पौराणिक मान्यता है कि अग्नि के सृष्टि में तीन रूप हैं; अंतरिक्ष में विद्युत, आकाश में सूर्य और पृथ्वी पर अग्नि। संस्कृत की एक पंक्ति 'सूर्याशं सभवो दीप:' अर्थात, दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है।दीपक के प्रकाश को इतना पवित्र माना गया है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है।
जिस क्षण एक दीया जलाते हैं, सिर्फ लौ ही नहीं, बल्कि लौ के चारो ओर स्वाभाविक रूप से एक अलौकिक घेरा या आभामंडल बन जाता है। जहां भी आभामंडल होगा, संवाद बेहतर होगा। अलाव के पास सुनाई गई कहानियों का लोगों पर बहुत अधिक असर होता है।प्राचीन समय के कहानी सुनाने वाले यह बात समझते थे। अलाव के पास सुनाई जाने वाली कहानियां हमेशा सबसे प्रभावशाली कहानियां होती हैं। वहां पर ग्रहणशीलता अपने चरम पर होती है।
जब आप एक दीया जलाते हैं, तो रोशनी देने के अलावा, वह उस पूरे स्थान को एक अलग किस्म की ऊर्जा से भर देता है।तेल का दीया जलाने के कुछ खास प्रभाव होते हैं। दीया जलाने के लिए कुछ वनस्पति तेलों, खासकर तिल का तेल, अरंडी का तेल या घी इस्तेमाल करने पर, सकारात्मक ऊर्जा उत्तपन्न होती है।उसका अपना ऊर्जा क्षेत्र होता है। अग्नि खुद कई रूपों में प्रकाश और जीवन का एक स्रोत है।
प्रतीकात्मक रूप में हमने हमेशा से अग्नि को जीवन के स्रोत के रूप में देखा है। कई भाषाओं में आपके जीवन को ही अग्नि कहा गया है। आपके भीतर “जीवन की अग्नि” आपको सक्रिय रखती है। इस पृथ्वी पर जीवन का जो मूल कारण है; सूर्य, वह भी अग्नि का एक पिंड ही तो है।चाहे आप बिजली का बल्ब जलाएं, या किसी भी तरह के चूल्हे पर खाना पकाएं, या आपके कार का अंदरूनी इंजिन, सब कुछ आग ही तो है। इस दुनिया में जीवन को चलाने वाली हर चीज अग्नि है।
इसलिए अग्नि को जीवन का स्रोत माना गया है। यह अपने आस-पास ऊर्जा का एक घेरा भी बनाता है और सबसे अधिक यह जरूरी माहौल बनाता है।
इसलिए जब आप अपने दिन की शुरुआत से पहले एक दीया जलाते हैं, तो इसकी वजह यह होती है कि आप वही गुण अपने अंदर लाना चाहते हैं।यह एक प्रतीक है, आपकी अपनी आंतरिक प्रकृति का आह्वान करने का एक तरीका है।दीपक प्रकाश के लिये, देवता के सामने इसलिये भी जलाया जाता है कि:
१. मेरा जीवन प्रकाशित (दिव्य) करें!
२. मेरा मार्ग प्रकाशित करें (मार्गदर्शन)!
३. मेरा अंधकार (माया) दूर करें!
अत: हे देव, इस ज्योति की तरह, मेरा मार्गदर्शन करते हुए, मेरा अंधकार (माया) दूर कर मुझे दिव्य बना दे, मेरा जीवन उज्ज्वल कर सफल बना दे!
उक्त भाव के लिये दीपक जलाया जाता है!दीपक प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक से हम ऊंचा उठने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। दीप ज्योति से पापों का क्षय होता है। शत्रुपक्ष शांत होता है। आयु, आरोग्य, पुण्य, सुख्ख्ख की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में कहा गया है दीपक सदैव विषम संख्या १,३,५, ७ व ९ में जलाने चाहिएं।
इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। सम संख्या २,४,६ व ८ में जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है, जो सब प्रकार से हानि करती है।
दीपक की लौ पूर्व दिशा की ओर रखने से आयु, दक्षिण की ओर रखने से हानि, पश्चिम की ओर से रखने से दुख, उत्तर की ओर रखने से धन, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। दीपक एक बार जलाकर बुझाना अनिष्ट को निमंत्रण देना होता है।शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि दीपक जलाकर देवी- देवताओं की पूजा करने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। कहा जाता है कि दीपक की रोशनी में खुद ईश्वर व्याप्त होते हैं।भगवान की आरती करते वक्त दीपक जलाने से ईश्वर सभी दुख हर लेते हैं और जिंदगी में खुशियां भर जाती हैं। दीपक जलाने से घर में पॉजिटिव एनर्जी का समागम होता है। सुख-शांति का वास होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भय और शत्रुओं से रक्षा करने के लिए हर सोमवार और शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। वहीं परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे, इसके लिए हर रोज बाल गोपाल के सामने और गुरुवार को भगवान विष्णु के सामने देसी घी का दीया जलाना चाहिए।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी शुभ कार्य और धर्मिक कार्यक्रमों में तेल या देशी घी का दीपक जलाकर ही भगवान की आराधना करनी चाहिए। शनि प्रकोप से मिलती है मुक्ति। राहु- केतु के दोष से मुक्ति के लिए सुबह-शाम घर के मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाएं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से कुंडली में मौजूद राहु-केतु दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि प्रकोप से मुक्ति मिलती है। भय पर होती है जीत।
