हनुमान जी श्री सीता जी से कहते हैं ,, माता मैं श्री राम जी का दूत हनुमान हूं।
राम दूत मैं मातु जानकी।।
माता जानकी जी, हनुमान जी से पूछती है? कि नर और वानर का संग कैसे हुआ?
नर बानरहि संग कहु कैसे?।।
हनुमान जी नेत्रों में जल भरकर सारा प्रसंग श्री सीता जी को सुनाते हैं। माता सीता को मन में यह विश्वास हो जाता है। कि यह प्रभु श्री रामचंद्र जी का सेवक है।
कपि के वचन सप्रेम सुनि।
उपजा मन विश्वास।।
सीता जी नेत्रों में जल भरकर कहती हैं हनुमान,। रामजी ने मुझे भुला दिया है।
अहह नाथ हों निपट बिसारी।।
हनुमान जी कहते हैं नहीं माता राम जी ने तुम्हें नहीं भुलाया है। वह तो दिन रात आप ही का स्मरण करते रहते हैं।उनका प्रेम आपसे भी दूना है। राम जी आपके दुःख से दुःखी हैं।
तुम्ह ते प्रेमु राम के दूना।।
श्री सीता जी पूछती हैं ।तुम यह कैसे कह सकते हो कि उन्होंने मुझे नहीं भुलाया है?
हनुमान जी कहते हैं माता, आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि उन्होंने तुम्हें भुला दिया है?
सीता जी कहती हैं हनुमान ।इंद्र के पुत्र जयंत ने मेरे पांव में चौंच मारी थी। तो उसके पीछे प्रभु ने अपना वाण लगा दिया था।
और इस दुष्ट रावण ने मेरा हरण कर लिया। इसके बाद भी प्रभु ने अभी तक मेरी कोई खबर नहीं ली है। इसलिए मैं कहती हूं कि उन्होंने मुझे भुला दिया है।
हनुमान जी ने कहा माता,। जयंत के पीछे तो सीक का वाण लगाया था। प्रभु ने कोई अपना वाण नहीं लगाया था।
हो सकता है, प्रभु ने इस दुष्ट रावण के पीछे भी कोई वाण लगा रखा हो?
श्री सीता जी कहती हैं हनुमान यदि कोई वाण प्रभु ने लगाया होता तो दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?।
हनुमानजी कहते हैं माता वह वाण आपके सामने है।
प्रभु श्री राम जी ने मुझे ही रावण के पीछे वाण बनाकर लगा रखा है।
श्री जानकी जी प्रशन्न हो जाती हैं।
सीता जी ने हनुमान जी से कहा। हनुमान अच्छा हुआ तुमने मुझे यह बता दिया ।कि रावण के पीछे तुम वाण के रूप में लगे हो।
हनुमान जी ने कहा माता मेरे में इतना कहां सामर्थ्य है ।जो मैं आपको ज्ञात कराऊं ।
यह तो आप स्वयं भी जानती हो की रावण के पीछे प्रभु ने हनुमान रूपी वाण लगा रखा है। माता, तभी तो अभी कुछ समय पहले आप ने रावण से कहा था कि
खल सुधि नहिं रघुबीर बाण की।।
अरे दुष्ट रावण तुझे राम जी के वाण की खबर नहीं है। आप जान चुकी थी माता। कि हनुमान रूपी राम जी का वाण लंका में यहां आ चुका है
आपको यह ज्ञात था माता । सीता जी हनुमान जी की बातें सुनकर प्रसन्न होती है। हनुमान जी कहते हैं माता चिंता मत करो। प्रभु श्री राम जी लंका में अतिशीघ्र आएंगे। और हम सब भी उनके साथ रहेंगे। आपको अति शीघ्र यहां से लेकर जाएंगे। प्रभु राम जी की मुझे आज्ञा नहीं है ।नहीं तो मैं ही आपको यहां से ले जाता
अब आप प्रभु का संदेश सुनो।
संत बड़ी सुन्दर व्याख्या करते हैं।
हनुमान जी के हृदय में रामजी विराजमान हैं।
हनुमान जी तो केवल एक माध्यम है। सारी बातें स्वयं श्री राम जी श्री सीता जी से कह रहे हैं।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मन मोरा।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं।।
हनुमान जी के श्री मुख से यह शब्द श्री राम जी के है।
श्रीराम जी कह रहे हैं। है,प्रिये तेरे और मेरे प्रेम के इस रहस्य को केवल मेरा मन जानता है ।और वह मन सदा तुम्हारे पास रहता है।
प्रभु का यह संदेश सुनकर श्री सीता जी प्रशन्न होती है।
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही।
मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।।
आगे हनुमान जी कहते हैं माता धीरज रखिए।
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुवीरा।।
श्री सीता जी हनुमान जी से पूछती है हनुमान ।क्या राम जी की सेना में सभी वानर तुम्हारे जैसे ही हैं? यहां के राक्षस तो बहुत बलवान है।
है
सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना।।
श्री सीता जी कहती हैं मेरे हृदय में संसय है ।तुम इन पर कैसे विजय प्राप्त कर पाओगे?
