#NoSameSexMarriege (👈 जो साथी ट्विटर पर हैं वह इस हैशटैग के साथ ट्वीट कर समलैंगिक विवाह का विरोध अवश्य करें)
✊केंद्र सरकार के अलावा मुस्लिम संगठन ने भी किया समलैंगिक विवाह का विरोध पहले जमीयत उलेमा-ए-हिंद और फिर मुस्लिम निकाय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया, तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल ने भी इसका विरोध किया...
अब बाद अखिल भारतीय संत समिति ने भी किया समलैंगिग विवाह का विरोध
अखिल भारतीय संत समिति ने सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है और कहा है कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा हमारे समाज के लिए अलग-थलग है और इसे पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है। अखिल भारतीय संत समिति ने आवेदन में कहा है कि कुछ अन्य पश्चिमी देशों की तरह जो समलैंगिक संबंधों का पालन कर रहे हैं, हम अपने भारतीय समाज में इसका पालन नहीं कर सकते हैं।
अखिल भारतीय संत समिति ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता विवाह की भारतीय अवधारणा को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं जो कि समान-लिंग विवाह की अवधारणा की वकालत करके अपने आप में एक संस्था है। अखिल भारतीय संत समिति ने कहा, "समान-सेक्स विवाह की अवधारणा हमारे देश में पूरे परिवार व्यवस्था पर हमला करने जा रही है।"
अखिल भारतीय संत समिति ने प्रस्तुत किया कि हिंदू धर्म में, विवाह को एक धार्मिक संस्कार के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें एक जैविक पुरुष और महिला धर्म और प्रजनन के शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए एक स्थायी संबंध में बंधे हैं। संगठन ने कहा, "हिंदुओं में विवाह का उद्देश्य केवल शारीरिक सुख या संतानोत्पत्ति नहीं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति है, बल्कि यह सोलह संस्कारों में से एक है।"
अखिल भारतीय संत समिति ने प्रस्तुत किया कि भारतीय कानूनी प्रणाली में "विवाह" की विधायी नीति एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच रही है। "पति", "पत्नी", "माँ", "पिता", "भाई", "बहन" आदि जैसे शब्दों के उपयोग के साथ स्पष्ट और निश्चित बायनेरिज़ हैं। ऐसी परिभाषाओं का कोई भी विचलन/कमजोर विधायी मामला है। सामाजिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं और व्यापक सामाजिक-कानूनी शोध पर आधारित नीति। अखिल भारतीय संत समिति ने प्रस्तुत किया कि विवाह की अवधारणा किन्हीं दो व्यक्तियों के मिलन की सामाजिक-कानूनी मान्यता से कहीं अधिक है।
NCPCR ने भी इसके परिणाम घातक बताये (बच्चे होंगे नहीं तो ये गोद लेंगे जिससे समाज बर्बाद हो जायेगा)
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने सुनवाई के लिए अपनी याचिका लगा दी है। एनसीपीसीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आयोग का कहना है कि समलैंगिक अभिभावक द्वारा पाले गए बच्चों की पहचान की समझ को प्रभावित कर सकते है। इन बच्चों का एक्सपोजर सीमित रहेगा और उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा।
समलैंगिक विवाह के विरुद्ध 21 पर पूर्व जजों ने भी आवाज उठाई उन्होंने समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई पर ही असहमति जताई, उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर संसद और राज्य विधानसभा में व्यापक बहस होनी चाहिए। ऐसे कानू।न बनाने से पहले समाज से राय जरूर लेनी चाहिए
ऐसी भयानक कुरीति समाज में ना आ सके इसलिए विरोध तो समाज के हर घटक को करना चाहिए केवल सरकार और संगठनों कि यह जिम्मेदारी नहीं। सभी भारतीय जो भारतीय संस्कृति और भारतीय परंपराओं का सम्मान करते हैं जो पाश्चात्य संस्कारों को अपने समाज में प्रविष्ट नहीं होने देना चाहते उन्हें ऐसी हर कुरीति का विरोध करना चाहिए अन्यथा लिव इन रिलेशनशिप और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर जैसी घृणित परंपराएं भी हमारे समाज का हिस्सा बनकर हमारे समाज को बर्बाद करेंगे