वीर सावरकर को लेकर चाहे कोई भी प्रमाण हम प्रस्तुत कर दें, गांधीजी द्वारा सावरकर के प्रति विचार को, चाहे भगत सिंह द्वारा वीर सावरकर की लिखी पुस्तक के सहारे देशभक्ति के प्रसार को, चाहे इंदिरा गांधी के सावरकर के सम्मान में तमाम पत्र-पत्रिकाओं को, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी समेत तमाम भाजपा विरोधी दल, वीर सावरकर के प्रति सम्मान प्रकट नहीं कर सकते। सम्मान की बात तो दूर, वीर सावरकर को देशद्रोही, डरपोक और माफीवीर कहकर न जाने कौन-कौन से अपमानजनक शब्द कहे जा रहे।
एक समय था जब इसी प्रकार से हिंदू और हिंदुत्व के प्रति नफरत की राजनीति की जाती थी। जैसे आज वीर सावरकर के प्रति नफरत की राजनीति की जा रही है। लेकिन राजनीति बदली। लोग आज देख रहे हैं कि देवी देवताओं के प्रति असम्मान प्रकट करने वाले राजनीतिक दल के नेता मंदिरों में जाने लगे हैं। ललाट पर चंदन की लेप लगाने लगे हैं। कोट के ऊपर जनेऊ पहनने लगे हैं। भले यह फिर भी सत्य है कि तमाम क्षेत्रीय दल अपने-अपने सत्ता के राज्यों में गुपचुप तरीके से तमाम हिंदुत्व विरोधी एजेंडा पर कार्य करते हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर किसी भी दल में इतना सामर्थ्य अब नहीं रह गया, कि हिंदुत्व अथवा हिंदुओं के देवी-देवताओं के प्रति किसी प्रकार का असम्मान प्रकट करें।
वीर सावरकर के प्रति नफरत का अंजाम भी एक दिन यही होगा। देश का जनमानस अपने आदर्शों को लेकर अब सजग होने लगा है। सावरकर जी के प्रति नफरत को जितना प्रसारित किया जा रहा, स्वतंत्रता आंदोलन में सावरकर जी के योगदान का एक-एक बिंदु खंगाल कर निकाला जा रहा है, जिसे दशकों तक दबाकर रखा गया था। 1857 के सिपाही विद्रोह को स्वतंत्रता आंदोलन में तब्दील करने वाले और भारत में स्वतंत्रता की संकल्पना का बीजारोपण करने वाले वीर सावरकर को लोग अब आत्मसात करने लगे हैं। जिस दिन सावरकर के प्रति आम जनमानस में हिंदुत्व के स्तर का सम्मान प्रत्यक्ष रूप से प्रकट हो जाएगा, उसी दिन राहुल गांधी समेत तमाम कांग्रेसी वीर सावरकर के प्रति नतमस्तक हो जाएंगे।
आएगा एक दिन, जब देश में जगह-जगह सावरकर के मूर्तियां लगेंगी और सावरकर को अपमानित करने वाली तमाम राजनीति उनकी मूर्तियों के सामने नतमस्तक होंगी। कोई भी कार्यक्रम उनकी मूर्तियों के सामने बिना नतमस्तक हुए आरंभ नहीं की जा सकेगी। वीर सावरकर के प्रति राहुल गांधी में अथवा कांग्रेसियों में इतनी नफरत पहले नहीं थी। लेकिन जब से मोहनदास करमचन्द गांधी को लेकर देश का जनमानस समीक्षा करने लगा है, उनके तमाम ऐतिहासिक फैसलों को पढ़ने समझने लगा है, सच्चाई लोगों के सामने आने लगी है। इन बातों से कांग्रेस बौखला उठी। इसी बौखलाहट ने कांग्रेसियों में वीर सावरकर के प्रति नफरत को पैदा किया। लेकिन देश की जनता ही है जिसमें इस नफरत को खत्म करने का सामर्थ्य है। जिस गति से भारत में राजनीतिक जन जागरण चल रहा है, वह दिन दूर नहीं जब भारत में डिजाइनर महान नेताओं के स्थान पर, असली महान नेता ख्यापित किए जाएंगे।

