भरता का न्यायतंत्र...क्या भरोसा तोड़ रहा है जनता का?
अब समझिए की कैसे 1 टांग पर खड़े होकर तिस्ता को जमानत दी गई मानो , जमानत नहीं दी गई तो भूचाल आ जाएगा
तिस्ता सीतलवाड़ वही है जिसने गुजरात दंगों में कई बड़े अधिकारियों को फंसाया और उस समय की गुजरात की मोदी सरकार को बदनाम करने का प्रयास किया । इस तीस्ता सीतलवाड़ को शनिवार (2 जुलाई 2023) में देर रात सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी।
दिलचस्प बात ये है कि 👉 सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक भरतनाट्यम का प्रोग्राम देखते हुए उनकी याचिका पर अपनी नजर बनाए रखी और सुनिश्चित किया कि कल यानी कि रविवार को ही मामले की सुनवाई हो जाए।
👉सीजेआई को करीब 7 बजे पता चला था कि जो पीठ (जस्टिस 👉एएस ओका और प्रशांत कुमार मिश्रा) तीस्ता की बेल याचिका सुन रही थी
👉जमानत को लेकर उस पीठ ने मत अलग दिए हैं।
👉ऐसे में जस्टिस चंद्रचूड़ की इस मामले में एंट्री हुई।
👉उन्होंने दो अन्य जजों को इस पीठ का हिस्सा बनवाया और फिर इस बेल पर मोहर लगी।
👉6:30 बजे सुनवाई शुरू हुई और पीठ के दोनो की राय अलग अलग हुई
👉फिर फोन CJI के पास गया
👉उन्होंने बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्न को भी केस से जोड़ दिया
👉फिर रात 9:15 बजे मामला सुनकर पीठ ने जमानत पर मोहर लगा दी
आपको बता दें की गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट ने प्रोपेगंडा एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका रद्द करते हुए उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश सुनाया।
गुजरात उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने का अर्थ होगा कि दो समुदायों के बीच दुश्मनी को और बढ़ावा देना। 127 पन्नों के आदेश में जस्टिस निर्जर देसाई ने कहा कि अगर तीस्ता सीतलवाड़ को बेल दे दी जाती है तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा और सामुदायिक वैमनस्य और गहरा होगा।
🤔सोचिए कौन गलत है? गुजरात हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट... दोनों तो सही नहीं हो सकते ना? वैसे सुप्रीम कोर्ट वही है जिसने मनीष कश्यप को जमानत याचिका खारिज की थी। क्या मनीष कश्यप, तिस्ता से भी बड़ा अपराधी है?