कोई बलात्कारियों के कुकृत्य को जस्टिफाई करता है तो कोई बस रोककर बीच सड़क नमाज करने को जस्टिफाई कर रहा है। ये लोग क्या अपराधियों के ठेकेदार है? क्या ये समाज को अपराधियों का अड्डा बनाना चाहते हैं? ऐसे लोग जिस समाज में होंगे उस समाज का कैसे भला हो
आप सबको पता होगा कि कैसे खादिमों की समिति का सचिव सरवर चिश्ती अजमेर के विभत्स बलात्कार कांड के आरोपियों को justify करते हुए बलात्कार पीड़िताओं को ही दोषी बनाने का गंदा और घृणित प्रयास करते हुए कहता है की "लड़की चीज ही ऐसी होती है"
और अब AIMIM चीफ ओवैसी उत्तरप्रदेश में बस रोककर बीच सड़क में नमाज पढ़ने वाले लोगों का समर्थ करते हुए बोल रहा है कि क्या नमाज पढ़ ली अगर दो मुसलमानों ने तो कयामत आ गई।
ओवैसी ने कहा, “उत्तर प्रदेश के बरेली से बस जा रही थी। बस रास्ते में रुकी तो किसी मुसलमान ने कहा कि भाई तीन मिनट रुक जाओ। हम नमाज पढ़ लेते हैं। सिर्फ दो मुसलमानों ने वहाँ नमाज पढ़ी… तो कृष्णपाल सिंह ड्राइवर को सस्पेंड और मोहित यादव को बर्खास्त कर दिया गया।”
ओवैसी ने पूछा, “अगर नमाज पढे तो क्या कयामत आ गई? अगर नमाज पढ़ना गुनाह है तो पूरे सरकारी दफ्तरों में किसी के धार्मिक निशान नहीं होने चाहिए। किसी भी कलेक्टर के दफ्तर का उद्धाटन हो.. सचिवालय हो, कोई भी मजहबी त्यौहार नहीं होना चाहिए। दो मिनट के लिए बस रुकी तो आपने बस के ड्राइवर को सस्पेंड और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी कंडक्टर मोहित यादव को बर्खास्त कर दिया। आप सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास की बात करते हैं।”
यानी उन लोगों के कारण यदि सड़क दुर्घटना हो जाती तब क्या ओवैसी को अच्छा लगता? और यदि नमाज पढ़ने की इतनी ही चिंता है तो समय मैनेज करके घरों से निकलो ये दूसरों को परेशान करके नमाज पढ़ने को तो तुम्हारा मजहब भी स्वीकार नहीं करता। और सड़क गाडियां चलाने के लिए होती है बैरिस्टर साहब नमाज पढ़ने के लिए नहीं। पढ़ाई लिखाई किए हो या बस ऐसे ही....थोड़ी तो शर्म करो , जब देखो तब मजहब के नाम पर अपराधियों का पक्ष लेते रहते हो। सबका साथ, सबका विकास ,सबका विश्वास का मतलब ये नहीं को अपराधियों का भी साथ दिया जाय, आतंकियों का विकास किया जाय, जेहादियों का विश्वास जीता जाय...
इनके जितने नेता हैं सब टोटल बकवास करते हैं अपराधियों का साथ देते हैं, सच्चाई का (The Kerala Story, Ajmer 92, 72 hoorein) का विरोध करते हैं, तो क्या इनकी मानसिकता को समझना इतना कठिन है?
इनकी सच्चाई अब दुनिया के सामने है, कब खुलकर इनके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए और बकवास करें तो इन्हें खुलकर जवाब दिया जाना चाहिए जैसे सुबुही खान ने शोएब जमाई को दिया, इन लोगों को ऐसी ही भाषा से समझाया जा सकता है।
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