मोदी जी आपने तो कह दिया कि तीसरे टर्म में आ रहा हूँ और देश को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की गारंटी देता हूँ लेकिन लीचड़ कांग्रेस जैसा विपक्ष जो ऐसे तो चुनाव नही जीतेगा, उसके कुकर्मो को देख तो लगता है कि ये मुश्किल होने वाला है।
कल ही खबर आई कि कर्नाटक जो टॉप 3 जीडीपी देने वाला राज्य है उसके उपमुख्यमंत्री ने कह दिया कि 43000 करोड़ की मुफ्तखोरी बांटने को हम 1 साल तक विकास कार्यों पर खर्चा नही करेंगे। ऐसे ही अन्य राज्य OPS से लेकर तमाम रेवड़ी के वादे किए जा रहे हैं जिनका पैसा भी इसी तरह विकास के कामों को रोक ही पूरा हो पायेगा ।
ऐसे में यदि ऐसा ही चलता रहा तो भारत की जीडीपी कब तक ऐसे ही सबसे तेजी से बनी रहेगी ये चिंता का विषय है वो भी तब जब RBI से लेकर अन्य वित्तीय संस्थान कह चुके हैं कि ये रेवड़ी वाले राज्य अगर स्वतन्त्र राष्ट्र होते तो इनका पाकिस्तान से लेकर वेनेजुएला बन गया होता।
सुप्रीम कोर्ट में भी इसपर पेटिशन है कि रेवड़ी कल्चर बैन किया जाए लेकिन उधर प्रमुख विपक्षी नेता बैठा हुआ है तो उधर से उम्मीद बेमानी है। ऐसे में फिर आपको सोचना है कि कैसे इस रेवड़ी कल्चर को खत्म करना है क्योंकि ऐसा ही रहा तो ऐसे राज्यों में कोई निवेश करने तो आएगा नहीं क्योंकि कल को फिर ये अपनी रेवड़ियों के लिए व्यपारियों से ही उगाई करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह चुके हैं कि रेवड़ी संस्कृति किस तरह लोकतंत्र और अर्थतंत्र का बेड़ा गर्क कर रही है। यह वही संस्कृति है, जिसे मुफ्तखोरी की राजनीति भी कहा जाता है। यह राजनीति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली भी है। यह किसी से छिपा नहीं कि रेवडिय़ां बांटने की राजनीतिक संस्कृति ने न जाने कितने देशों को तबाह किया है।
यूरोप के कुछ विकसित देश इसी रेवड़ी संस्कृति के कारण आज आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। अपने देश में ही देखा जाए तो कई राज्य सरकारें इस रेवड़ी संस्कृति के कारण लगभग दीवालिया होने की कगार पर हैं। उनका बजट घाटा बढ़ता जा रहा है, लेकिन वे मुफ्तखोरी की राजनीति का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं। इस राजनीति ने राज्य के बिजली बोर्डों का भी बुरा हाल कर रखा है, क्योंकि राज्य सरकारें चुनावी लाभ के लिए मुफ्त में या लागत से बहुत कम में बिजली दे रही हैं। इसका दुष्परिणाम बिजली बोर्ड भुगत रहे हैं।