साईं उर्फ चांद मियां भाग ०३
👉👎साई पाखंड-
🤨हिन्दू देवी देवताओं के समतुल्य साईं बाबा को बैठाना अज्ञानतापूर्ण
👉विगत कई वर्षों से हिन्दू मंदिरों में साईं बाबा की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाने लगी है। संभवत ऐसा कोई शहर न होगा जहाँ के पहले से स्थापित मंदिरों में साईं बाबा का प्रवेश न हुआ हो। मेरा दावा है कि साईं बाबा को पूजने वालों ने ऐसा कभी नहीं सोचा की वे साईं की मूर्तियों की पूजा क्यों करते हैं?
🤷♂ कुछ ने साईं के चमत्कारों के विषय में टीवी पर देखा होगा। कुछ ने देखा देखी जाना शुरू कर दिया होगा। मगर किसी ने साईं का कभी चरित्र तक नहीं पढ़ा होगा।
👉साईं बाबा का प्रथम मंदिर महाराष्ट्र प्रदेश के क़स्बा शिरडी में बनाया गया था। श्री गोविन्दराव रघुनाथ दाभोलकर (१८५९-१९२९ ई•) ने, जिन्हें हेमाडपन्त भी कहा जाता है, मराठी भाषा में साईं बाबा के जीवन पर "श्री सांई सच्चरित" नामक पुस्तक लिखी थी जो रामचन्द्र आत्माराम तर्खड, श्री साईं-लीला कार्यालय, ५ सेंट मार्टिन्स रोड, बान्द्रे द्वारा सन् १९३० में प्रकाशित की गई थी।कालान्तर में श्री शिवराम ठाकुर द्वारा किया हुआ इसका हिन्दी अनुवाद "श्री साईं सच्चरित्र" शीर्षक से श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी ने सन् १९९९ ईसवी में प्रकाशित किया था। इसी प्रकार विवेक श्री कौशिक विश्वामित्र ने भी एक "श्री साईं सच्चरित्र" लिखा है जिसे पूजा प्रकाशन, सदर बाज़ार, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसी प्रकाशक ने ४-१/४" × ५-१/४" साइज़ की एक पुस्तिका "श्री साईं कृति" (कुल ४६ पृष्ठ) भी प्रकाशित की है। इसके रचनाकार हैं : सुरेन्द्र सक्सैना और अमित सक्सैना।*
✒✒साईं के प्रति अन्धभक्तिपूर्ण लेखन
📗शिरडी के साईं बाबा के प्रति अन्धभक्ति से भरी इस पुस्तिका की भूमिका में सुरेन्द्र सक्सैना की ओर से कहा गया है -
👉"मैं बाबा का एक-निष्ठ भक्त १९६७ से हूं। मैंने पूरे १० साल बाबा की भक्ति ज़रूर की। •• करुणानिधान श्री साईं बाबा ने १९७७ में गुरुवार के दिन प्रातः पौने चार बजे मेरे घर में मुझे दर्शन देकर मुझे अपनी लीलाओं का गुणगान करने की आज्ञा प्रदान की। •• मैं एक बार १९९७ में बीमार हुआ। मेरे हृदय की चारों नाड़ियां लगभग बन्द थीं। इस दौरान बाबा मेरे साथ रहे। बाबा के चमत्कार, उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर कैसे रहा, ये मैं फिर कभी लिखूंगा। जनवरी १९९८ में मेरी बाय-पास सर्जरी हुई जो कि बहुत जटिल होने के बाद सफल रही" (श्री साईं कृति, पृष्ठ ९-१०)।
🤔यहां पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उपरोक्त पुस्तकों में जब साईं बाबा की "कृपा" से अनेक लोगों के दुःख दूर होने का चमत्कारिक वर्णन किया गया है तो फिर १९६७ से साईं बाबा के प्रति अपनी एक-निष्ठ भक्ति का परिचय देने वाले भक्त-लेखक को जनवरी १९९८ में बाय-पास सर्जरी कराने की नौबत क्योंकर आई !!😳
🤔 क्यों नहीं घर में दर्शन देने वाले "करुणानिधान" साईं बाबा ने "चमत्कार" करके अपने भक्त के दुःख-रोग दूर कर दिए !!
🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