मिलता है आखिर कौन सी हैं यह 84 लाख योनियां और कब मिलता मनुष्य योनि में जन्म। चलिए विस्तार से जानते हैं।
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित पद्म पुराण के अनुसार, यह माना गया है कि हर प्राणी को उसके कर्म के अनुसार ही अगला जन्म मिलता है। व्यक्ति के उच्च कर्म ही उसे इन जन्म चक्र से मुक्त कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। पद्म पुराण के एक श्लोक में 84 लाख योनियों का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार—
- 9 लाख योनियां जल में रहने वाले जीवों-जंतुओं की हैं।
- 10 लाख योनियां आकाश में उड़ने वाले पक्षियों की हैं।
- 30 लाख योनियां धरती पर रहने वाले जीवों-जंतुओं की हैं।
- 11 लाख योनियां कीड़े-मकोड़ों की हैं।
- 20 लाख योनियां पेड़-पौधों की हैं।
- बाकी 4 लाख योनियां मनुष्य की हैं।
मान्यता है कि 4 लाख बार आत्मा मनुष्य की योनि में ही जन्म लेती हैं। इसके बाद उसे पितृ या देव योनि प्राप्त होती है। यह सभी क्रम कर्मानुसार चलते हैं। जब आत्मा मनुष्य योनि में आकर नीच कर्म करने लगता है तो उसे पुन: नीचे की योनियों में जन्म मिलने लगता है, वेद-पुराणों में इसे दुर्गति कहा गया है। आत्मा को 52 अरब वर्ष एवं 84 लाख योनियों में भटकने के बाद यह मानव शरीर मिलता है। इसलिए मानव तन को दुर्लभ माना जाता है। क्योंकि इतनी योनियों में एक मनुष्य योनि ही है जिसमें विवेक जैसा दुर्लभ गुण पाया जाता है।
- 99% से अधिक लोगों का उद्देश्य मात्र श्रम करके पेट भरना व प्रजनन है।
- .9999% लोगों का उद्देश्य किसी भी प्रकार से (बुद्धि, ज्ञान, छल, कपट, हरण आदि के माध्यम से) धन-सम्पत्ति अर्जित करके विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करना है।
- .0009% लोगों का उद्देश्य शक्ति सम्पन्न बन कर अतिक्रमण करने का है।
- 1% या इससे भी न्यून मात्रा के लोगों का उद्देश्य स्वयं को जानने का है।
मनुष्य जन्म पूर्ण परमात्मा की असीम कृपा से मिलता हैं। इसी मनुष्य जन्म के लिए देव लोक के वासी भी तड़पते हैं क्योंकि इसी जन्म में तत्त्वदर्शी सतगुरु की शरण जा कर मोक्ष प्राप्त किया जाता है। किन्तु मनुष्य जन्म ले कर हर कोई अपने मूल उद्देश्य को भूल कर जन्म लेना, बचपन खेलना, स्कूल जाना, कालेज पढ़ना, नौकरी की चिंता फिर विवाह, बच्चे उसके बाद चिन्ता ही चिन्ता। क्या मनुष्य जन्म इसके लिए मिला है…? नहीं नहीं।
संसार में 84 लाख योनियां हैं, जिनमें ईश्वर जीव को मनुष्य योनि इस अभिप्राय से देता है कि वह विवेक द्वारा संसार के जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर परमब्रह्म में विलीन होकर मोक्ष प्राप्त कर लेगा। संसार के सभी जीवों में विवेक केवल मनुष्य को ही प्राप्त है, जिसके द्वारा वह अपने कर्मों पर नियंत्रण कर सकता है।
जीव की पहचान उसके कर्मों से होती है। मनुष्य संसार को अपनी इंद्रियों द्वारा अनुभव करता है। इंद्रियां अनुभव की हुई चेतना को व्यक्ति के मन तक पहुंचाती हैं। इसके बाद मन इंद्रिय तृप्ति के लिए उस वस्तु को कर्म द्वारा प्राप्त करने की कोशिश करता है। जब वह संबंधित वस्तु को प्राप्त करने में असफल होता है तब उसके अंदर क्रोध जागृत होता है, जिसके बाद उसका विवेक समाप्त हो जाता है। विवेक समाप्त होने पर उसका विनाश होना शुरू हो जाता है।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण जी ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि, यदि शरीर त्यागने से पूर्व कोई मनुष्य अपनी इंद्रियों के वेग को सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ हो जाता है तो वह संसार में सुखी रहकर अंत में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इंद्रियों के वेग को रोकने के लिए योग के जरिये मन तथा कर्म पर निरंतर संयम का अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार नियंत्रित मन शुभ और निष्काम कर्म की तरफ प्रेरित होता है। इसके बाद ही मनुष्य समाधि द्वारा अपनी चेतना को परम चेतना में विलीन कर सकता है, जिसे मोक्ष कहा जाता है।
