. #शुभ_रात्रि
लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हर रोज केवल इंसान भागता है और भागता ही रहता है। लेकिन अगर आप अध्यात्म का सहारा और नियमों के अनुसार जीवन यापन करेंगे तो कई सारी समस्याएं आपकी हल हो जाएंगी और लक्ष्य भी आसानी से प्राप्त हो जाएंगे।
जीवन में रौनक तब है, जब वह बड़े सहज और सरल तरीके से बिना किसी प्रपंच के जिया जाए। जीवन जैसा निश्छल, निष्कपट है, वैसा ही जिया जाए तो जीना वरदान बन जाता है। जीवन जैसा मिला है उसको हम वैसा ही जीते हैं, तो यह जीवन का सम्मान होता है। अधिकतर हम जैसा जीवन है, उसे छोड़ दिखावे का जीवन जीने लगते हैं। यह दिखावे का जीवन हमें बाहर तो अपने को कुछ बड़ा दिखाने में मदद करता है, लेकिन भीतर से खोखला भी करता चलता है। क्योंकि आडंबर से भरा जीवन अहंकार पर आधारित होता है और अहंकार हमारी जीवंतता को खा जाता है। अहंकार में हम केवल बाहर की तरफ देखकर जीते हैं, जबकि जीवन कहीं भीतर बह रहा होता है।
अक्सर हम दूसरों को दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी डींग मारने लगते हैं। अनेक ऐसे कार्य करने लगते हैं, जिससे लोग सोचें कि अब यह रईस हो गया है या पहले जैसा दरिद्र नहीं रहा। इसकी जीवन में बिलकुल भी जरूरत नहीं होती। लेकिन अहंकार को दिखावे की आवश्यकता होती है। दिखावा ही अहंकार को सींचता है। जबकि जीवन व्यक्तिगत है, दिखावे से उसका कोई सरोकार नहीं। जैसे रात को जब हम सोने जाते हैं, तो दिखावे के महंगे कपड़े, आभूषण, धन, जूते, घड़ी आदि सब बाहर छोड़ देते हैं। और तो और मानसिक रूप से पद, प्रतिष्ठा और चकाचौंध भी सब बाहर छोड़ देना होता है, तब जाकर रात की नींद नसीब होती है। ऐसे ही जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो बाहर का सब बाहर ही छोड़ देते हैं। तब ध्यान हमें आनंद से भरता है।
जैसे पूर्णिमा की रात चांद देखते समय मैं, मेरा का ख्याल छूट जाता है तो चांदनी हमें आनंद से भर देती है। ऐसे ही प्रकृति का आनंद भी हम तभी ले सकते हैं जब अपने अहंकार और आडंबर भरे जीवन को छोड़कर प्रकृति की तरह सहजता को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं। या यूं कहें कि जीवन में शांति, आनंद, प्रसन्नता केवल तभी अनुभव होती है, जब दिखावे की ओढ़नी उतार दी जाती है। लेकिन जो लोग केवल दिखावे का जीवन जीते हैं, उनके सामने एक समय ऐसा आता है जब उनका जीवन भारी दुख, निराशा और उदासी से भर जाता है। जीवन की जीवंतता दिखावे के जीवन से इस कदर ढक जाती है कि उसका वे अनुभव ही नहीं कर पाते।
अब बात आती है कि ऐसा क्या किया जाए, जिससे हम अपने जीवन को सही प्रकार से जी सकें? देखा जाए तो अध्यात्म की सभी साधनाएं इन मुखौटों और दिखावों को उतार फेंकने की कला हैं। इनकी बदौलत हम फिर से सहज, सरल होकर जीने लगते हैं। एक बार जब हम मुखौटा पहनने में सफल हो जाते हैं तब इस मुखौटे को और सजाने लगते हैं। जीवन मिला है हर चीज का मजा लेने के लिए, तो उसका मजा लीजिए। लेकिन मजा लेते-लेते हम स्वयं को भूल जाते हैं और अपनी एक अलग पहचान बनाने के चक्कर में अहंकार की चादर ओढ़ लेते हैं। इस कारण हम विराट से अलग हो जाते हैं। आप अच्छे कपड़े पहनें, अच्छी तरह अपने आप को रखें, लेकिन सावधान रहें कि उसके कारण आपके अंदर अभिमान का पेड़ न खड़ा न हो जाए और आप दूसरों को नीचा ना दिखाने लगें या उनको नीचा न देखने लगें।
. 🚩 जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