🦅गिद्धराज जटायू 2️⃣ पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें 👉 जटायु भाग 1
नारद जी से वार्तालाप करने के पश्चात भगवान श्री राम जी भाई लक्ष्मण जी के साथ सीता जी को खोजते हुए जा रहे हैं ।एक स्थान पर उन्हें राम राम शब्द गूंजता हुआ सुनाई दिया। जाकर देखते हैं ।वह स्वर गिदधराज जटायु का था ।वह अपने जीवन की अंतिम सांसे ले रहा था। भगवान का स्मरण कर रहा था।
आगे परा गीधपति देखा।
सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा।। भगवान ने जाकर देखा तो लक्ष्मण जी से कहा यह तो जटायु जी है। इन्हें यह क्या हुआ है ?इनका उपचार होना चाहिए ।लक्ष्मण जी ने कहा प्रभु आपके हाथों के स्पर्श से बढ़कर दूसरा और क्या उपचार हो सकता है ।रामजी ने जटायु जी को अपनी गोद में उठा लिया। अपने हाथों से उसके शरीर का स्पर्श किया।
रामजी के हाथों के स्पर्श से जटायु जी की पीड़ा समाप्त हुई।
कर सरोज सिर परसेउ,
कृपा सिंधु रघुवीर।
निरखि राम छवि नाम मुख,
बिगत भ इ सब पीरा।।
जटायु जी ने विचार किया।
कोई राहगीर होंगे। मेरी स्थिति देखकर मेरे, हालचाल जानने आए होंगे। भगवान ने पूछा?
पक्षीराज आप की यह दशा किसने की है।?
आपके पंख किस ने काट दिए हैं।? जटायु जी बोले यह जानकर क्या करोगे?
आप लोग जाओ। मुझे राम जी का नाम लेने दो।
मैं अपना दुखड़ा सुनाऊंगा। आंसू बहाऊंगा।
मेरा दुख सुनकर तुम आंसू बहाओगे।
और यदि आंसू बहाते बहाते, कहानी सुनाते सुनाते मेरे प्राण निकल गए ।तो इस कहानी को सुनाने के लिए मुझे फिर दूसरा जन्म लेना पड़ेगा। इसलिए तुम लोग जाओ।
मुझे राम जी का नाम लेने दो। राम-राम कहते हुए यदि मेरे प्राण निकल गए तो मेरी सद्गति हो जाएगी। भगवान जटायु जी के अपने प्रति यह भाव देखकर भावुक हो गये।
श्री राम जी ने कहा जटायु जी मैं राम ही हूं ।आप मुझे बताइए?
आपकी यह दशा किसने की है?
जब जटायु जी ने यह सुना कि राम जी आ गए हैं ।तो मन में बड़ा प्रसन्न हुआ ।और कहने लगा प्रभु। यह प्राण तुम्हारे दर्शन के लिए ही अटके हुए हैं। आप मेरी इस दशा को दुर्गति मत कहिए ।आज मैं आपकी गोद में हूं। और जो जीवन के अंतिम क्षणों में आपकी गोद में हो उसकी दुर्गति कैसे हो सकती है। उसकी तो गति ही होती है। मैं श्री जानकी जी के समाचार सुनाने के लिए ही आपकी प्रतीक्षा कर रहा था
लंकापति दुष्ट रावण श्री जानकी जी का हरण करके ले गया है। मैंने उसका रास्ता रोका।
श्री सीता जी की सहायता करना चाही। तब उस दुष्ट ने मुझ से युद्ध करते हुए मेरे पंख काट दिए। मैं असहाय होकर भूमि पर गिर गया।
नाथ दशानन यह गति किन्हीं।।
आप श्री सीता जी की खबर अवश्य लीजिए प्रभु ।वह बहुत करुण विलाप करते हुए गई है ।आप रावण को मृत्युदंड दीजिएगा ।और मुझे अब आप जाने की अनुमति दीजिए। मैं अब जाना चाहता हूं ।
दरस लागि प्रभु राखेंउ प्राना।
चलन चहत अब कृपानिधिना।
भगवान ने कहा नहीं नहीं जटायु जी आप जाइए मत। मैं आपका उपचार करूंगा। आपको जीवनदान दे सकता हूं।
राम कहा तनु राखेउ ताता।।
जटायु जी ने कहा नहीं प्रभु ।अब ना मुझे उपचार की आवश्यकता है। और ना ही मैं जीवनदान चाहता हूं। मुझे इतना अच्छा अवसर मिला है। अब मैं और अधिक जीवन जी कर क्या करूंगा। श्री राम जी ने कहा पक्षीराज आपको मैं क्या दे सकता हूं। आपने सब कुछ पा लिया है। जिनके मन में दूसरों का हित बसता है उसके लिए जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। आप मेरे धाम में जाइए।
परहित बस जिनके मन माहीं।
तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछु नहीं।।
मुझसे कोई वरदान मांग लीजिए। जटायु जी बोले। प्रभु आप मुझे क्या वरदान दोगे। आप मुझे सब कुछ तो दे ही चुके हैं। आपने मुझे गोद में ले लिया है ।और जब कोई किसी को गोद ले लेता है ।तो सब कुछ उसका हो जाता है। अब आपका जो कुछ है वह सब मेरा हो चुका है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।श्री राम जी ने कहा जटायु जी जब आप जाना ही चाहते हो ।तो इतना करना। कि सीता हरण की यह बात आप जाकर पिताजी को नहीं बताना। यदि मैं दशरथ पुत्र राम हूं। तो मेरी वीरता की कहानी मृत्यु उपरांत रावण खुद जाकर उन्हें सुनाएगा।
सीता हरण तात जनि,
कहहु पिता सन जाइ,
जौं में राम त कुल सहित,
कहहि दशानन आइ।।
जटायु जी ने प्रभु की आज्ञा स्वीकार की ।जटायु जी ने अंतिम सांसे ली ।और उनका सूक्ष्म शरीर स्वयं हरि का रूप धारण करके भगवान के बैकुंठ धाम को गया।
गीध देह तजि धरि हरि रुपा।
भूषन बहु पट पीत अनूपा।।
श्री राम जी ने जटायु जी का अंतिम क्रिया कर्म किया। जो सौभाग्य महाराज दशरथ जी को प्राप्त नहीं हुआ था ।वह सौभाग्य जटायु जी को प्राप्त हुआ।
अबिरल भगति मागि बर,
गीध गय उ हरि धाम,
तेहि की क्रिया जथोचित,
निज कर किन्हीं राम।।
जटायु जी का क्रिया कर्म करने के पश्चात भगवान आगे की ओर चले ।यह प्रसंग अगली पोस्ट में
जय श्री राम।।