तीन सहेलियों /सहपाठियों को बात चीत
"अरे श्वेता तू कल ऑफिस क्यों नही आई थी", रजिया और रोजी ने अपनी सहकर्मी से उत्सुकता वश पूछा।
" वो कल वट सावित्री व्रत था न। इसीलिए एक दिन की लीव ले ली थी।"
रोजी - ये क्या होता है श्वेता? मुझे तो पता ही नही है। क्या ये वही व्रत है जिसमें यमराज से किसी लेडी ने अपने पति की जान बचाई थी?
रजिया - याल्लाह श्वेता, तू भी इन सब ढकोसलों में मानती है। ओ कमोन यार, अब ये मत कहना कि तेरे व्रत रहने से तेरे पति की उम्र लंबी होगी। आई डोंट बिलीव ऑन दीज नॉनसेंस।
और रजिया ये बोलकर हँस दी।
श्वेता - शटअप रजिया। मेरे व्रत रखने से तू क्यों इतना ओवर रिएक्ट कर रही है? क्या मैंने कभी कुछ कहा जब तू महीने महीने भर सवेरे सवेरे दो किलो खाकर पूरा दिन भूखा प्यासा रहने की नौटंकी करके फिर से शाम को चार किलो खाया करती है और फिर ऑफिस में सबको इसकी कहानी बता कर दूसरों से अपने काम करवाया करती है। मेरा व्रत तुझे ढकोसला लग रहा है और तेरे महीने भर की नौटंकी से तुझे बड़ी जन्नत मिली जा रही है। वैसे तुझे जन्नत में मिलेगा भी क्या। वहाँ तो बस हूरें हैं जो तेरे शौहर के लिए हैं। तू तो वहाँ भी खेती ही रहेगी। बड़ी आई मेरी आस्था को ढकोसला बोलने वाली।
रोजी - लेकिन श्वेता, ऐसा थोड़े ही होता है यार। तू ही सोंच क्या कोई ऐसे किसी की जान बचा थोड़ी सकता है। ऐसे किसी पेड़ में इतनी शक्ति होती है क्या भला?
श्वेता - बोलो भला, ये तुम बोल रही हो। जो ये मानती हो कि यसू एक वर्जिन औरत से पैदा हुए। जो ये मानती हो कि मरने के तीन दिन बाद यसू फिर से वापस आये। जो ये मानती हो कि किसी पादरी के हाथ से पवित्र पानी पीने से बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।
थोड़ी तो शर्म कर लो यार रोजी। और बरगद का पेड़ प्राणवायु का बहुत बड़ा स्रोत है। उसकी जड़ें सॉइल एरोजन को बड़े पैमाने पर रोकती हैं। न जाने कितने पक्षी उसकी शाखाओं पर घोसला बना कर अपना संसार बसाते हैं। गिलहरी, खरगोश, साँप जैसे न जाने कितने जीव उसकी जड़ों में अपने घर बसाते हैं। रोज न जाने कितने लोगों को छाया देते हैं बरगद के पेड़। तुझे क्या लगता है कि ये सारी छोटी चीजे हैं। अभी तो मैंने औषधियों की बात तो की ही नही है जो बरगद की छाल, पत्तों और फल से बनती हैं। और मुझे लगता है कि बरगद की पूजा से मेरे पति की आयु लंबी होगी तो इससे तुझे क्या दिक्कत है बोल?
रजिया, रोजी से - छोड़ न यार, हम कितना भी समझा लें, इनकी जाहिलियत खतम नही होगी। शी इज सो ऑर्थोडॉक्स।
रोजी (हाँ में हाँ मिलाते हुए) - और नही तो क्या, और फिर सिर्फ औरत ही क्यों पूजा करे, व्रत करे। पति तो कभी ये सब नही करते। श्वेता यू शुड थिंक अबाउट इट।
श्वेता - रजिया ये बात तू तो बोल ही मत। जिसे उसका मर्द खेती समझता है वो ऐसी बात कर रही है। अरे तेरी तो आस्था की किताब में ही लिखा है कि औरत खेती है। और अभी पिछले साल ही तो तेरे शौहर ने तुझे तीन बार एक शब्द बोलकर बेसहारा कर दिया था, फिर तूने एक बकरा दाढ़ी वाले बुड्ढे के पास रात बितानी पड़ी थी अपने शौहर के पास दोबारा जाने के लिए। वो तो बड़ा साइंटिफिक काम था, है ना?
और रोजी तेरा हसबैंड भी तो तुझे छोड़कर पिछले छह महीने से किसी और औरत के पास रह रहा है ना। तेरा तो डिवोर्स केस भी चल रहा है कोर्ट में। मुझे ज्ञान देने के बजाय यू शुड थिंक अबाउट यौरसेल्फ। समझी।
दरअसल तुम लोगों के बिलीफ्स ही ऐसे हैं कि तुम मेरी आस्था को समझ ही नही सकतीं। हमारे यहाँ विवाह कोई कॉंट्रैक्ट नही है बल्कि एक संस्कार है। हमारे यहाँ एक जन्म का नही बल्कि सात जन्मों का हिसाब किताब चलता है, जबकि तुम लोगों के यहाँ तो पुनर्जन्म का कांसेप्ट ही नही है। हमारे यहाँ स्त्री को पुरुष की वामांगी कहा जाता है अर्थात बायां आधा अंग। वो बायां अंग जिस तरफ शरीर में ह्रदय, बायीं किडनी, स्पलीन, लीवर का कुछ भाग, पैनक्रियाज और आंत जैसे अंग होते हैं। अतः हमारी हर बात का पति की सेहत पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। लेकिन रजिया तुम ये समझ ही नही सकतीं क्योंकि तुम्हारे यहाँ पत्नी को बायां अंग नही बल्कि खेती समझा जाता है।
और आखिर में, मुझे और मेरी आस्थाओं को अटैक करना बन्द करो वरना मैं तुम्हारी आस्थाओं को लेकर ऐसी ऐसी बातें बोलूँगी और ऐसे ऐसे फैक्ट्स दूँगी कि तुम्हारी आस्थाएँ तहस नहस हो जायेंगी। एक काम करो ना, तुम लोग वहाँ रहा करो..... पूछो कहाँ?
रजिया (चिढ़कर) - कहाँ???
श्वेता - औकात में। समझी कि नही समझी।।