. #शुभ_रात्रि
हमें कर्मों का फल अवश्य ही भुगतना पड़ता है, क्योंकि मनुष्य ही अच्छे और बुरे कर्म करता है, पशु नहीं।
इसलिए हम अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ेगा चाहे देर हो या सवेर कर्म सिर्फ हमें भूगतने ही पडेंगे। इसलिए कर्म करने से पहले एक बार अवश्य सोचें क्या मैं यह सही कर रहा हूं, अगर कर्म करने से पहले अच्छे से सोच ले तो शायद हम बुरा कर्म करने से बच सकते हैं। अगर आपने अपने आप को बचा लिया तो सजा से भी बचा लिया। आपने बुरा कर्म कर लिया तो एक न एक दिन भगवान अवश्य सजा देगा इस जन्म में नहीं अगले जन्म में ही कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
श्री कृष्ण जी ने भी गीता में- कर्मों को ही सबसे उत्तम बताया है क्योंकि कर्म हो हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं। अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो हमारे साथ अच्छा होगा अगर हम बुरे कर्म करेंगे तो हमारे साथ बुरा ही होगा।
भगवान की न्याय वयवस्था बहुत ही ज्यादा सुदृढ है.कर्म का फल अच्छे कार्य करने वाले को अच्छा और बुरे कर्म करने वाले को बुरा फल अवश्य ही भोगना पड़ेगा।भगवान् के देर भले ही हो जाए मगर अन्धेर हो ही नहीं सकता। जिसको आप देर समझते है वह देर भी नहीं है।
प्रभु ने प्रत्येक कर्म के फलीत होने का समय पहले से ही निर्धारित कर रखा है। समय से पहले या पीछे फल की प्राप्ति नहीं होगी । प्रभु की प्रत्येक रचना प्रत्येक नियम इतना ज्यादा गहरा है कि हरेक प्राणी उसको समझ या जान नहीं सकता।
आज जो कर्म हम कर रहे हैं परिपक्व होकर उनसे ही हमारे भाग्य की रचना होती है। हमारे भाग्य के निर्माता हम खुद ही है और प्रत्येक मनुष्य को उसके भाग्य के अनुसार उसे फल या कुफल अवश्य भोगना पड़ेगा ही ।इस समय हम जो दुख भुगत रहे है।
यह हमारे ही पिछले जन्मो का या इसी जन्म के हमारे किए गए पुण्यों या बुरे कर्मों का पापों का फल है। प्रभु को दोष नहीं देना चाहिए।
भगवान् का एक विधान यह है कि हमारे कर्म ,विचार और भावना को अनुसार ही हमें सुख या दुःख की प्राप्ति होगी और वह सुख या दुःख हमे खुदको ही भोगना पड़ेगा। मनुष्य के कब किये हुए पाप का फल कब मिलेगा- इसका कुछ पता नहीं । भगवान् का विधान विचित्र है।
जब तक पुराने पुन्य प्रबल रहते है,उग्र पाप का फल भी तत्काल नही मिलता। जब पुराने पुण्य खत्म होते हैं तब पाप की बारी आती है।
मगर सत्संग दण्ड को कम करा सकता है या फिर कुछ प्रसाद के रूप में भी दे सकता है। अपने दुखों को हसं हसं झेलो या रोकर झेलो यह हमारे कर्मो का फल तो हमे अवश्य अवश्य ही पडेगा, फिर रोकर क्यो झेले?
रोने से कष्ट दुगना हो जाता है और हँसते हँसते रहने से आधा हो जाता है। जिस दिन पाप कर्म हो जाए तो अगले दिन उपवास रखो यह एक उत्तम यह कर्मभूमि है। कर्म तो करना पडेगा कर्म नहीं करोगे तो पाप चढेगा। जैसा कार्य कर्म होगा वैसा ही फल भी भोगना पडेगा। फिर दुष्कर्म क्यो करे ?
प्रत्येक कर्म प्रभू को याद करके करेंगे तभी अच्छे फल ही भोगेगे।
धन , दौलत , सुयश , खुशिया , सफलताएँ , सुखी परिवार रोना हमारे कर्मो का फल है और पीड़ा, दुख , बिमारियो आफत , दुखी परिवार , रोना ,हमारे ही बुरे कर्मों का फल है। भूतकाल में हमने जो किया था उसका फल हमें अब मिल रहा है ।
भूतकाल में हम जो भोग चुके है या हो सकता है इस जन्म में भोगेगे।
श्रीकृष्ण ने समझाया कि भीष्म पितामह सुख - दुख से ,जय - पराजय से परे है। वो जानते हैं कि जो होने वाला था यही हुआ। भीष्म ने श्रीकृष्ण से कहा भगवान मैने ध्यान करके अपने ७३ वे जन्म तक देखा।
मैने तो कोई कुकर्म नहीं किया फिर मुझे बाणों की शय्या पर क्यों सोना पड़ा ?
श्रीकृष्ण मुस्कुराकर बोले ....हे संयममूर्ति भीष्ण 73 वे जन्म के पहले 74 वें जन्म तक जब आपको पता चलता कि जम आप किशोर थे तब वन में घूमने गए वहा पत्ते पर बैठी टिड्डी के शरीर में आपने कांटा चुभोया था उस कर्म का फल घूमते - घूमते अब मिल रहा है।
कर्म का फल छह साल में दुगुना , बारह साल में चार गुना , अठारह साल में आठ गुना , चौबीस साल में सोलह गुना - इस प्रकार मिलता है।
इसलिये जब आप कर्ता होकर कर्म कर रहे हैं तो सोचे लें कि इस का क्या फल होगा।
. *🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🚩*