. #शुभ_रात्रि
"अंतर त्याग सबसे महत्वपूर्ण त्याग मना जाता है। यदि आप भीतर से अपने प्रयासों को त्याग नहीं किया है, तो बाहरी त्याग असफल हो जाएगा। सबसे पहले बुरे गुणों का त्याग करें और अपने भीतर के पथ से अहंकार, क्रोध, कामा और घृणा के पत्थर हटा दें।" आत्म-मनन (जिज्ञासा) ध्यान "दैनिक जीवन में योग" प्रणाली का एक मूलभूत पक्ष है। इस प्रणाली में आसनों और प्राणायामों के अभ्यास क्रमिक रूप से विकसित किये जाते हैं और उसी रूप में एकाग्रचित्तता और ध्यान के अभ्यास भी एक-एक कर, चरणबद्ध रूप से विकसित किये जाते हैं।
"आत्म-मनन ध्यान" की तकनीक हमें आत्म नियंत्रण और आत्म विकास के माध्यम से आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करती है। इसका उद्देश्य हमारे भीतर विद्यमान दिव्य "आत्मा" का अनुभव करना या उसकी अनुभूति करना है। ऐसे सर्वोच्च उद्देश्य को रातों-रात प्राप्त नहीं किया जा सकता, अपितु इसके लिये एक शिक्षक (गुरू) द्वारा आत्म अनुशासन, निरन्तर अभ्यास, पथ प्रदर्शक के मार्ग दर्शन की आवश्यकता होती है।
*"आत्म-मनन ध्यान" इस प्रश्न के साथ प्रारंभ होता है "मैं कैसे हूँ ?" जिससे जीवन के सर्वाधिक मूलभूत प्रश्न "मैं कौन हूं?" का उत्तर अंतत: मिल जाता है।*
ध्यान के अभ्यास में हम आध्यात्मिक ज्ञान, (पराविद्या) को प्राप्त करते हैं, जो शाश्वत और अपरिवर्तनशील है। यह बौद्धिक ज्ञान (अपराविद्या) से बहुत अधिक भिन्न है। आध्यात्मिक ज्ञान सिखाया नहीं जा सकता, इसे केवल अपने स्वयं के अनुभव से ही प्राप्त किया जा सकता है। यह अनुभूति के माध्यम से हृदय में स्वयं अविर्भूत हो जाता है, जब व्यक्ति ब्रह्माण्ड सिद्धान्तों का अनुसरण करता है, मंत्र का अभ्यास करता है, ध्यान लगाता है और गुरू का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिये सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम चेतना के सभी स्तरों की खोजबीन करें और उन पर प्रकाश डालें। इसमें चेतन मन, अवचेतन मन और अचेतन मन सम्मिलित हैं। चेतना के इन स्तरों की सन्तुष्टि पूरी तरह से प्रदर्शित और विशुद्ध होनी चाहिए। यह केवल तभी हो सकता है जब हम इसको पूरी जागरूकता के साथ-ध्यान के माध्यम से करें। तब सर्वोच्च चेतना के द्वार खुलेंगे जिससे दिव्य आत्मा के दर्शन हो सकेंगे।
"आत्म-मनन ध्यान" में प्रारंभिक अभ्यास, पूर्ण शारीरिक और मानसिक तनावहीनता प्राप्त करना है। फिर मानस-दर्शन और कल्पना के अभ्यासों के माध्यम से एकाग्रता की योग्यता बढ़ाना अभ्यास का विषय है। फिर मन हमारी अपनी चेतना की सारगर्भिता की ओर जिज्ञासा हेतु मुड़ जाता है - हमारे निजी गुणों, कल्पनाओं और विचारों के स्वभावों की ओर। इसी के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति पूर्व-कल्पित विचारों और मतों से स्वयं को अलग कर ले। इस पूरे अभ्यास के समय, पूर्ण अन्तर्दृष्टि और ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से निष्पक्ष विचारधारा को अंगीकार करना चाहिए।
अत: पुराने घिसे-पिटे मार्गों से ही चिपटे न रहें, "भली-भाँति ज्ञात पाठों" को न दोहराएँ और भावनाओं में बंध कर न रहें। चेतना की गहराइयों में डुबकी लगाने के लिये प्रतिभा की सीमाओं के परे जाने, झाँकने के लिये बाहर निकलें।
हम मानते और विश्वास करते हैं कि हम अपने आपको भली-भाँति जानते हैं, किन्तु जब हम स्वयं के भीतर गहराई से झाँकते हैं तब हमें ऐसी बहुत सारी बातें मिलेंगी जिन्हें हम नहीं जानते। कदाचित हम अनुकम्पा, समझ, प्रेम, विनम्रता, धैर्य, अनुशासन, निष्ठा, निश्चय, संतोष, प्रसन्नता और गहन आन्तरिक परमानन्द जैसे सुन्दर, सार्थक गुणों की विद्यमानता पर अचम्भित, आश्चर्य चकित हैं। जैसे-जैसे हम इन गुणों के बारे में अधिकाधिक सजग या जागरूक होते हैं, हम इन गुणों में अपने स्व के प्रति, अपने आध्यात्मिक विकास और अपने सहचर प्राणियों से संबंधों के प्रति एक महान् सहायक तत्त्व प्राप्त करते हैं।
. *🚩हर हर महादेव 🚩*