GEETA VIDEO AND PANCHANG : गीता वीडियो एवम पंचांग
गीता अध्याय ४ ज्ञानकर्म सन्यास योग श्लोक ०८
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आज का पंचांग
सोमवार १७/०७/२०२३
श्रावण अमावस्या, युगाब्ध - ५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅दिनांक - 17 जुलाई 2023
⛅दिन - सोमवार
⛅विक्रम संवत् - 2080
⛅शक संवत् - 1945
⛅अयन - दक्षिणायन
⛅ऋतु - वर्षा
⛅मास - श्रावण
⛅पक्ष - कृष्ण
⛅तिथि - अमावस्या रात्रि 12:01 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅नक्षत्र - पुनर्वसु 18 जुलाई प्रातः 05:11 तक तत्पश्चात पुष्य
⛅योग - व्याघात सुबह 08:58 तक तत्पश्चात हर्षण
⛅राहु काल - सुबह 07:44 से 09:25 तक
⛅सूर्योदय - 06:04
⛅सूर्यास्त - 07:28
⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:39 से 05:21 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:25 से 01:07 तक
⛅व्रत पर्व विवरण - सोमवती अमावस्या
⛅विशेष - अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
🌹 सोमवती अमावस्या : 17 जुलाई 2023 🌹
🌹 पूण्य काल : 17 जुलाई सूर्योदय से रात्रि 12:01 तक
🌹 अमावस्या के दिन सोमवार का योग होने पर उस दिन देवताओं को भी दुर्लभ हो ऐसा पुण्यकाल होता है क्योंकि गंगा, पुष्कर एवं दिव्य अंतरिक्ष और भूमि के जो सब तीर्थ हैं, वे ‘सोमवती (दर्श) अमावस्या के दिन जप, ध्यान, पूजन करने पर विशेष धर्मलाभ प्रदान करते हैं ।
🌹 सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी - ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं ।
🌹 सोमवती अमावस्या में किया गया स्नान, दान व श्राद्ध अक्षय होता है ।
🌹 सोमवती अमावस्याः दरिद्रता निवारण 🌹
🌹 इस दिन भी मौन रहकर स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है ।
🌹 इस दिन पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है । 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है । प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं । बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं । ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है ।
🌹 सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है ।
🔹अधिक मास का माहात्म्य🔹
(अधिक मासः 18 जुलाई से 16 अगस्त )
🔸अधिक मास में सूर्य की संक्रान्ति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारण इसे ʹमलमासʹ (मलिन मास) कहा गया । स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया । इससे लोग इसकी घोर निन्दा करने लगे ।
🔸तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः “मैं इसे सर्वोपरि – अपने तुल्य करता हूँ । सदगुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देने का सामार्थ्य आदि जितने गुण सम्पन्न हैं, उन सबको मैंने इस मास को सौंप दिया ।
अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः।
तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।।
🔸इन गुणों के कारण जिस प्रकार मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ ।”
🔸इस प्रकार अधिक मास, मलमास ʹपुरुषोत्तम मासʹ के नाम से विख्यात हुआ ।
भगवान कहते हैं- “इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण तथा देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है । जो प्रमाद से इस मास को खाली बिता देते हैं, उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें सन्देह नहीं ।
🔸सुगन्धित चंदन, दीप आदि से लक्ष्मीसहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें । घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें । ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती कर लें । इससे अनन्त फल की प्राप्ति होती है । चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-
देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।
गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेઽमिततेजसे।
नमोઽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।
🔸ʹहे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव मुझ पर कृपा करके इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये । तुझ स्वयंभु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार । हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ आप मुझ पर कृपा करें ।ʹ
🔸पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है । इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं ।
विधिवत् सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात्।
कुलं स्वकीयमुदधृत्य मामेवैष्ययत्यसंशयम्।।