भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है।
इस धारा के शुरुआत में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि
“एक आदमी को बलात्कार करने वाला कहा जाता है जबकि …….”
अब मसला यह है कि यदि किसी ने बलात्कार किया है तो उसे “आदमी अर्थात् मेल” होना ज़रूरी है। जो “आदमी अथवा मेल” नहीं है, वह कभी भी बलात्कारी नहीं हो सकता।
जेंडर फ़्लूइडिटी हो जाने पर अर्थात् आदमी और औरत की परिभाषा जननांग के बजाय मानसिक दशा से तय होने की स्थिति में बलात्कारियों को बलात्कार का लाइसेंस मिल जाएगा। बलात्कारी यदि बलात्कार के बाद स्वयं की पहचान एक आदमी की बजाय एक महिला के रूप में करे, तो क्या ऐसी स्थिति में उस पर बलात्कार का क़ानून लागू होगा??
चीफ़ जस्टिस को पश्चिम के मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को मानने से पहले यह भी सोचना होगा कि वह अधिकार सुरक्षित करने जा रहें हैं या फिर बलात्कारियों को बलात्कार करने के लिए लाइसेंस देने जा रहे हैं।
हम लोग अभी भी जेंडर फ़्लूइडिटी के मामले को मीम और हसी मजाक तक सीमित रख रहे हैं जबकि पश्चिम में एक के बाद एक ऐसी घटनाएँ घटती जा रही हैं जो यह सिद्ध कर रही हैं कि जेंडर फ़्लूइडिटी को मान्यता बलात्कारियों का प्रोत्साहन है। महिलाओं को इन मुद्दों पर विचार करके लिखना बोलना शुरू करना चाहिए।