बौद्धों की जातक कथाओं में रामायण के पात्रों का जिक्र :-
हिंदू धर्म में सतयुग में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की दानवीरता का अकसर जिक्र आता हैं। इन्हीं राजा हरिश्चंद्र की कथा को महावेस्सन्तर जातक (547) में संकलित किया गया है, जिसके अंतर्गत दान परिमिता का महत्व बताया गया है। कट्ठहारी जातक (7)
में शकुंतला का प्रकरण ज्यों का त्यों दिया गया। सुत्तभस्त जातक (402)
और महाजनक जातक (359)
में मिथिला के राजा जनक का विस्तृत वर्णन किया गया है।
वहीं दशरथ जातक (461) में राजा दशरथ,
तथा राम को बोधिसत्व राम के रूप में लिखा गया है,
लखन कुमार और सीता का भी वर्णन मिलता है। साम जातक (540) में पितृ भक्त श्रमण कुमार का उल्लेख किया गया है।
गुरु ग्रंथ साहिब में राम जी का जिक्र :-
जिन्हें हिंदू शास्त्रों में भगवान विष्णु कहा जाता है उन
हरि नाम का श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में बार-बार भगवान शब्द के रूप में प्रयोग किया गया है। इसी तरह राम नाम का प्रयोग भी किया गया है।
प्रभु और गोपाल शब्द का भी बार-बार उल्लेख किया गया है।
जिसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
साधो राम सरनि बिसरामा ।। बेद पुरान पड़े को इह गुन सिमरे हरि को नामा ।।१।।
(रागु गउड़ी: पृष्ठ 220, श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
अर्थात :- वेद पुराण आदि इस बात के साक्षी हैं कि मुक्ति पाने का एकमात्र रास्ता की प्राणी को राम की शरण में जाकर विश्राम करना चाहिए और राम नाम का सिमरन करना चाहिए।
कहु नानक सोई नर सुखीआ राम नाम गुन गावै।।
(रागु गउड़ी: पृष्ठ 220, श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
अर्थात :- श्री गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि वही नर सुखी है जो राम नाम का गुणगान करता है।
आजु कालि फुनि तोही ग्रसि है समझि राखउ चीति ।। कहै नानकु रामु भजि लै जातु अउसरु बीत ।।२।।१।।
(पृष्ठ 631, श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
अर्थात:- यह काल का फन आज ही तुझे अपना ग्रास बनाने को तैयार है। अर्थात समय बीता जा रहा है और इसमें चूक करना भारी भूल होगी। इसीलिए जितना समय मिला है उसमें राम का भजन करना उचित रहेगा।
अब आप खुद सोचिए कि बौद्ध मत में भी श्री राम का जिक्र है और सिक्ख मत में भी श्री राम का जिक्र है। इसका अर्थ तो यही हुआ कि बौद्ध और सिक्ख मत को मानने वाले भी श्री राम से प्रेरित रहे होंगे,
अर्थात उनका जुड़ाव सनातन धर्म से ही रहा होगा। तो फिर इन सब के बीच दूरियाँ लाने के लिए कौन जिम्मेदार है।
बौद्ध और सिक्ख मत में बताये जाने वाले श्री राम वही हैं जिनका उल्लेख सनातन धर्म के ग्रंथों में मिलता है। परंतु समाज को गलत ढंग से समझाये जाने के कारण तथाकथित निचली जाती के लोगों ने, जो कभी निचले थे ही नहीं, बौद्ध और सिक्ख मत अपना लिया। दिक्कत ये नहीं है कि उन्होंने बौद्ध या सिक्ख मत अपनाए अपितु दिक्कत ये है कि वे इन्हें सनातन धर्म से अलग समझते हैं। बौद्ध,
सिक्ख और जैन मत सनातन धर्म से अलग नहीं हैं। सिर्फ पूजा करने का तरीका अलग है। बाकी हैं तो सब सनातनी। हमें तो पता है कि हम अलग नहीं हैं पर जिन्हें नहीं पता वह बवाल मचाते हैं।
उन्हें मैं बता देना चाहता हूँ कि बौद्ध मत कि स्थापना सनातन धर्म के विरोध में नहीं अपितु सनातन धर्म को सही ढंग से बताने और सनातन के पुराने स्वरूप को खोजने के लिए हुई थी। वहीं सिक्ख मत कि स्थापना सनातन धर्म की रक्षा के लिए हुई थी। सिक्ख भाइयों का सनातन धर्म की रक्षा में एक बहुत बड़ा योगदान है। परंतु आज जब वही भारत से अलग होने की बात करते हैं तो बुरा लगता है।
यह सब उन देश के सौदागरों के कारण हुआ है जो अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं,
और ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे सामने आते रहते हैं,
परंतु फिर भी हम भटक जाएं,
तो इसमें गलती हमारी ही है।
वामपंथियों द्वारा तो यहाँ तक कहा गया कि बौद्ध और सिक्ख मत को ज्यादातर निचली जाती के लोग ही अपनाते हैं। अरे भैया भारत में तो अंग्रेजों द्वारा जैसी जातियाँ बनाई गई हैं, ऐसी कोई जातियाँ ही नहीं थीं, तो ऊंची और नीची की बात तो बहुत दूर की है!
अब जानते हैं कि भारतीय धर्म ग्रंथ इस विषय में क्या कहते हैं। सनातन धर्म में बताई गई वर्ण व्यवस्था का महत्व क्या था? अखिर क्यों इस व्यवस्था का निर्माण किया गया था? और वास्तव में जाति किसे कहा जाता है?