🚩'ब्रह्मदण्ड' - सावधान हे भारतवर्ष! सावधान हे विश्व! 🚩
स्वतंत्र भारतवर्ष में आज एक ऐतिहासिक घटना घटित हुई। आज ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी २०८० (रविवार २८ मई २०२३) को भारतवर्ष में नई संसद का उद्घाटन वैदिक मंत्रोचार एवं विधि विधान से संपन्न हुआ। आज भारतवर्ष के प्रधानमंत्री के द्वारा नई भव्य संसद में धर्म एवं न्याय का प्रतिक ब्रह्मदण्ड (राजदण्ड, सेंगोल) की स्थापना हुई। ब्रह्मदण्ड के समक्ष साष्टांग दंडवत होकर प्रणाम करते हुए भारतवर्ष का एक प्रधानमंत्री (प्रधानसेवक) ये सन्देश देने का प्रयत्न कर रहा है कि अब भारतवर्ष अपनी प्राचीन परंपराओं को पुनः स्थापित करने की ओर अग्रसर है।
सावधान हे भारतवर्ष! सावधान हे विश्व! ये सामान्य घटना नहीं है अपितु, ये एक अभूतपूर्व घटना है जो ये स्पष्ट सन्देश दे रही है कि अब ब्रह्मदण्ड रूपी धर्म की स्थापना हमारे लोकतंत्र के मंदिर रूपी नवीन संसद में हो चुकी है। अब इस राष्ट्र के प्रधानसेवक को सत्य, न्याय, निष्ठा के साथ इस प्राचीन राष्ट्र को संचालित करना होगा तथा राष्ट्र विरोधियों एवं दुष्टों को दंडित करना होगा। सावधान! सभी को ये विदित होना चाहिए कि ये हमारी सनातनी मान्यता रही है कि जिस राष्ट्र का राजा या कहें उसका प्रतिनिधि प्रधानमंत्री (प्रधानसेवक) धर्म के विपरीत चलेगा और न्याय करने में कोई त्रुटि करेगा तो ये ब्रह्मदण्ड झुक जाएगा और उसे ही नष्ट कर देगा। इसलिए प्रधानसेवक को सदैव इसकी गरिमा को स्थापित रखना होगा।
' सेंगोल ' एक तमिल शब्द है इसे हिन्दी में ' राजदण्ड ' एवं संस्कृत में ' ब्रह्मदण्ड ' कहा जाता है। जिन्हें ये लगता है कि ये ब्रह्मदण्ड (राजदण्ड, सेंगोल) का हमारी प्राचीन परंपराओं से क्या संबंध है तो उन सभी को ये विदित होना चाहिए कि हमारी प्राचीनकाल से परंपरा रही है है कि राजगुरु जब राजा का राज्याभिषेक करता है तो ब्रह्मदंड राजा के हाथ में देता है और उसे राष्ट्र को धर्म एवं न्याय के अनुसार संचालित करने का आदेश देता है। भारतवर्ष में चोल, चालुक्य आदि राजवंश इसका जीवंत आधुनिक उदाहरण हैं।
शास्त्रों में वर्णित इस ब्रह्मदण्ड को कैसे अपनी श्रेष्ठ ब्रह्मशिल्प विद्या के माध्यम से ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मणों ने स्थापित किया है इसका उदाहरण देखना चाहते हैं तो हमें भगवान शिव को समर्पित विरुपाक्ष मंदिर (हम्पी,कर्नाटक) में बनाई दिव्य नटराज की पत्थर पर की गई कलाकृति के साथ ब्रह्मदण्ड (राजदण्ड,सेंगोल) का भी स्थापन से समझा जा सकता है। जिसमें उस कलाकृति के साथ खड़े ब्रह्मदण्ड को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो उसके शीर्ष पर नंदी विराजे हैं। निम्न श्लोक ब्रह्मदण्ड का भगवान शिव एवं नंदी जी से क्या संबंध है वो प्रदर्शित करता है ;
नन्दी रुद्रगणैः सार्द्धं पिनाकी समतिष्ठत ।
युगान्तकाले ज्वलितो ब्रह्मदण्ड इवोद्यतः।।
-(हरिवंशपुराण/पर्व-३(भविष्यपर्व)अध्याय-३२,श्लोक-३६)
अर्थात - नन्दी और रुद्रगणों के साथ संयुक्त होकर पिनाकी (शिव) स्थित हैं, जो युगांत काल में ज्वलित हुए ब्रह्मदण्ड (राजदण्ड, सेंगोल) की भांति उभरते हैं।
हे भारतवर्ष! यह ईश्वरीय धर्मरूपी ब्रह्मदंड कुछ पुण्य आत्माओं को निमित्त बनाकर पुनः अपने सही रूप में प्रकट हुआ है। आधुनिक भारतवर्ष में जहां उसका सही स्थान होना चाहिए वहाँ प्रधानसेवक के हाथों हमारी नवीन संसद में स्थापित भी हो गया है। ये ब्रह्मदण्ड कल्याण रूपी शिव ही हैं जो सभी का कल्याण करेगा। जो दुष्ट आत्माएँ इसका एवं धर्म का विरोध करेंगी उसे ये स्वयं भविष्य में किसीको निमित्त बनाकर नष्ट कर देगा। ब्रह्मदण्ड (राजदंड,सेंगोल) को किसी राजनेता का गोल्डन वाकिंग स्टीक