2013 में जब कांग्रेस ने समझ लिया कि अब वो हारेगी तो उसी के साथ उसने अफसरों को बदलना शुरू कर दिया। हर राज्य में कांग्रेस के अनुरूप राज्यपाल बैठे थे, जज बदले जा चुके थे। बीजेपी का स्वागत कांग्रेस की टीम बी कर रही थी।
आपको याद होगा महिला आयोग हर कभी एक्टिवेट हो जाता था, बॉलीवुड में अलग ही लॉबी बैठी थी, जेएनयू में देश विरोधी नारे लग रहे थे और सुप्रीम कोर्ट हर बात पर अड़ंगे लगाता था।
इसलिए 2018 तक बीजेपी के हाथ बंधे रहे लेकिन जैसे ही इन सबके कार्यकाल पूरे हुए बीजेपी ने खुद का सिस्टम बनाना शुरू किया। आज हर राज्य में गवर्नर बीजेपी के अनुरूप है, सुप्रीम कोर्ट अब वही घुसता है जहाँ कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव हो।
जेएनयू में जब से डीन बदले स्थिति ही बदल गयी। मणिपुर मामले में कितने महिला संगठन बाहर आये? सोचिए 2015 के आसपास ऐसा होता तो कितने आते?
इसीलिए हर समझदार व्यक्ति उस समय बोल रहा था कि परिवर्तन रातों रात नही आ जायेगा। फिलहाल अब आ चुका है, इसी लॉबी में एक व्यक्ति गवर्नर होता है कहा जाता है राज्य में सरकार कोई भी बना ले मगर गवर्नर केंद्र सरकार के हिसाब से चलता है।
हर जगह सरकार और गवर्नर आपस मे लड़ते है लेकिन सिर्फ दिल्ली है जहाँ विवाद गरमाया करते थे। इनका केस सुप्रीम कोर्ट तक चला गया।
दिल्ली में गवर्नर की जगह लेफ्टिनेंट गवर्नर का पद होता है, वर्तमान में वीके सक्सेना दिल्ली के LG है। जब से ये LG बने अरविंद केजरीवाल को आँखों में चुभ रहे है। वैसे अरविंद केजरीवाल 3 गवर्नरों के साथ काम कर चुका है और इसे सभी से दिक्कतें आती है।
समस्या ये है कि वादे इतने बड़े कर लिये है कि अब पूरे नही हो रहे है तो दोषारोपण किस पर करे? हर गवर्नर इसे आत्मघाती निर्णय लेने से रोक देता है। इसने सुप्रीम कोर्ट का द्वार खुलवाया तो निर्णय पक्ष में आया लेकिन बीजेपी ने दिल्ली सेवा बिल लाकर अब सक्सेना को दिल्ली का बेताज बादशाह बना दिया।
अरविंद केजरीवाल ने जितने बड़े वादे किये थे वे आज तक पूरे नही हुए, मुहल्ला क्लीनिक आज भी बेहाल है, फ्री बिजली पर सरकार हार चुकी है। शिक्षा का स्तर जरूर सुधरा है लेकिन जिन्हें थोड़ी भी जानकारी है तो पता होगा कि दिल्ली में स्कूल शिक्षा हमेशा से बहुत अच्छी रही है।
जब अन्य राज्यो में स्कूल खुलते है तो केजरीवाल प्रचार करता है कि उन स्कूलो के बाहर गरीब बैठा होगा, वही जब खुद स्कूल बनवाता है तो स्कूल की कीमत बराबर का खर्चा विज्ञापनों में करता है। फिर बाद में LG पर ही आरोप लगाता है कि ये उसकी जांच करवा रहे है।
तू तू मैं मैं करते करते केजरीवाल ने 10 साल बर्बाद कर दिये। लोकपाल आज तक नही आया, भ्रष्टाचार ज्यो का त्यों है। 2025 में बहुत कम संभावना है कि जनता केजरीवाल को फिर से चुने। जीत भी जाये तो अब शक्तियां तो सारी चली ही गयी और सक्सेना 2028 तक तो दिल्ली से कही नही जा रहे।
हालांकि सक्सेना मंझे हुए खिलाड़ी है अमित शाह के करीबी है, जब से आये है आम आदमी पार्टी के कई नेता जेल में ही बैठे है। सक्सेना के कारण ही केजरीवाल के सारे घोटाले सामने आए।
वैसे ये जनता के लिये अच्छा सबक है अब सोचिए कि जिस नेता को आप नायक फ़िल्म का अनिल कपूर समझ रहे थे वो अमरीश पुरी के साथ ही गठबंधन किये बैठा है। कही ऐसा तो नही है कि इस तरह के लोग एक्सपेरिमेंटल पॉलिटिक्स की आड़ में सत्ता प्राप्ति के बाद देश को ही बेच देंगे।
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश था और इसे वीके सक्सेना जैसे गवर्नर मिलते रहे इसलिए केजरीवाल रूपी दीमक से इसे रत्ती भर भी नुकसान नही हुआ लेकिन अन्य राज्यो में ये दीमक ना घुसे इसका ध्यान रखना होगा। राजनीति में एक्सपेरिमेंट नही होना चाहिए, किसी दिन लेने के देने पड़ सकते है।
✍️ परख सक्सेना ✍️