नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री के द्वारा ही किया जाना सर्वथा उचित और गरिमा के अनुकूल है।
पुराने संसद भवन के विषय में स्पष्ट रूप से विशेषज्ञ कहते आ रहे थे कि नया संसद भवन का निर्माण अति आवश्यक है। जब कांग्रेस की मीरा कुमार लोकसभा की अध्यक्ष थीं तो उसी समय से नए संसद भवन के किए योजना पर चर्चा प्रारम्भ हो गयी थी।मनमोहन सिंह की सरकार ने नए संसद भवन के लिए योजना को अमल में लाने की शुरुआत की थी। किन्तु कांग्रेस को तो भ्रष्टाचार ही सर्वोपरि था। उसकी सरकार में तो किसे कितना शेयर देना होगा इसी को तय करने में समय लग जाता था, और इसीलिए काम शुरू नहीं हो पाता था।बहुत लंबे चौड़े खर्च की योजना बन रही थी, इसीलिए मनमोहन सिंह की सरकार सोचती ही रह गयी और नए संसद भवन का निर्माण नहीं हो पाया।
मोदी सरकार आयी और नए संसद भवन के विषय में त्वरित कार्रवाई होने लगी।योजना बनी। स्वीकृति मिली। काम कराने के लिए तैयारी योजना बन गयी कांग्रेस ने अड़ंगा लगाना शुरू किया। कई लोगों के नाम से दिल्ली हाई कोर्ट और फिर सुप्रिम कोर्ट में कई बार इस भवन के निर्माण को रोकने के लिए याचिकाएं दाखिल करायी गईं। कोरोना काल को भी बहाना बनाया गया। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि कांग्रेस अपने समय में जितना खर्च इस योजना पर करना चाह रही थी उससे बहुत कम खर्च पर मोदी सरकार ने नए संसद भवन को बनाने का संकल्प ले लिया। सुप्रिम कोर्ट ने इस योजना को राष्ट्रीय महत्व की विशिष्ट योजना घोषित कर दिया। अंत में काम प्रारम्भ हो ही गया। तीन शिफ्ट में बहुत तेजी से काम चला। प्रोजेक्ट से जुड़े श्रमिक परिसर में ही रहते थे। कोरोना की वजह से किसी प्रकार की बाधा नहीं हुई।
प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन और शिलान्यास किया।विपक्ष मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार करता रहा। संसद भवन के साथ साथ सभी केंद्रीय विभागों को भी उस बड़े विशाल परिसर में जगह दे दी गयी। कांग्रेस सहित विपक्ष सोचता रहा कि समय पर २०२४ के पहले तो काम पूरा नहीं ही हो पाएगा। किन्तु मोदी हैं तो हर कुछ मुमकिन है। वही हुआ। कम खर्च में समय पर यह भव्य भवन बन ही गया। जब भूमि पूजन भाजपा के समय हुआ तो उदघाटन भी होना ही था।सरकार ने सही निर्णय लिया कि भूमि पूजन मोदी ने किया तो उद्घाटन भी मोदी ही करेंगे।
महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के जन्मदिन का भी २८ मई को ही है। अतः इस अत्यंत शुभ दिन के सुअवसर पर प्रधानमंत्री उद्घाटन करेंगे।
एक और ऐतिहासिक क्षण आ रहा है। गृहमन्त्री ने बताया कि जब अंग्रेज हमें ठगे तो लोर्ड माउंटबेटेन ने सोचा कि सत्ता हस्तांतरण के अवसर पर सनातनी परंपरा से कुछ किया जाए।दक्षिण में चोल राजाओं की परंपरा थी कि नए राजा को एक राजदंड दिया जाता था। इसे सोंगल कहा जाता है। इस राजदंड में शिव और नंदी का स्थान है।
माउन्टबेटेन ने यह राजदंड जवाहरलाल नेहरु को सौंपा था। पर नेहरू ने इसे अन्यत्र रख दिया इतने वर्षों के बाद इस राजदंड को खोज निकाला गया, अब २८ मई को ही यह राजदंड लोकसभा के अध्यक्ष के पास ही सदा रखा रहेगा।
२८ मई को सनातनी विधि विधान से ०७ बजे प्रातः से पूजा अर्चना शुरू होगी।
लगता है हिन्दू राष्ट्र की ओर सरकार ने बिना कुछ कहे कदम बढ़ा दिया है।
विपक्ष की कुछ पार्टियां उद्घाटन सनारोह का बहिष्कार जरेगी। जनता सब देख रही है। २०२४ में मतदाता जन देशद्रोहियोँ को सबक सिखाएगी।
एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम यह भी होगा कि प्रधानमंत्री २००० श्रमिकों को सम्मानित भी करेंगे। इन्हीं श्रमिकों के कारण समय पर काम पूरा हुआ है।