Same sex merriage : केंद्र सरकार से लेकर , हिंदू और मुस्लिम संगठन, जैन मुनि, रिटायर्ड जजेस, और अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया भी विरोध में..
समलैंगिक विवाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है और शुरू से ही इस मामले में विरोध जारी है। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने विरोध किया और मामला संसद पर छोड़ने का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दिया, लेकिन CJI ने कहा "मैं हूं सुप्रीम कोर्ट का इंचार्ज , मैं करूंगा फैसला"
केंद्र सरकार के बाद अखिल भारतीय हिंदू संत सभा ने विरोध दर्ज करवाया, उसके अलावा उलेमा ए हिंद नामक मुस्लिम संगठन ने भी विरोध दर्ज किया, जैन मुनि लोकेश मुनि जी ने भी CJI साहब को पत्र लिखकर इस मामले में अपना विरोध प्रकट किया, साथ ही 21 रिटायर्ड जजेस ने भी सुप्रीम कोर्ट में हो रही समलैंगिक विवाह की सुनवाई का विरोध करते हुए कहा कि यह मामला संवेदनशील है और इस पर संसद तथा राज्य विधानसभाओं में व्यापक बहस होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सबकी बात अनसुनी करते हुए सुनवाई चालू रखी और कुछ ऐसी बातें भी कही जिसका जमकर विरोध हुवा सोशल मीडिया पर मीम्स भी बनाए गए।
लेकिन सायद ईश्वर को भी ये मंजूर नहीं (क्योंकि ये मामला ईश्वर की प्रकृति के भी विरुद्ध है जहां भोगवादी मानसिकता एक बीमारी को समाज पर् लादना चाह रही है) सुनवाई कर रहे 2 जजेस को करना हो गया
अब आपको बता दें को देशभर के बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में प्रस्ताव भेजा है (बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी भारतीय विधिज्ञ परिषद)
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा कि सभी राज्य परिषदों के साथ बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया है. बैठक में सर्वसम्मति से राय बनी है कि समलैंगिक विवाह का मुद्दा संवेदनशील है. इसके मद्देनजर विविध सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि के हितधारकों को ध्यान में रखते हुए यह सलाह दी जाती है कि यह सक्षम विधायिका इन विभिन्न सामाजिक, धार्मिक समूहों के साथ विस्तृत परामर्श प्रक्रिया के बाद निर्णय ले.
समलैंगिक जोड़ों के विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले का विरोध करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिलों ने कहा कि इस मामले को पूरी तरह पार्लियामेंट के ऊपर छोड़ देना चाहिए. बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा कि इस तरह के संवेदनशील मसले पर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. बार काउंसिल के एक प्रस्ताव में कहा गया है कि यह मुद्दा पूरे भारतीय समाज के लिए बेहद संवेदनशील है.
हमारी संस्कृति के खिलाफ है समलैंगिक विवाह
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि देश के सामाजिक-धार्मिक ढांचे को देखते हुए हमने सोचा कि यह समलैंगिक विवाह का विचार हमारी संस्कृति के खिलाफ है. इस तरह के फैसले अदालतों द्वारा नहीं लिए जाएंगे. इस तरह के कदम कानून की प्रक्रिया से आने चाहिए.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा,
Live law.in के अनुशार "माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले की लंबितता के बारे में जानने के बाद देश का प्रत्येक जिम्मेदार और विवेकपूर्ण नागरिक अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित है।" देश के 99.9% से अधिक लोग समलैंगिक विवाह के विचार का विरोध करते हैं। बीसीआई के अनुसार अधिकांश आबादी का मानना है कि याचिकाकर्ताओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला देश की सामाजिक-सांस्कृतिकता, धार्मिक संरचना के खिलाफ जाएगा।