कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का मानना है की वो मुस्लिम लीग (Muslim league) सेकुलर हैं जिसका भारत के विभाजन में "धर्म के आधार पर विभाजन में" महत्वपूर्ण रोल था। ये वही राहुल गांधी हैं जो RSS, बजरंग दल को कम्युनल कहते हैं आज बैन करने को बात करते हैं। कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में PFI जैसा आतंकी संगठन खुलेआम मार्च करता था।
कुछ लोगों का प्रश्न है की ऐसी पार्टी को समर्थन क्या कोई हिंदू कर सकता है? जो हिंदू ऐसी हिंदी द्रोही पार्टी का समर्थन करते हैं वो वाकई हिंदू हैं?
वैसे कांग्रेस वही पार्टी है जिसे ओसामा में "जी" , पत्थरबाजों में भटके हुए नौजवान, आतंकियों में मासूम , बेटी आदि नजर आते हैं
वैसे योगी आदित्यनाथ ने काफी समय पहले ही कांग्रेस को मुस्लिम लीग वायरस से संक्रमित बताया था जिसे अब राहुल गांधी के बयान ने सत्यापित कर दिया।
योगी आदित्यनाथ में 5 अप्रैल 2019 2019 में कॉन्ग्रेस पर मुस्लिम लीग के प्रभाव को बताते हुए ट्वीट किए थे। उन्होंने लिखा था, “मुस्लिम लीग एक वायरस है। एक ऐसा वायरस जिससे कोई संक्रमित हो गया तो वो बच नहीं सकता और आज तो मुख्य विपक्षी दल कॉन्ग्रेस ही इससे संक्रमित हो चुका है। सोचिए अगर ये जीत गए तो क्या होगा? ये वायरस पूरे देश मे फैल जाएगा।” एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा था, “1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मंगल पांडे के साथ पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ मिलकर लड़ा था, फिर ये मुस्लिम लीग का वायरस आया और ऐसा फैला कि पूरे देश का ही बँटवारा हो गया। आज फिर वही खतरा मंडरा रहा। हरे झंडे फिर से लहरा रहे है। कॉन्ग्रेस, मुस्लिम लीग वायरस से संक्रमित है, सावधान रहिए।”
वहीं भारतीय राजनीतिक दलों के छद्म सेकुलरिज्म को जून 1996 में लोकसभा में सुषमा स्वराज ने भी उजागर किया था। इसमें उन्होंने बताया था कि कैसे तथाकथित सेकुलरों का सेकुलरिज्म हिंदुओं को गाली देने से शुरू होता है। कैसे हिंदू और राष्ट्र हित की बात करने वालों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है।
राहुल गाँधी ने अमेरिका से जिस सेकुलरिज्म का संदेश देने की कोशिश की है, वैसी ही सोच पर प्रहार करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा था, “हम साम्प्रदायिक हैं, हाँ, हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हम वंदे मातरम् गाने की वकालत करते हैं। हाँ, हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि धारा 370 को समाप्त करने की माँग करते हैं। हाँ, हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान में गोरक्षा और उसके वंश और वर्धन की बात करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हिंदुस्तान में समान नागरिक संहिता बनाने की माँग करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि कश्मीरी शरणार्थियों के दर्द को जुबान देने का काम करते हैं।”
वैसे Disqualified राहुल गांधी की ये हरकतें देखकर कांग्रेसी भी पूछने लगे हैं की राहुल गांधी "भारतीय" हैं या "पाकिस्तानी"
IUML इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की सच्चाई
IUML इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग पाकिस्तान के संस्थापक और इस्लामवादी मोहम्मद अली जिन्ना की ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (AIML) की एक शाखा ही है।
विभाजन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को पाकिस्तान में मुस्लिम लीग और भारत में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के रूप में स्थापित किया गया था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) अपनी वेबसाइट पर दावा करती है वह धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन ऐसा कई बार सामने आया है कि जब इस पार्टी ने खुलकर इस्लामवाद का समर्थन किया है।
मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के एक अलग देश की माँग का पुरजोर समर्थन किया था। इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की भावनाओं और इरादों को स्वतंत्र भारत में जीवित रखने के लिए मार्च 1948 में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का जन्म हुआ।
मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग से अलग होने के बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के पहले अध्यक्ष मुहम्मद इस्माइल ने भारत विभाजन आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। यही नहीं, वह बँटवारे और इस्लामवादियों के लिए अलग देश बनाए जाने का समर्थक था। यहाँ दिलचस्प बात यह है कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को ‘धर्मनिरपेक्ष पार्टी’ बताने का दावा करने वाले मुहम्मद इस्माइल ने संविधान सभा में भारतीय मुस्लिमों के लिए शरिया कानून को बनाए रखने की वकालत की थी।
भारत विभाजन के बाद मुस्लिमों की पहली राजनीतिक पार्टी आईयूएमएल के संस्थापक अध्यक्ष मुहम्मद इस्माइल ने मोहम्मद अली जिन्ना के विचारों की तरह दावा किया था कि वह और उनकी पार्टी भारत के मुस्लिमों की एक मात्र हितैषी पार्टी है। देश की आजादी के बाद कॉन्ग्रेस ने सियासी फायदे के लिए मुस्लिम लीग से भले ही हाथ मिला लिया, लेकिन कभी जवाहर लाल नेहरू ने जिन्ना की मुस्लिम लीग से गठबंधन करने से इनकार कर दिया था। कॉन्ग्रेस की अवसरवादिता के नापाक मंसूबे के चलते ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी इस्लमावादी पार्टी को मुस्लिमों के हितों की रक्षा करने के नाम मजहब की राजनीति करने का सबसे बड़ा सहारा मिला।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का नाम केरल में सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने के मामले में भी सामने आया था। जस्टिस थॉमस पी जोसेफ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2003 में केरल में हुए मराड नरसंहार की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में आईएमयूएल भी शामिल थी। जस्टिस जोसेफ आयोग की रिपोर्ट में मराड नरसंहार को ‘इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकी संगठनों की सांप्रदायिक साजिश’ बताया गया था। इसके अलावा, साल 2017 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने हिंसा के मामले की जाँच करते हुए एक नई FIR दर्ज की थी। इस FIR में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं पीपी मोइदीन कोया और मोईन हाजी को दंगों के लिए फंडिंग करने, साजिश रचने में संलिप्त पाया था।