स्लो प्वाइजन यानि धीमे जहर के बारे में सुना है आपने? धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाते हुए, खोखला करते हुए एक दिन बिना किसी तात्कालिक कारण और लक्षण के प्राण ले लेनेवाला जहर। ऐसा ही धीमा जहर पिछले कई दशकों से आपके मन मस्तिष्क में, आपके निजी एवं सामाजिक जीवन में मीडिया के विभिन्न साधनों द्वारा घोला जा रहा है जिसके कारण एक अच्छे खासे जनसमूह को आज आप चारित्रिक पतन असंवेदनशीलता भ्रष्टाचार, अवैध संबंध, नग्नता, पॉर्न आदि जैसे समाज को नष्ट करके रख देनेवाले विषयों के पक्ष में खुलकर खड़ा देखते हैं।
हालिया उदाहरण के रूप में संलग्न चित्र में 'गृहशोभा' पाक्षिक मैगजीन में एक अंतर्राष्ट्रीय चटपटे समाचार को परोसते समय प्रयोग की गई भाषा को देखिए। फिलीपींस की पॉर्नस्टार्स का जिक्र करते हुए स्पष्ट रूप से भारतीय लड़कियों को उकसाया जा रहा है कि, "यह कोई बुरी लाइन नहीं है और अगर कोई बिंदास है उसे अपने बदन पर प्राउड है तो जरूर ट्राई करना चाहिए, भारत की लड़कियों के दरवाजे तो बंद रहते हैं पर यह जरूर है कि हर देश की फिल्म इंडस्ट्री विदेशी टैलेंट को वैल्कम करती है।"
अब आप मुझे बताइए, इससे निकृष्ट और क्या हो सकता है कि कोमल मन की नई आयु की टीनएजर लड़कियों को यह कहकर पॉर्नस्टार बनने के लिए उकसाया जा रहा है कि अगर आप बिंदास हो और अगर आपको अपने बदन पर प्राउड हो तो पॉर्नस्टार बनने के लिए इंटरनेशनल पॉर्न इंडस्ट्री उसका बाँहें फैलाकर इंतजार कर रही है? क्या आपको नहीं लगता कि इस प्रकार के घटिया लेख से पढ़ने लिखने की आयु वाली टीनएज बच्चियों को फिगर कॉंशस बनाकर उनका जीवन बर्बाद करने का घृणित षड्यंत्र रचा जा रहा है? इतना ही नहीं, यह लेख यह भी कहता है कि भारत में तो लड़कियों के दरवाजे बंद रहते हैं पर विदेशों में पॉर्नस्टार बनने के लिए उनका वैलकम है। पूरा कंटेंट संलग्न चित्र में पढ़िए। आपके सुविधापूर्वक पढ़ सकने हेतु मैनें टाइप भी करके दिया हुआ है।
"हमें तो गरूर है: अल्मा,मोई, रोजन्ना और अरा फिलीपींस की फिल्म पौर्नस्टार की तहलका मचाने वाली ऐक्ट्रैसें हैं और अब फिल्म के नए संस्करण के लिए नई लड़कियों को ढूंढ रही हैं। यह कोई बुरी लाइन नहीं और अगर कोई बिंदास है, उसे अपने बदन पर प्राउड है तो जरूर ट्राई करना चाहिए, भारत की लड़कियों के दरवाजे तो बंद रहते हैं पर यह जरूर है कि हर देश की फिल्म इंडस्ट्री विदेशी टेलैट को वैलकम करती हैं।"
इस पत्रिका के संपादक के मन में भारतीय समाज के प्रति इतना जहर भरा हुआ है कि बात फिलीपींस की हो रही है पर बिना कारण, बिना किसी आवश्यकता के "भारत की लड़कियों के दरवाजे तो बंद रहते हैं..." वाक्य के साथ अंततः अपने कुत्सित इरादे प्रकट कर ही दिए हैं कि कैसे भी करके भारतीय कन्याओं को उकसाना है कि अगर वे किसी तरह देश से बाहर निकल जाएं तो अपने जवान, खूबसूरत बदन के जरिए हॉट पॉर्नस्टार बनकर लाखों दिलों पर राज कर सकती हैं।
जरा सोचकर देखिए टीनएज की कंफ्यूजन भरी सपनीली अटैंशन सीकिंग आयु में भावुक कल्पनाशीलता के हाथों बहकावे में आकर हमारे परिवार की कोई बच्ची अगर इस सपने को सच करने की ख्वाहिश में घर से भाग गई और पॉर्न इंडस्ट्री के हाथों में पड़ गई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? आखिर किस मकसद से लेखक ने "भारत में तो लड़कियों के दरवाजे बंद रहते हैं पर विदेशी फिल्म इंडस्ट्री जरूर बाहर के टैलेंट का वैलकम करने के लिए तैयार रहती है" जैसा जहरीला वाक्य इस समाचार में जोड़ा जिसका भारतीय पृष्ठभूमि से कोई लेनादेना ही नहीं है? इस पत्रिका को पढ़नेवालों ने इस लेख, इस भाषा, इस वाक्य, इस खतरनाक इरादे पर ध्यान क्यों नहीं दिया? आम हिंदीभाषी पाठकों के घरों में पाई जानेवाली यह मैगजीन सौंदर्य, फिटनेस, व्यंजन के बहाने क्या-क्या सिखा रही है, देख पा रहे हैं आप? क्या ऐसी मैगजींस के किसी भी पाठक के घर में बेटियाँ नहीं रहतीं? आखिर कब हम अपनी जिम्मेदारी समझेंगे? कितने नुकसान के बाद?