बिहार में नीतीश कुमार अपने विधायकों और विधान पार्षदों से मिल रहे हैं। कल राजभवन में सुशील मोदी से भी मिलने की बातें हैं। भाजपा बिहार कह रही है कि राजद में जदयू का विलय हो जाएगा। अमित शाह ने कल ही लक्खीसराय (बिहार) की रैली में उन्हें पलटू राम कहा है।
23 को विपक्ष की सभा में कुछ हुआ नहीं तो नीतीश को अपना और उनके पार्टी सदस्यों को अपने राजनैतिक भविष्य की चिंता तो हो ही रही होगी। ऐसे में पुनः राजद को छोड़ कर भाजपा गठबंधन की बातें कही जा रही हैं। शाह का कथन या भाजपा का ‘राजद विलय’ का तंज संभवतः मूल बात से ध्यान हटाने हेतु भी हो रहा हो।
लोकसभा में बिहारियों के पास मोदी के नाम का विकल्प होता है, इसलिए विधानसभा का मतदान पैटर्न वहाँ नहीं दिखता। जिस नीतीश को मोदी के नाम पर बिना कुछ किए 16 सांसद मिल गए हों, और आने वाले समय में वह संख्या 4-5 होने वाली हो, तो निवर्तमान सांसद और विधायक अपना भविष्य तो देखेंगे ही।
हर विधायक आदि से व्यक्तिगत तौर पर मिलना, ‘विकास कार्य की समीक्षा’ हेतु तो नहीं ही है। जो भी राजनीति जानते-समझते हैं, वो यह जानते हैं कि ऐसा तभी होता है जब नेता पैनिक मोड में है और दल के सदस्यों को भविष्य पर संकट दिख रहा हो तथा विरोधियों ने उन्हें विकल्प देना आरंभ कर दिया हो।
साथ ही, लोकसभा से पहले पार्टी में अमित शाह की सेंधमारी से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उद्धव ठाकरे का उदाहरण हमारे सामने है। कल ही आदित्य के करीबी राहुल ने खेमा बदल लिया है। अमित शाह अपने शत्रु को शून्य पर लाने के लिए जाने जाते हैं। भले ही समय कितना ही लग जाय।
अब नीतीश के पास अधिक विकल्प नहीं हैं: पार्टी में टूट हो सकती है, भाजपा के साथ वापसी पर मुख्यमंत्री भाजपा का, राजद के साथ रहते हुए सासंदों की संख्या में भारी कमी के लिए तैयार।
तीनों ही स्थिति में नीतीश का राजनैतिक भविष्य समाप्ति की ओर है। कुछ काम भाजपा ने किया है, कुछ तेजस्वी भीतर से कर रहा है। राजद के साथ मिलना सुशासन की छवि में दरार ही लाता है, पाटता नहीं। आने वाला सप्ताह बिहार की राजनीति में देखने योग्य होगा।
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