श्रीमद्भागवत गीता श्रवणामृत (अर्जुनविषाद योग)
अध्याय - ०१ ; श्लोक - ३३
गुरुवार, ०२/०३/२०२३, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, एकादशी
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩तिथि - एकादशी पूर्ण रात्रि तक
⛅दिनांक - 02 मार्च 2023
⛅दिन - गुरुवार
⛅शक संवत् - 1944
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - वसंत
⛅मास - फाल्गुन
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - आर्द्रा दोपहर 12:43 तक तत्पश्चात पुनर्वसु
⛅योग - आयुष्मान शाम 05:51 तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅राहु काल - दोपहर 02:20 से 03:48 तक
⛅सूर्योदय - 07:01
⛅सूर्यास्त - 06:43
⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:22 से 06:12 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:27 से 01:16 तक
⛅व्रत पर्व विवरण - एकादशी वृद्धि तिथि
⛅विशेष - एकादशी को शिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌹अमालिक एकादशी🌹
🔸एकादशी 02 मार्च सुबह 06:39 से 03 मार्च सुबह 09:11 तक है ।
🔸व्रत उपवास 03 मार्च शुक्रवार को रखा जाएगा ।
🌹 आमलकी एकादशी महान पुण्य देनेवाली और बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली होती है । इसका व्रत करके आँवले के वृक्ष के पास रात्रि-जागरण, उसकी 108 या 28 परिक्रमा करनेवाला सब पापों से छूट जाता है और सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है । इसका पवित्र व्रत विष्णुलोक की प्राप्ति करानेवाला है ।
🔹एकादशी विशेष🔹
👉 एकादशी दो प्रकार की होती है सम्पूर्णा तथा विद्धा इसमे विद्धा भी दो प्रकार की होती है पूर्व विद्धा और पर विद्धा ।
🔹 पूर्व विद्धा अर्थात दशमी मिश्रित एकादशी परित्यज्य है । सम्पूर्णा एवं विशेष रूप से पर विद्धा (द्वादशी युक्त एकादशी) शुद्ध होने के कारण उपवास योग्य है किन्तु दशमी युक्त एकादशी में कभी भी उपवास नहीं करना चाहिए । - सौरधर्मोत्तर
👉 अरुणोदय काल में अर्थात सूर्योदय से पहले चार दण्ड काल (सूर्योदय से 1 घण्टा 36 मिनट पहले) में यदि दशमी नाममात्र भी रहे तो उक्त एकादशी पूर्व विद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण सर्वथा वर्जनीय (वर्जित) है । - भविष्य पुराण
👉 अग्नि पुराण के अनुसार द्वादशी "विद्धा" एकादशी में स्वयं श्रीहरि स्थित होते हैं, इसलिये द्वादशी "विद्धा" एकादशी के व्रत का त्रयोदशी को पारण करने से मनुष्य सौ यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त करता हैं । जिस दिन के पूर्वभाग में एकादशी हो और शेषभाग द्वादशी व्याप्त हो, उस दिन एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी में पारण करने से सौ यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है । दशमी - विद्धा एकादशी को कभी उपवास नहीं करना चाहिये ।
🔹औषधीय गुणों से भरपूरः ब्रह्मवृक्ष पलाश🔹
🔸जिसकी समिधा यज्ञ में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद ने 'ब्रह्मवृक्ष' नाम से गौरवान्विति किया है । पलाश के पाँचों अंग (पत्ते, फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं । यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है ।
🔸इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं । इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं ।
🔸पलाश के बीज उत्तम कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं । इसका गोंद हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है ।
🔸पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है व बढ़ती भी है । वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है । इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं ।
🔸पलाश के फूलों द्वारा उपचार : महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें । अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है ।
🔸प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें ।
🔸रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है ।
🔸आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें ।
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