अगर आपको बिना किसी कारण डर लगता है। कहीं जाने में आपका मन विचलित होने लगता है या कोई अंजान डर हमेशा आपका पीछा करता है तो सोमवार और शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस उपाय से सभी डर दूर भाग जाते हैं। इतना ही नहीं ऐसा करने से दुश्मन आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएंगे। भैरव की कृपा से आपके आसपास हमेशा सुरक्षा घेरा बना रहेगा। बढ़ेगा मान- सम्मान। समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए घर के मंदिर में रोज दीपक जलाएं। शास्त्रों में कहा गया है कि मान-सम्मान और इज्जत बढ़ाने के लिए रोज सुबह सूर्य देव को जल का अर्ध्य देना चाहिए।साथ ही देसी घी के दीपक से आरती करनी चाहिए। सूर्य देव आपके रुके हुए कार्यों को पूरा करने में मदद करते हैं। सुख-समृद्धि मिलती है।
हर रोज बाल गोपाल के सामने और गुरुवार को भगवान विष्णु के सामने देसी घी का दीपक जलाने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही घर में पैसों की कमी कभी नहीं होती। १०८ बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप भी करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसा करने से घर में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है और सुख-शांति में बढ़ोतरी होती है।
आर्थिक परेशानी से मिलेगी मुक्ति मां लक्ष्मी के सामने सात मुखी यानी सात बत्तियों वाला दीपक जलाने से धन संबंधी परेशानियां दूर होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये उपाय धन की सभी समस्याओं को तो दूर करेगा ही, साथ ही साथ रुका हुआ धन भी आसानी से मिल जाएगा। दो बत्तियों वाला दीपक मां सरस्वती के सामने जलाने से बुद्धि तेज होती है और यशगान की प्राप्ति होती है।
धन-धान्य की नहीं होगी कमी बुधवार के दिन भगवान गणेश के सामने तीन मुख का देसी घी का दीपक जलाना चाहिए और उनको दूर्वा घास चढ़ाना चाहिए. इस उपाय को करने से घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आमदनी बढ़ाने और धन के लिए नए रास्ते खोजने के लिए भी यह उपाय कारगर साबित हो सकता है।
अगर आप कोई पूजा-पाठ विधि-विधान से करते हैं तो उस विधान में हमेशा कहा गया है कि भक्त को 'घी' का दीपक जलाकर पूजा करनी चाहिए। घी का निर्माण गौ-माता के दूध से होता है, जो सबसे पवित्र होता है और पवित्र चीजों से पूजा करने से इंसान का दिल-दिमाग-वातावरण सब पवित्र होते हैं। 'घी' के अंदर एक सुगंध होती है जो जलने वाले स्थान पर काफी देर तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है।
जिसकी वजह का पूजा का असर काफी देर तक पूजा स्थल पर रहता है। ऐसी मान्यता है कि हमारे शरीर में 7 चक्र होके हैं, 'घी' के कारण उनमें ऊर्जा का संचार होता रहता है। वास्तुदोष घर में 'घी' का दीपक जलाने से वास्तुदोष दूर होते हैं।
गाय के दूध से बना 'घी' गाय के दूध से बना 'घी' कीटाणओं को घर में घुसने नहीं देता है इसलिए इसका प्रयोग किया जाता है। पूजा स्थल में परिवर्तित 'घी' की महक से पूरा वातावरण पूजा स्थल में परिवर्तित हो जाता है और वो लोग भी इसमें शामिल हो जाते हैं जो पूजा नहीं कर रहे होते हैं।
'घी' का दीपक सकारात्मक ऊर्जा को जन्म देता है। आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना।
सच्चे मन से भगवान को याद करने के लिए किसी भी प्रकार की मुद्रा या वस्त्र धारण करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए तो केवल हाथ जोड़कर, श्रद्धा सहित भगवान के सामने प्रार्थना करना ही काफी है। इससे भक्त और भगवान के बीच एक गहरा संबंध स्थापित होता है साथ ही मन तथा मस्तिष्क को अत्यंत शांति भी मिलती है।
१. गणेशजी के सम्मुख घी का तीन बातियों वाला तीन मुखी दीपक जलाने से विद्या-बुद्धि की प्राप्ति होती है और यश-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
२. मां सरस्वती जी के सम्मुख घी या तिल के तेल का दो बातियों वाला दीपक जलाने से उत्तम शिक्षा की प्राप्ति होती है और शिक्षा के क्षेत्र में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
३. श्री लक्ष्मीनारायण के सम्मुख मौली की बाती का घी का दीपक हल्दी एवं सिन्दूर डालकर जलाने से जीवन में तरक्की एवं सफलता प्राप्त होती है।
४. धन-सम्पदा प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी जी के सम्मुख सात मुखी दीपक जलाना चाहिए।
५. भोलेनाथ शिव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सरसों के तेल का आठ या बारह मुखी दीपक जलाना चाहिए।
६. शिवलिंग के समक्ष तिल के तेल के तीन दीपक जलाने से सम्पूर्ण कष्टों का निवारण होता है और दुख-दारिद्रय दूर होता है।
७. घर के मंदिर में पांच मुखी दीपक जलाने से कोर्ट कचहरी, मुकदमा आदि से छुटकारा मिलता है और कानूनी मामलों में जीत हासिल होती है।
८. हनुमान जी के सम्मुख आठ बातियों वाला तिल के तेल का दीपक अथवा लाल बाती वाला चमेली के तेल का तीन मुखी दीपक जलाने से अनजाने भय से मुक्ति मिलती है तथा सभी संकट दूर होते हैं।
९. शनिदेव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
१०. राहु-केतु को प्रसन्न करने के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।