भारत माता के उन महान सपूतों में सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है, जिनके बिना स्वतंत्र भारत की कल्पना अधूरी है। 15 दिसंबर 1950 को राष्ट्र ने अपने इस अद्वितीय पुत्र को खो दिया, परंतु उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, राष्ट्रभक्ति और अखंड भारत का स्वप्न आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित है। उनकी पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन।
सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ यूँ ही नहीं कहा जाता। स्वतंत्रता के पश्चात देश की 562 से अधिक रियासतों का भारत में विलय कर उन्होंने जिस अदम्य साहस, कूटनीति और कठोर निर्णय क्षमता का परिचय दिया, वह विश्व इतिहास में अद्वितीय है। यदि आज भारत एक सशक्त, संगठित और अखंड राष्ट्र के रूप में खड़ा है, तो उसके पीछे सरदार पटेल की दूरदर्शिता और दृढ़ नेतृत्व की सबसे बड़ी भूमिका है।
वे केवल एक कुशल प्रशासक ही नहीं, बल्कि किसानों, श्रमिकों और सामान्य जन की आवाज़ भी थे। बारडोली सत्याग्रह ने उन्हें जननायक के रूप में स्थापित किया। राष्ट्रहित के लिए व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठकर निर्णय लेना उनका सबसे बड़ा गुण था। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र निर्माण के लिए कठोरता के साथ-साथ ईमानदारी, त्याग और अनुशासन भी आवश्यक है।
आज के समय में, जब भारत पुनः अपने गौरवशाली अतीत की ओर अग्रसर है, सरदार पटेल के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सशक्त भारत का संकल्प तभी पूर्ण होगा, जब हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को उनकी पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन।
अखंड भारत के इस महान शिल्पकार को भारतीय कृतज्ञता सदा स्मरण करती रहेगी।
— मनोज श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय केसरिया वाहिनी