मोरे ह्रदय परम संदेहा।।
हनुमान जी ने कहा नहीं माता ।मैं तो सब में बहुत बड़ा हूं ।बाकी तो सब मुझसे छोटे हैं ।श्री सीता जी हनुमान जी के इस छोटे से रूप को देखकर आश्चर्य करती है। कि जब राम जी की सेना में इतने छोटे-छोटे वानर है। तो इन राक्षसों पर कैसे विजय पाएंगे ?श्री सीता जी को चिंतित देखकर हनुमान जी ने कहा माता आप मुझे इतना छोटा मत समझिए। ऐसा कहकर हनुमान जी ने अपना विराट रूप श्री जानकी जी के समक्ष प्रस्तुत किया।
सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।
श्री सीता जी जिन हनुमान जी को नीचे गर्दन करके देख रही थी। अब उन्ही हनुमान जी को ऊपर गर्दन करके देख रही हैं ।क्योंकि हनुमान जी ने अपना विशाल रूप बना लिया था।
कनक भूधरा कार शरीरा।।
सीता जी को विश्वास हो गया ।
सीता मन भरोस तब भयऊ।।
हनुमान जी पुनः अपने छोटे रुप में आ गए।
माता जानकी जी हनुमान जी को अजर अमर होने का वरदान देती है।
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
सीता जी कहती हैं हनुमान। जब तुम्हारा विशाल रूप है , तो फिर तुम इतने छोटे बनकर क्यों आए?हनुमान जी ने कहा माता पुत्र चाहे कितना ही बड़ा हो। माता के सामने तो छोटा ही होता है।
श्री सीता जी हनुमान जी को पुत्र कहकर संबोधित करती हैं। हनुमान जी कहते हैं माता ।अभी तक मैं राम जी का सेवक था। किंतु आपने मुझे पुत्र कहा है। तो मैं अब आपका पुत्र बन गया हूं।
अब कृतकृत्य भयऊं मैं माता।।
आज से मैं श्री सीताराम जी का सुत कहाऊंगा। आज मेरा नया जन्म हुआ है। और मेरा यह स्वभाव रहा है माता। कि जब भी मेरा जन्म होता है। तो मुझे जन्म लेते से ही भूख लगती है।
आज मुझे भूख लग रही है।
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।।
आपकी आज्ञा हो तो इस बाग के सुंदर फलों से मैं अपनी भूख को शांत कर लूं?
श्री सीता जी ने कहा हनुमान यहां बहुत विकट राक्षस रहते हैं ।तुम उनकी उपस्थिति में कैसे फल खा पाओगे?
सुनु सुत करहि बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी।।
हनुमान जी ने कहा माता आप इसकी चिंता मत कीजिए।
तिन्ह कर भय माता मोहि नाही।।
आप तो केवल मुझे आज्ञा दीजिए। श्री जानकी जी हनुमान जी को फल खाने की आज्ञा देती है ।
*देखि बुद्धि बल निपुन कपि।*
*कहेऊ जानकी जाहु ।*
*रघुपति चरन हृदय धरि,*
*तात मधुर फ़ल खाहु।।*
*इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में 🚩🙏जय श्री राम।।*