आधुनिक वैज्ञानिको की कथाकथित नई खोज सनातन हिन्दू धर्म के पुनः वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमाणित कर रहा है। सूर्य की असली एवं मूल सतह की खोज हो चुकी है जो हमारे सनातनी ऋषियों ने अपनी श्रेष्ठ वैज्ञानिक बूद्धि से हजारों वर्ष पूर्व ही ढूंढ़ लिया था। पहली बार आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा उसकी सतह की छवि सामने आईं हैं। इन तस्वीरों में सूर्य की मूल सतह सोने की तरह चमकीली और मधुमक्खी के छत्ते की तरह लग रही है, जो लगातार फैलती और सिकुड़ती हुई दिख रही है। ये तस्वीरें अमेरिका के हवाई द्वीप में स्थित डेनियल के इनोये सोलर टेलिस्कोप ने जारी की हैं। इस टेलिस्कोप को दुनिया का सबसे बड़ा माना जाता है।
जो आज का आधुनिक विज्ञान प्रमाणित कर रहा है वो हमारा सनातनी हिन्दू वेद शास्त्र में हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों लाखों वर्ष पहले वैज्ञानिक शोध से अंकित करके चले गए हैं।
हम आपको इसके प्रमाण में छांदोग्य उपनिषत जो सामवेद के छांदोग्य ब्राह्मण में निहित है;
असौ वा आदित्यो देवमधु तस्य द्यौरेव। तिरश्चीनवꣳशोऽन्तरिक्षमपूपो मरीचयः पुत्राः ॥१ ॥
तस्य ये प्राञ्चो रश्मयस्ता एवास्य प्राच्यो मधुनाड्यः ।
ऋच एव मधुकृत ऋग्वेद एव पुष्पं ता अमृता आपस्ता वा एता ऋचः ॥२ ॥
(छान्दोग्योपनिषद्/अध्याय - ३, खंड- १, मंत्र - १ -२)
अर्थात - यह आदित्य (सूर्य) देवों का मधु है।
उसका आधार स्तम्भ (वꣳशः) द्यौः (आकाश) है।
उसके लिए अन्तरिक्ष अन्नरूप (अपूप) है।
उसकी संतान किरणें (मरीचयः) हैं। (१)
सूर्य की जो पूर्वाभिमुख किरणें हैं, वे उसके मधु की नाड़ियाँ हैं।
ऋचाएँ ही उस मधु को उत्पन्न करती हैं। ऋग्वेद उसका पुष्प है। वे किरणें ही अमृतस्वरूप जल हैं, और वही ऋचाएँ कही गई हैं। (२)
हमारे उपनिषदों में सूर्य को "देवमधु" और उसकी किरणों को "मधुनाड्यः" कहा गया है, और आधुनिक विज्ञान ने सूर्य की सतह की छवि (फोटो) से वही मधु-छत्ता (हनीकॉम्ब) जैसा स्वरूप दिखाया है।
१) उपनिषद का वर्णन :-
हमारे छान्दोग्योपनिषद्/अध्याय - ३, खंड- १, मंत्र - १ -२ में कहा गया है :
"असौ वा आदित्यो देवमधु" सूर्य देवताओं के लिए मधु (अमृत/ज्ञान) है।
"तस्य … मरीचयः पुत्राः" उसकी किरणें उसकी संतान हैं।
"तस्य ये प्राञ्चो रश्मयस्ता एवास्य प्राच्यो मधुनाड्यः" पूर्वाभिमुख (फैलती हुई) किरणें उसकी मधुनाड़ियाँ (मधु प्रवाह की नलियाँ) हैं।
"ऋच एव मधुकृतः, ऋग्वेद एव पुष्पम्" ऋग्वेद की ऋचाएँ मधु उत्पन्न करने वाली हैं, सूर्य पुष्प है।
यहाँ हमारे सनातनी ग्रंथो में सूर्य को मधुमक्खी-छत्ते जैसा मधु-भाण्डार और किरणों को मधु-नाड़ियाँ (channels of nectar) बताया गया। इसे देवताओं का मधु(रस)बताया गया है।
२) आधुनिक विज्ञान का अवलोकन :-
अमेरिका के हवाई द्वीप में स्थित डेनियल के इनोये सोलर टेलिस्कोप के द्वारा जारी तस्वीरों में सूर्य की मूल सतह सोने की तरह चमकीली और मधुमक्खी के छत्ते की तरह लग रही है,
हाल ही में नासा(NASA) और ESA (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) के Solar Orbiter और SDO (Solar Dynamics Observatory) जैसे मिशनों ने सूर्य की सतह (photosphere) के उच्च-रिज़ॉल्यूशन चित्र लिये।
सूर्य की सतह पर Granulation pattern देखा गया।
ये ग्रैन्यूल्स (लगभग १,००० किमी चौड़े) ऐसे दिखते हैं जैसे हनीकॉम्ब (मधुमक्खी का छत्ता)।
हर ग्रैन्यूल सूर्य के भीतर के convection cells हैं, जहाँ गर्म प्लाज़्मा ऊपर उठता और ठंडा होकर नीचे जाता है।
इस पूरे स्वरूप में nectar-like energy flow (ऊर्जा/प्रकाश का प्रवाह) स्पष्ट आस्था३)
३) तुलनात्मक अध्ययन :-
उपनिषद का दृष्टिकोण आधुनिक विज्ञान का अवलोकन साम्य (similarity)
सूर्य = "देवमधु" (देवताओं के लिए अमृत एवं जीवों के लिए कल्याणकारी)
सूर्य = ऊर्जा और जीवन का स्रोत जीवनदायी ऊर्जा का केंद्र
किरणें = "मधुनाड्यः" (रस की नाड़ियाँ)
किरणें = फोटॉन स्ट्रीम (ऊर्जा का प्रवाह) प्रकाश और ऊर्जा की धाराएँ
सूर्य सतह = मधु का पुष्प/भाण्डार सूर्य सतह = Granulation pattern, हनीकॉम्ब जैसा दृश्य रूप से भी छत्तानुमा स्वरूप
"ऋच एव मधुकृतः" = वेद मंत्रों से मधु उत्पन्न आधुनिक विज्ञान = प्रकाश/ऊर्जा तरंगों में सूचना (spectral lines से तत्वों का ज्ञान) दोनों में ज्ञान और जीवन का संचार
४) निष्कर्ष :-
हमारे सनातनी हिन्दू वेद उपनिषदों ने सहस्रों वर्ष पहले सूर्य को मधु (अमृत) का स्रोत और उसकी किरणों को मधु-नाड़ियाँ कहा। आधुनिक विज्ञान ने सूर्य की सतह का चित्र लेकर यह दिखाया कि वह सचमुच मधु-छत्ते (Honeycomb) जैसी संरचना लिए हुए है, जहाँ से ऊर्जा और प्रकाश प्रवाहित होते हैं।
यह समानता केवल रूपक नहीं, अपितु, एक वैज्ञानिक-दार्शनिक अद्भुत संगम है, जो दिखाता है कि वैदिक दृष्टि और आधुनिक विज्ञान का निष्कर्ष एक-दूसरे की पुष्टि करते हैं।
जो कथाकथित आज के कुछ वैज्ञानिक,वामपंथी इतिहासकार नव बौद्ध अंबेडकरवादी आदि अलग अलग तंत्र सनातनी हिन्दू वेद शास्त्रों की वैज्ञानिकता पर आक्षेप करते हैं उन्हें इन अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग करके वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित सनातनी हिंदू वेद शास्त्रों पर आस्था रखनी चाहिए।
संकलक एवं लेखक
पं.संतोष आचार्य