जो लोग अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर शुभ कर्म करते हैं वे मानव जीवन के परम उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं और जो बुरे कर्मों में लिप्त रहते हैं वे 84 लाख योनियों के घेरे में फंसे रहते हैं। इसको देखते हुए ही मानस में कहा गया है —
'सुभ अरु अशुभ करम अनुहारी।'
'ईसु देइ फलु हृदयं बिचारी॥'
यानी शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार ईश्वर हृदय में विचारकर फल देता है, जो कर्म करता है, वही फल पाता है। यही वह मंत्र है, जिसे आत्मसात करके हम अपने जीवन को सुगम एवं सार्थक बना सकते हैं।
जब शिशु माँ के गर्भ में होता है तो वहाँ बहुत छोटी सी जगह होती है, शिशु करवट भी नहीं ले सकता ऐसी जगह होती है और रहता कहाँ है माँ के मल-मूत्र में, पूरे 9 महीने लिपटे हुए हर मनुष्य रहता है, वो भी उलटा लटका होता है।
मल-मूत्र में लिपटे पैसे वाला बनेगा बाद में! गरीब बनेगा बाद में! भाई साहब गर्भ में तो सब की दशा बराबर है और शिशु जब 2-3 महीने का होता है तो ये जो ऊपर का स्किन (पर्दा) है वो नहीं होता है सिर्फ मांस का लोथड़ा होता है। और जब माँ कुछ भी नमक-मिर्च खाती हैं तो सीधे बच्चे को लगता है सोचिए कितना दर्द होता होगा हमें जरा सा कटता है तो और वहाँ (गर्भ में) तो सारा कटे के बराबर है। जो शिशु नहीं सहन कर पाते हैं वो गर्भ में हीं समाप्त हो जाते है इतने कष्टों वाला है वो गर्भ।
जीव कहता है— भगवान मुझे इस नर्क से निकल दो।
भगवान कहते हैं— मैं तुझे निकाल दूंगा फिर तू मुझे क्या देगा…?
जीव कहता है— मैं आपको क्या दे सकता हूँ, मैं क्या देने लायक हूँ आपको।
भगवान कहते हैं— नहीं तू दे सकता है जब मैं तुझे मानव बना के भेजूं तो ऐसा काम करके आना जिससे तुझे दुबारा इस मृत्यु-लोक में ना आना पड़े। इसलिए मैं तुझे इंसान बना कर भेज रहा हूँ।
मानव कहता है— भगवान मैं जाऊंगा तो भूल जाऊंगा सब माया मुझे पकड़ लेगी।
भगवान कहते हैं— मैं तुझे याद दिला दूंगा चिंता मत करो।
अब आप पूछ सकते है कि भगवान ने आपको याद दिलाया हीं नहीं। मगर ये बात नहीं है कि आपको याद नहीं दिलाया। मैं जो आपको इस कथा के माध्यम से बता रहा हूँ ये भगवान ही के प्रेरणा से तो बता रहा हूँ। वैसे तुम इतने श्रेष्ठ नहीं हो कि साक्षात भगवान दर्शन दे, ये वेद-पुराण सब आपको यही याद दिलाते है। हम भगवान को दोष नहीं दे सकते की आप ने याद नहीं दिलाया।
अब हमने क्या किया ये याद करने वाली बात है।
क्या हमने भगवान से किया वादा पूरा किया…? भगवान का काम करने जायेंगे तो कंजूसी के साथ तथा पार्टी करने जायेंगे तो खुले हांथों से, जो काम नर्क में ले जाये वो ज्यादा और जो काम स्वर्ग में ले जाये वो काम बहुत कम करते हैं या कहूँ बिल्कुल नहीं करते क्योंकि हम आधुनिक (Modern) है।
किसी होटल को वेटर को ₹20 देना कम लगता है, जबकि उसे वेतन मिल रहा होता है और वहीं सड़क पर बैठे भिखारी को ₹20 देना बहुत ज्यादा लगता जबकि उसे असल में जरुरत है। जो काम भगवान के धाम में ले जाये वो काम नहीं करते और जो काम नर्क में ले जाये वही सबसे अधिक करते हो।
आपके पास पूजा-पाठ के लिए समय नहीं होता है मगर पार्टी, घूमने-फिरने, नौकरी पर जाने के लिए बहुत समय होता है। आप अपनी इतनी छोटी सी दुनियां में भगवान को भूल गए और भगवान जो जगत पिता हैं उन्होंने तुझे कभी नहीं भुलाया। वो हर पल तुझे याद करता रहा, क्यों…? आप ज्यादा महान हो इसलिये…? नहीं!
अगर चाहते हो न मेरे भाई-बहन की तुम्हारा कल्याण हो तो मानव जीवन का सदुपयोग करो इसे व्यर्थ ना जाने दो बल्कि अच्छे कामों में लगाओ, लोगों की निःस्वार्थ भाव से सेवा करो, सभी के प्रति दया करुणा प्रेम रखो। क्योंकि यही मानव जीवन का मूल उद्देश्य है।
🪷🪷।। राधे राधे ।।🪷🪷
✍️ साभार
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