भारत चंद्रमा पर लैंडिंग कर चुका है. अब इसके बाद क्या? इसका उत्तर अमेरिकन मिशन हैं. चंद्रमा पर पहली लैंडिंग 1969 में हुई. इसके बाद कई बार चंद्रमा पर लैंड किए, फिर छः बार मनुष्य भेजे. पर कितना चंद्रमा चंद्रमा करेंगे. आगे भी तो बढ़ा जाये.
इसके पश्चात बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि सब पर लैंडिंग हो गई. फिर मंगल और शनि के चंद्रमा तक पर लैंडिंग हो गई. यहाँ तक कि कई सारे ऐस्टरॉयड्स और कॉमेट्स पर भी लैंडिंग हो चुकी है.
अमेरिका ने 1977 में वॉयजर वन स्पेस क्राफ़्ट छोड़ा था जो 46 साल से लगातार चल रहा है. शुक्र, शनि, शनि के चंद्रमा के चक्कर लगा कर अब अपने सौर मण्डल से भी आगे इंटर स्टेलर स्पेस में पहुँच गया है. वहाँ से नासा के डीप स्पेस नेटवर्क के द्वारा अभी भी धरती पर सिग्नल भेज रहा है. इस समय यह धरती से 24 बिलियन किमी दूर है.
चूँकि धरती के गुरुत्वाकर्षण / वायुमंडल को पार करने में ही अंतरिक्ष मिशन के रॉकेट का बहुत ईधन खर्च हो जाता है तो अब अमेरिका फिर से चंद्रमा पर मनुष्य भेज रहा है 2025 में. इस बार केवल घूम कर नहीं आना है, भविष्य में चंद्रमा पर स्पेस स्टेशन बनाना है ताकि भविष्य के रॉकेट सीधे चंद्रमा से ही छोड़े जा सके हैं. इलोन मस्क, नासा, जेफ़ बेजोस समेत कई अमेरिकन उद्योगपति अब इस दिशा में लगे हैं कि धूमकेतुवों पर अपार खनिज संपत्ति होती है. पर उस पर क़ब्ज़ा कर धरती पर लाने में इतने पैसे खर्च हो जाएँगे कि फ़ायदा न होगा. तो भविष्य की प्लानिंग में है कि क़ीमती धातु वाले ऐसे धूमकेतुवों पर क़ब्ज़ा कर चंद्रमा में ही लैब में प्रोसेस कर मेटल में कन्वर्ट कर लिया जाये और तब धरती पर लाया जाये. जो ऐसा कर ले जाएगा अकूत संपत्ति का मालिक बन जायेगा.
भारत भी देर से ही सही पर अब ट्रैक पर आ रहा है. हम आज वहीं हैं जहां रूस और अमेरिका 1966-67 में थे. पर हमें पता है आगे क्या करना है क्योंकि इन्होंने रास्ता दिखा रखा है. भारत भी अब अन्य ग्रहों आदि पर मिशन भेजेगा. और पूरा विश्वास है कि आने वाले भविष्य में एक दिन चंद्रमा पर भारत का भी झंडा लहराएगा.