अर्थात स्वर्णिम सहारे वाली छड़ी बोलकर इलाहाबाद के संग्रहालय में रखकर संपूर्ण भारतवर्ष को भ्रम में स्वतंत्रता से अब तक रखा गया। इस कृत्य के लिए यह राष्ट्र इन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। सभी को ये ज्ञात होना चाहिए कि इस ब्रह्मदण्ड को सनातनी विधि विधान से अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मैकाले द्वारा स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी को सौंपा गया था। अब दुराचारी शक्तियों का विनाश इस दिव्य ब्रह्मदण्ड की पुनः स्थापना के साथ प्रारंभ हो चुका है। जिन विरोधी दुरात्माओं को अपनी रक्षा करनी है इन्हें हमारी नवीन संसद में स्थापित धर्मरूपी ब्रह्मदण्ड के छत्रतले अर्थात आश्रय में आना होगा अन्यथा, ये ईश्वरीय दंड किसीको निमित्त बनाकर उन्हें नष्ट कर देगा।
ब्रह्मदण्ड इति ख्यातो वपुषा निर्दहन्निव।
दिव्यरूपप्रहरणो ह्यसिचर्मधनुर्धरः।।
- (हरिवंशपुराण/पर्व-३(भविष्यपर्व)/अध्याय-२९,श्लोक-५)
अर्थात - उस (शिवरूपी) शरीर(अंश) को जिसे ब्रह्मदण्ड के नाम से प्रसिद्ध किया जाता है, वह शरीर को अग्नि की भाँति नष्ट कर देता है। वह (शिव) दिव्यरूप को धारण करने वाला है और धनुषधारी हैं।
यह श्लोक शिव के गुणों को व्यक्त करता है और उनके आद्यात्मिक रूप को वर्णित करता है। यह कहता है कि शिव उन शक्तियों को प्रकट करते हैं जो समस्त ब्रह्मांड को नष्ट कर सकती हैं और जो ब्रह्मदण्ड रूपी दिव्यरूप को धारण करते हैं। इसके साथ ही ये श्लोक शिव को एक धनुष धारी के रूप में भी वर्णित करता है, जिससे वह असुरों और बुराइयों का नाश कर हैं। सभी को ये विदित रहे शिव ही धर्म का प्रतिक हैं। शिव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष संचालित है। यही शिव रूप में समस्त लोकों का कल्याण करते हैं और ये ही धर्म का लोप होने पर रूद्र रूप में प्रलय करते हैं।
ब्रह्मदंड शिव स्वरूप है और उनका एक प्रकार का दिव्य अस्त्र भी है जिससे दैत्यों एवं राक्षसों का संहार भी करते हैं। जिसका प्रमाण हरिवंश पुराण में दिया गया है;
अग्निं संधाय धनुषि शितं बाणं सुपत्रिणम् ।
ब्रह्मास्त्रेणाभिसंयोज्य ब्रह्मदण्डं शिवोऽव्ययः।
मुमोच दैत्यनगरे त्रिधाशब्देन संज्ञितम्।।
(हरिवंशपुराण/पर्व-३(भविष्यपर्व)/अध्याय-१३३,श्लोक-७५)
अर्थात - धनुष में तीरसहित सुन्दर विशालकाय अग्नि को स्थापित करके, उसी धनुष के बाण पर ब्रह्मास्त्र का संधान करके और अविनाशी शिव द्वारा अव्ययी ब्रह्मदण्ड को संन्योज्य करके, वे त्रिदशों (देवताओं) द्वारा जाने जानेवाले दैत्यनगर में छोड़े गए।
महाभारत जैसे श्रेष्ठ ऐतिहासिक ग्रंथ में भी ब्रह्मदण्ड का उल्लेख है। इसे दुष्टों एवं राक्षसों का संहारक बताया गया है ;
स एष निहतः शेते ब्रह्मदण्डेन राक्षसः।
चार्वाको नृपतिश्रेष्ठ मा शुचो भरतर्षभ।।
- (महाभारतम्-१२, शांतिपर्व/अध्याय - ३८, श्लोक - ११)
अर्थात - हे भरतर्षभ! यह राक्षस ब्रह्मदण्ड (धार्मिक न्यायदंड) द्वारा मारा गया है और वह शय्या पर शवरूप में पड़ा है। हे चार्वाक (एक नास्तिक दर्शन) राजा! तुम चिंता ना करो।
'ब्रह्मदण्ड' (सेंगोल) धर्मदण्ड है ये स्वयं शिव स्वरूप है। शिव जनमानस के कल्याण के स्वरूप हैं। यह ब्रह्मदण्ड धर्म एवं न्याय का प्रतीक है। ये रूद्र रूप में दुष्टों एवं राक्षसों का संहारक है। राष्ट्र में सत्य एवं धर्म की स्थापना ही इसका परमलक्ष्य है।
हे शिवरूपी! ईश्वरी अंश धर्मरूपी ब्रह्मदण्ड! इस धरा पर स्थित पवित्र, स्वर्णिम एवं श्रेष्ठभूमि भारतवर्ष की सदैव रक्षा करना एवं प्रधानसेवक का मार्गदर्शन करते हुए इस राष्ट्र की सनातनी परंपराओं को पुनः स्थापित करते हुए भारतवर्ष को जगतगुरु के रूप में पुनः स्थापित करना।
- पं.संतोष आचार्य