स्वतंत्रता दिवस आदि मौक़ों पर इंडिपेंडेंट रिपब्लिक ऑफ़ फ़ेसबुक के नागरिक दो तरह के हो जाते हैं। एक वो जो ये खोजता है कि 'आज़ादी कहाँ है, किसे मिल गई' और दूसरा बड़े ही गर्व से ये कहते हुए कि 'जहाँ तक पहुँचे हैं वो एक बड़ी सफलता है' तिरंगे की तस्वीरें लगाता है।
मैं दोनों के समर्थन में हूँ। हाँ, कुछ साल पहले के मेरे पोस्ट उठाएँगे तो आपको मेरी नकारात्मक सोच भी मिल जाएगी। मैंने भी ये सवाल उठाए कि कैसी आज़ादी, कैसा लोकतंत्र। उस टाइम वही सही लगा था। मेरी समझ उतनी ही थी। साल दो साल पहले तक मैं न्यूट्रल सा रहा करता था। झंडे का सम्मान करेंगे लेकिन बहुत ख़ुश नहीं होंगे।
मैं दोनों के समर्थन में हूँ। हाँ, कुछ साल पहले के मेरे पोस्ट उठाएँगे तो आपको मेरी नकारात्मक सोच भी मिल जाएगी। मैंने भी ये सवाल उठाए कि कैसी आज़ादी, कैसा लोकतंत्र। उस टाइम वही सही लगा था। मेरी समझ उतनी ही थी। साल दो साल पहले तक मैं न्यूट्रल सा रहा करता था। झंडे का सम्मान करेंगे लेकिन बहुत ख़ुश नहीं होंगे।
आज़ादी तो है। आज़ादी है कि आप 'केरल को चाहिए आज़ादी' का नारा लगा सकते हैं और एक अख़बार ये लिख सकता है कि 'दे हेंग्ड याकूब'। आजादी तो है कि आप नौसेना द्वारा मार गिराए नाव को, बिना किसी तथ्य के, 'मासूम पाकिस्तानी मछुआरों की हत्या' कह सकते हैं। आज़ादी तो इतनी है कि पूछिए मत।
हाँ सबकी परिभाषाएँ अलग हैं आज़ादी को लेकर। आज़ादी आखिर है क्या? एक सामान्य आदमी के लिए इसके क्या मायने हैं? सबसे निचले तबके के सबसे निरीह भारतीय के लिए आज़ादी का क्या मतलब है? क्या सबसे अमीर और सबसे ग़रीब, सबसे अनपढ़ और सबसे बड़े विश्वविद्यालय से पढ़े नवयुवक, सबसे अनभिज्ञ और सबसे समझदार, एक पुरुष और एक स्त्री, एक भ्रुण और अस्सी-सौ साल के बुज़ुर्ग, के लिए आज़ादी के मायने एक हैं?
आज़ादी कोई छूने वाली चीज़ नहीं है। आज़ाद आप होते हैं, किए नहीं जा सकते। आप अपनी आज़ादी के लिए प्रयत्न करते हैं। वैयक्तिक आज़ादी की भावना सामाजिक आज़ादी की नींव है। आज़ादी एक तरह के सुरक्षा की भावना देता है। आज़ादी का मतलब है आप सोचने को स्वतंत्र हैं, बोलने को स्वतंत्र हैं, आप आलोचना के लिए स्वतंत्र हैं, और आप अपनी बेहतरी की इच्छा रखने हेतु स्वतंत्र हैं।
कई जगहों पर ये आज़ादी नहीं है। भारत में है। समुचित तौर पर है या नहीं, ये चर्चा की बात है। लेकिन निराशावादी होने से पहले ये भी देखना ज़रूरी है कि इन सत्तर सालों में हमने कितनी सीढ़ियाँ पार कर ली हैं। कई और सीढ़ियाँ चढ़नी जरूर हैं, हम कहीं पहुँचे नहीं हैं। हमने चलना शुरू किया है। समाज व्यक्ति से बनता है और हर व्यक्ति को अपनी ज़िम्मेदारी लेनी होगी आज़ादी के प्रति
सरकार भ्रूण हत्या पर क़ानून बना सकती है। पुलिस या अदालत बलात्कारियों को सज़ा दे सकती है। सरकार LGBTQ को उनके अधिकार क़ानूनन दे सकती है। सरकारें स्वच्छ भारत चला सकती है। सरकारें स्कूल और अस्पताल खुलवा सकती है। लेकिन इनको सफल बनाने के लिए समाज को भी भागीदारी देनी होगी। जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, वो भ्रुण हत्या करेगा, घर में ही बलात्कार होंगे, वो सड़कों पर कूड़े फेंकेगा, वो प्याज़ इकट्ठा करके महँगाई बढ़ाएगा...
तरह तरह के भेदभाव से जूझ रहे हैं हम। लड़कियों की हालत बुरी है। गर्भ में हत्या, पढ़ने पर रोक, उनके कपड़े पहनने पर पाबंदियाँ, शादी के बाद नौकरी पर रोक, आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी नहीं, ये सब आम है। आप कोई भी योजना बना लें, अगर उसके केंद्र में लड़कियों की आत्मनिर्भरता, उनकी शिक्षा, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है तो फिर समाज को सुधरने में दोगुना समय लगेगा
मुझे कई शिकायतें हैं देश से, सरकार से, समाज से। लेकिन मैं इस स्थिति में नहीं कि मैं ये कह सकूँ कि मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक हूँ। मैं चलान नहीं देना चाहता। मैं ब्लैक में सिलिंडर लेता हूँ। मैं कई बार स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की बजाय विदेशी वस्तुएँ ख़रीदता हूँ। मुझमें कई ख़ामियाँ हैं। मैं इन पर काम कर रहा हूँ। सबको करना चाहिए।
लेकिन फिर भी ये संविधान मुझे सवाल करने की आज़ादी देता है। मुझे इस की उन्नति का हिस्सा बनने का मौका देता है। ये संविधान मुझे मेरी ज़िम्मेदारियों से अवगत कराता रहता है। यही कारण है कि मैं पढ़ पाया, कुछ कर पाया अपने लिए। और यही भावना मुझे अपने समाज के लिए भी कुछ प्रेरित करने को कहती है, जो हम सबको करना चाहिए।
आज़ादी देश से ज्यादा आपकी अपनी है। आप अपने घर में आज़ादी लाइए, ज़िम्मेदार बनिए तब आप सवाल पूछेंगे तो आपको ग्लानि नहीं होगी। सड़क पर चलते हुए थूकने वालों को और पानी पीकर बोतल फेंकने वालों को आज़ादी मिलनी भी नहीं चाहिए। गर्भ में बेटी को मारने वालों को, और घर में पत्नी पर चिल्लाने वालों को आज़ादी मिलनी भी नहीं चाहिए। जिसने खुद को नहीं सुधारा हो, जो एक नागरिक की ज़िम्मेदारियाँ नहीं उठा सकता, उसे अधिकारों की बात धीमे स्वर में करनी चाहिए।
मैं आज़ादी की तरफ चल रहा हूँ। देश भी चल रहा है। आप भी चलिए, ज़िम्मेदार नागरिक बनिए। देश के बदलने की रफ़्तार तेज हो जाएगी।
साभार - अजीत भारती जी 👇ट्विटर पोस्ट
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