सुधांशु जी ने केवल सत्य सामने रखा लेकिन मौलाना ने बड़ी सच्चाई उजागर कर दी... इसे कहते हैं तीर का निशाने पर लगना, नाम विदेशी दुष्ट आक्रांताओं का लिया गया लेकिन और में दर्द मौलाना के हुआ .. इससे सब कुछ समझा जा सकता है फिर भी कोई मूर्ख यदि सेक्युलरिज्म और भाईचारे का ढोल बजाना चाहे तो अपने स्थान विशेष से बजाए हैं क्या दिक्कत.
सच्चाई यही है कि नाम बदले है, जगह बदली है, बदले बदले है, तरीके बदले है, समय बदला है लेकिज सोच वही है, वही जेहादी, हैवानियत भरी सोच जो गौरी, अकबर, बाबर, औरंगजेब की थी...

