हनुमान जी पूरी रात लंका में श्री जानकी जी की खौज करते रहे, किंतु कहीं पता नहीं लगा।
प्रातः काल की बेला में वह विभीषण जी के भवन की और गए ।वहां जाकर देखा कि विभीषण जी के घर में राम जी का एक अलग ही मंदिर बना है।
*हरि मंदिर तहां भिन्न बनावा।।*
आंगन में तुलसी का पौधा लगा है । घर पर राम नाम अंकित है यह देख कर हनुमान जी प्रश़न्न हुए।
*रामायुध अंकित गृह,*
*सोभा बरनि न जाइ।*
*नव तुलिसिका बृंद तंह,*
*देखि हरष कपिराइ।।*
हनुमान जी को लगा कि यह कोई हरि भक्त का घर है। मन में बड़े प्रसन्न हुए। विचार किया इनसे परिचय करना चाहिए।
वैसे तो लंका में राम नाम का सुमिरन करने वाले पर बड़ा प्रतिबंध था। रावण उसे लंका से निकाल देता था। किंतु रावण विभीषण जी को कभी कुछ नहीं कहता था। विभीषण जी को राम नाम लेने में भक्ति करने में कभी रोकता टोकता नहीं था। क्योंकि रावण विद्वान था। वह जानता था। पिछले जन्म में जब उसने हिरण्यकश्यप होकर उसी के बेटे भक्त प्रहलाद को सताया था।तब भगवान ने तुरंत खंभे से नरसिंह रूप लेकर प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था। इसलिए रावण जानता था। यह हरि भक्त है । प्रहलाद मेरा बेटा था ,और यह विभीषण मेरा भाई है। ज्यादा अन्तर नहीं है।इसे सताना ठीक नहीं है। पता नहीं इसको सताने से भगवान कब प्रकट होकर मेरा अंत कर दे। इसलिए रावण विभीषण जी को कुछ नहीं कहता था। और विभीषण जी भी मन में यही सोचते थे ।कि रावण चाहे लाख बुरा हो ।किंतु मेरे लिए तो अच्छा है ।हनुमान जी जब विभीषण के भवन के पास पहुंचे ।और जब यह सब देखा तभी विभीषण जी जागे ।और राम नाम का उच्चारण किया।
*राम राम तेंहि सुमिरन कीन्हा।*
*हृदय हरषि कपि सज्जन चीन्हा।।*
हनुमान जी को पूर्ण विश्वास हो गया ।यह कोई हरि भक्त हैं। कोई सज्जन है। तुलसीदास जी सज्जन की परिभाषा बताते हैं।जो राम राम कहे उसे सज्जन समझना चाहिए।हनुमान जी ब्राह्मण के रूप में उनके द्वार पर आए और बोले।
*विप्र रुप धरि बचन सुनाए।।*
विभीषण जी ने हनुमान जी को देखा और पूछा आप कौन हो?। मुझे लगता है आप भगवान हरि के भक्त हो?
की *तुम्ह हरि दासन्ह मंह कोई?*
हनुमान जी ने कहा नहीं नहीं मैं भक्त नहीं हूं । विभीषण जी तुरंत बोले ।यदि आप भक्त नहीं हो तो फिर निश्चित आप भगवान हो । मुझे दर्शन देने मेरे द्वार तक आए हैं।
की *तुम्ह रामु दीन हितकारी।*
*आयहु मोहि करन बडभागी।।*
हनुमान जी ने कहा मैं भगवान नहीं हूं ।मैं तो एक वानर हूं। हनुमान जी ने सारी रामकथा विभीषण जी को सुनाई ।
*तब हनुमंत कहीं सब,*
*रामकथा निज नाम।*
विभीषण जी ने हनुमान जी का जब परिचय जाना तो हृदय प्रेम से भर गया ।भगवान के भक्त हनुमान जी के प्रति ऐसा भाव आया कि पहले तो विभीषण जी राम-राम कह रहे थे ।फिर हनुमान जी का नाम जपने लगे। हनुमान जी को लगा यह तो ठीक नहीं हुआ। विभीषण जी ने तो राम जी का नाम ही लेना बंद कर दिया। मेरा नाम रटने लगे है। तब हनुमान जी ने विभीषण जी से कहा ।आप नाम राम जी का ही जपो। उन्हीं का भजन करो। मेरे नाम मैं आशक्त मत होइए। मैं तो एक अधम वानर हूं ।जिसका कोई प्रातः काल यदि नाम भी ले लेता है। तो दिन भर उसे भोजन नहीं मिलता है।
*प्रात लेइ जो नाम हमारा।*
*तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।*
संत कहते हैं यह हनुमानजी की महानता है। कि अपने आप को इतना तुच्छ बताते हैं ।और सभी को यही प्रेरणा करते हैं कि भगवान राम का ही भजन करो।
मेरे नाम का सुमिरन मत करो।
