जय श्री राम।।
जटायु जी का उद्धार करने के पश्चात प्रभु श्री राम जी भाई लक्ष्मण जी के साथ वन में सीता जी को खोजते हुए आगे चलते हैं। रास्ते में एक कबंध नामक राक्षस मिलता है। जो एक समय दनु नामक सुंदर गंधर्व था। वह अपनी आनंद प्राप्ति के लिए साधु महात्माओं को राक्षस का रूप बनाकर सताता था। तब एक ऋषि के श्राप से वह राक्षस हो गया था। उसे श्राप था जिस दिन राम जी लक्ष्मण जी तुम्हारी भुजा काटेंगे। तुम्हारा दाह संस्कार करेंगे। तब तुम पुनः अपने रूप को प्राप्त होंगे ।कबंध राक्षस को उसके श्राप के कारण भगवान उसकी भुजाएं काट कर अग्नि को समर्पित करके श्राप मुक्त करते हैं। वह श्राप मुक्त होकर पुन:अपने गंधर्व रूप में प्रकट होकर भगवान श्री राम जी को श्री सीता जी का पता बताता है ।और मतंग ऋषि के आश्रम होते हुए, पंपापुर सरोवर के निकट जहां सुग्रीव जी रहते हैं। उनसे मित्रता करने का निवेदन करता है। मतंग ऋषि के आश्रम में उनकी भक्त माता शबरी उनकी प्रतीक्षा कर रही है। यह भी बताता है।भगवान श्री राम जी दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ते हैं ।मतंग ऋषि के आश्रम के निकट पहुंचते हैं ।वहां पहुंचकर वहां रह रहे ऋषि-मुनियों से भगवान मतंग ऋषि के आश्रम और माता शबरी के संबंध में पूछते हैं ।ऋषि मुनि को बढ़ा आश्चर्य हुआ ।जब श्री राम जी ने माता शबरी के बारे में पूछा। वह कहने लगे क्या वह पगली सबरी।? उसके आश्रम पर आप जाना चाहते हो ? उससे आपको क्या काम है?श्री राम जी ने कहा वह मेरी भक्त हैं। सब ऋषि-मुनियों को बड़ा आश्चर्य होता है
माता शबरी अपने गुरु मतंग ऋषि की आज्ञा से भगवान श्री राम जी के आने की प्रतीक्षा करते रहती है। मतंग ऋषि शबरी माता को बताकर गए थे। कि एक दिन भगवान राम स्वयं तेरी कुटिया में पधारेंगे। माता शबरी ने अपने गुरु जी से यह नहीं पूछा था कि वह कब आएंगे? और ना ही उनके गुरु ने बताया था कि वह कब आएंगे। शबरी माता को मन में लग रहा था ।पता नहीं भगवान किस समय आ जाए। हो सकता है आज ही आ जाएं। इसलिए वह प्रतिदिन प्रातः काल उठकर आंगन बुहारती थी। रास्ते से कांटे साफ करती थी।जानती है ,भगवान के चरण अति कोमल होंगे। कहीं उनके पांव में कांटा ना लग जाए। इसलिए प्रतिदिन फूल बिछाती थी।जानती थी हो सकता है भूखे होंगे। इसलिए उनके लिए चख चख कर मीठे बैर रखती थी।कभी घर के भीतर जाती है ।फिर से कुटिया के द्वार पर आ जाती है। उसे लगता है। ऐसा ना हो कि भगवान यहां आकर और निकल जाए। इसलिए वह प्रतिदिन हर पल भगवान की प्रतीक्षा करती
रहती है। माता शबरी के बारे में एक पौराणिक कथा यह बताती है ।कि माता शबरी अपने पिछले जन्म में एक राज रानी थी। वह एक समय प्रयागराज में राजा के साथ गंगा स्नान को गई थी। तब उसने देखा कि जहां पर वह लोग ठहरे थे। वहीं पास में ही सत्संग चल रहा था। रानी के मन में सत्संग सुनने की प्रेरणा हुईं। उन्होंने अपने पतिदेव राजा से कहा कि स्वामी मुझे भी सत्संग में जाना है। राजा ने उन्हें यह कहकर रोका। कि हम साधारण लोग नहीं हैं। राजा महाराजा है। हमारी कुछ मर्यादा है। हम आम जनता के बीच में इस तरह जाकर बैठेंगे शोभा नहीं पाएंगे। यह सुनकर रानी को मन में बड़ी ग्लानि हुई ।मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी। है प्रभु मेरा इस तरह रानी होना किस काम का जो आपके सत्संग प्रवचन से दूर करें। मुझे तो केवल आपका प्रेम मिले। आपकी कृपा मिलें। ऐसी कुछ प्रेरणा कीजिए। रात्रि के समय वह रानी भगवान का चिंतन करते रही।और अर्ध रात्रि को उठकर गंगा जी के किनारे पहुंच गई ।उसने गंगा जी के
जल में प्रवेश किया। और भगवान से प्रार्थना करने लगी।है प्रभु, मैं जानती हूं ।
अकाल मृत्यु जो मरता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है। वह अनेक योनियों में जन्म लेता है। जीव भटकता है। किंतु मैं विवश हूं। मुझे तो केवल आपका प्रेम चाहिए ।शास्त्र कहता है
अंत मती सो गति।
अंत समय में जैसी मति होती है ।मनुष्य को दूसरा जन्म भी उसी के अनुसार मिलता है। रानी ने जल में डुबकी लगाकर अपने आप को समाप्त कर लिया । दूसरे दिन तलाश करके राजा ने उसके मृत शरीर को बाहर निकलवाया।और जब उस रानी का दूसरा जन्म हुआ। तो एक भील परिवार में, बहुत गरीब परिवार अधम कुल में हुआ। शबरी को पिछले जन्म की प्रेरणा से जन्म से ही भगवान राम के चरणों में अनुराग था उसके हृदय में बड़ी दया थी करुणा थी। वह केवल भगवान का आश्रय पाना चाहती थी ।
माता शबरी बाल्यावस्था में थी। भगवान के प्रति इतना अनुराग देखकर माता पिता को यह चिंता होने लगी।कि आगे चलकर यह अपना गृहस्थ किस तरह संभालेगी ।?
इसके आगे का प्रसंग अगले पोस्ट में जय श्री राम।।