ये उन कांग्रेसियो के मुँह पर तमाचा है जो बोलते है अंग्रेजो से आज़ादी हमारे बाप दादाओ ने दिलाई थी।
देश जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद कर रहा है, तो यह जानना जरूरी है कि उन्होंने किन संघर्षो के बीच भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। उनके सामने सबसे बड़ा संघर्ष तो 'अपनों' यानी भारतीय नेताओं से ही निपटने का था। ये लोग सुभाषचंद्र बोस का मुखर विरोध करते थे। इन्हीं विरोधियों में जवाहरलाल नेहरू भी थे, जो बाद में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
आचार्य श्रीकृष्ण सरल ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की बहुचर्चित जीवनी 'कालजयी सुभाष' के पृष्ठ नंबर 507 पर स्पष्ट लिखा है-
'अंग्रेजों के मिथ्या प्रचार के फलस्वरूप कांग्रेस के कुछ क्षेत्रों में नेताजी के कार्यों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा था। पता नहीं यह अंग्रेजों के प्रभाव का प्रचार था या व्यक्तिगत ईष्यों का प्रदर्शन कि जवाहरलाल नेहरू ने ऐसे भाव व्यक्त किए थे। यदि सुभाषचंद्र बोस जापान को साथ लेकर भारत पर चढ़कर आते हैं तो मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो उनके विरुद्ध युद्ध करेगा।'
यह बात तब कही गई थी, जब भारत को आजाद करने के लिए नेताजी द्वारा बनाई गई आजाद हिंद फौज को पूरे भारत में जनसमर्थन मिल रहा था। लोग चाहते थे कि नेताजी जापान, सिंगापुर, जर्मनी या अन्य देशों के समर्थन से भारत की आजादी के प्रयत्न करें। जन सामान्य तो तब इतना उत्साहित था कि यदि नेताजी की सेना अंग्रेजों पर आक्रमण करेगी, तो लोग उन्हें देश में रहकर हर तरह से समर्थन देंगे।