रामजी के नाम का ही सुमिरन करो ।एक सज्जन एक महात्मा जी से पूछने लगे। कि रामायण में ऐसा लिखा हुआ है कि प्रातः काल हनुमान जी का नाम ले लो तो दिन भर भोजन नहीं मिलता है? क्या यह सही है? आपका क्या अनुभव है? महात्मा जी ने कहा किसी दिन लेकर देख लेना। पता चल जाएगा। वह सज्जन बोला नहीं महात्मा जी आप अपना अनुभव बताओ? महात्मा जी ने कहा मेरा अनुभव तो यह है कि मुझे तो हनुमान जी का नाम लेने से ही भोजन मिलता है। और प्रिय मित्र इतना तो जानो। रामायण में हनुमान जी का नाम लेने से नहीं लिखा है ।वानर शब्द कपि लिखा है ।इस पर भी विचार करना चाहिए। और यह तो हनुमान जी की महानता है। तुलसीदास जी इस चौपाई के माध्यम से हमें अवगत कराते हैं कि हनुमान जी कितने महान है। वह प्रत्येक राम भक्तों को यह प्रेरणा देते हैं कि नाम श्री हरि भगवान श्रीराम का ही लेना है।
अपने आप को हनुमान जी महाराज बहुत तुच्छ बताते हुए कहते हैं।भाई मैं कौनसे बहुत अच्छे कुल का हूं ।मैं तो एक चंचल वानर और सब तरह से बहुत हींन हूं।
*कहंहु कवन में परम कुलीना।*
*कपि चंचल सबहिं बिधि हीना।*
विभीषण जी की हनुमान जी की वार्ता होती है। विभीषण जी बताते हैं भाई मैं यहां निशाचर के बीच रहता हूं ।और उसी तरह रहता हूं। जिस तरह 32 दांतो के बीच में जीभ रहती है । क्या प्रभु श्री राम जी मुझ अनाथ पर दया करेंगें?
*तात कबहुं मोहि जानि अनाथा।*
*करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।।*
मुझ पर बड़ा संकट है। हनुमान जी ने कहा निश्चिंत रहो। अवश्य राम जी कृपा करेंगे।जीभ तो जन्म से आई है। और दांत तो बाद में आए हैं ।
आप जीभ की महत्ता को समझो।
अपने आप को समझो।जिस दिन तुम्हारी इस जीभ ने इन दातों की शिकायत कर दी । उसी दिन यह सब साफ हो जाएंगे।
भगवान श्री राम जी लंका में आने वाले हैं ।बस श्री राम जी से केवल इतना कहने की देर है,कि यह दांत यह राक्षस मुझे परेशान कर रहे हैं। तब श्री राम जी इन दांतों का राक्षसों का इलाज कर देंगे। नाश कर देंगे। फिर केवल जीभ का ही राज रहेगा। जीभ स्वतंत्र हो जाएगी। इसी तरह लंका में इन निशाचरो का नाश होगा। और तुम्हारा राज्य होगा। विभीषण जी हनुमान जी से पूछते हैं? कि क्या मुझे प्रभु श्री राम जी का दर्शन होगा?। मेरी एक ही अभिलाषा है। राम जी के दर्शन की। हनुमान जी ने कहा क्यों नहीं होगा। जब मुझ जैसे अधम वानर को उन्होंने अपना दास बना लिया है ।तो तुम तो उनके भक्त हो ।वह अवश्य तुम्हें दर्शन देंगे ।हनुमान जी इस तरह राम जी की दयालुता का वर्णन करते है। नेत्रों में प्रेमाश्रु आ जाते हैं।
*अस मे अधम सखा सुनु,*
*मोहू पर रघुबीर,*
*किन्हीं कृपा सुमिरि गुन,*
*भरे बिलोचन नीर।।*
हनुमान जी विभीषण जी से कहते हैं कि,
मैंने श्री राम जी के दर्शन किए हैं। और तुमने श्री सीता जी के दर्शन किए हैं ।बस अब मैं यह चाहता हूं कि तुम मुझे श्री जानकी जी के दर्शन करा दो ।तो मैं तुम्हें श्री राम जी के दर्शन करा दूंगा ।
विभीषण जी ने कहा कि मैं रावण के भय के कारण आपके साथ तो नहीं चल सकता। किन्तु श्री जानकी जी तक जाने कि तुम्हें युक्ति बता देता हूं। वह अशोक वाटिका में है। हनुमान जी ने कहा ठीक है। मुझे युक्ति बता दो मैं चला जाऊंगा।
*पुनि सब कथा बिभीषन कही।*
*जेहि बिधि जनक सुता तंह रही।।*
विभीषण जी ने श्री सीता जी के दर्शन की सारी युक्ति हनुमान जी को बताई।हनुमान जी महाराज विभीषण जी को प्रणाम करके अशोक वाटिका की ओर चले।
*यह प्रसंग अगली पोस्ट में।🏹 जय श्री राम।।*