शास्त्रों में कहा गया है कि..
क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए।
और..
सहनशीलता भी पाप बन जाती है जब वह धर्म और मर्यादा को बचा ना पाये।
महाभारत में भीष्म पितामह सबसे श्रेष्ठ और महाज्ञानी थे लेकिन भीष्म पितामह के जीवन का एक ही पाप था। भीष्म पितामह ने सही समय पर क्रोध नहीं किया। द्रौपदी चीर हरण के समय भीष्म पितामह अपनी आँखों के सामने हो रहे अन्याय और दुर्योधन के पाप कर्म को देखने के बाद भी चुप रहे।
वही दूसरी तरफ रामायण में जटायु जी थे जिन्होंने सीता हरण के समय रावण पर क्रोध किया। और रावण की अपेक्षा कम बलशाली होने के बावजूद देवी सीता को बचाने के लिए रावण से लड़ाई की।
समय आने पर मृत्यु दोनों की हुई किन्तु, “मरते वक्त भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या मिली और जटायु जी को प्रभु श्री राम की गोद।
🌹जय श्री राम🌹
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