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🔏 लेखक : पंकज सनातनी
अखाड़ा शब्द मन में आते ही आमतौर पर लोग सोचते हैं कि एक ऐसी जगह पहलवानी में रुचि रखने वाले लोग शरीर पर मिट्टी मल अपनी ताकत के दांव-पेच सीखते और आज़माते होंगे।
लेकिन जब 8वीं शताब्दी के आसपास विदेशी शक्तियों ने भारत पर आक्रमण शुरू किया तो उस वक्त आध्यात्मिकता के साथ शारीरिक शक्ति की भी जरूरत महसूस हुई ताकि विदेशी शक्तियों का मुकाबला किया जा सके। इसके लिए सनातन धर्म की दीक्षा में पारंगत लोगों को हथियार चलाने और शारीरिक तौर पर मजबूत होना आवश्यक था।
आदि शंकराचार्य ने धर्म के विस्तार और सशक्तिकरण के लिए भारत में चार मठों की स्थापना की। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारका, ताकि धर्म की रक्षा की जा सके।
स्वयं आदि शंकराचार्य ने कहा कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और ये शक्ति ऐसे ही अखाड़ों के साधु-संतों से आएगी, जिन्हें शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का भी ज्ञान हो। और इस तरह से अखाड़ों का जन्म हुआ।
आदि गुरु शंकराचार्य के समय में महज 7 अखाड़े ही थे। लेकिन वर्तमान की बात करें तो पूरे देश में कुल 14 अखाड़े हैं। हिंदू धर्म के ये सभी 14 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं —
1. शैव संन्यासी संप्रदाय
2. वैष्णव संप्रदाय
3. उदासीन संप्रदाय
इनमें भी सबसे बड़ा "शैव संन्यासी संप्रदाय" ही है। ये शिव और उनके अवतारों को मानते हैं, इनमें भी शाक्त, नाथ, दशनामी और नाग जैसे उप संप्रदाय हैं।
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*शिव संन्यासी सम्प्रदाय के 7 अखाड़े हैं —*
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
4. श्री तपोनिधि आनन्द अखाड़ा पंचायती- त्रम्केश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
6. श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा- दशस्मेव घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
इसके अलावा 2019 कुंभ से जूना अखाड़े में ही एक और अखाड़े को शामिल किया गया है, जिसका नाम है किन्नर अखाड़ा।
वहीं "वैष्णव संप्रदाय" के भगवान विष्णु को मानते हैं। इनमें भी बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माधव, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय उप संप्रदाय हैं। तथा बैरागी वैष्णव सम्प्रदाय के पास 3 अखाड़े हैं।
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मन्दिर, सांभर कांथा (गुजरात)
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मन्दिर बंसीवट, वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
"उदासीन अखाड़ा" सिक्ख-साधुओं का संप्रदाय है, जो सनातन धर्म को मानते हैं। उदासीन संप्रदाय के 4 अखाड़े हैं।
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
14. अन्तरराष्ट्रीय जगतगुरु दसनाम गुसांई गोस्वामी एकता अखाड़ा परिषद, दिल्ली (गृहस्थ दसनामी गोस्वामी गुसांई का सबसे बड़ा, सामाजिक अखाड़ा)
इन सभी अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊपर होता है। महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाता है जो साधु चरित्र और शास्त्रीय पांडित्य दोनों के देश-दुनिया में जाना जाता हो। पहले ऐसे लोगों को परमहंस कहा जाता था।
18वीं शताब्दी में उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई। महामंडलेश्वर की पदवी धारण करने वाले जितने भी लोग होते हैं उनमें जो सबसे ज्यादा ज्ञानी होता है उसे आचार्य महामंडलेश्वर कहते हैं। हालांकि कुछ अखाड़ों में महामंडलेश्वर नहीं होते हैं, उनमें आचार्य का पद ही प्रमुख होता है।
लेकिन बात अगर सभी अखाड़ों के प्रमुख की करें तो वो होता है "अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद" इस अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का 'अध्यक्ष' एक तरह से सभी अखाड़ों और उनके प्रमुखों के ऊपर होता है।
प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में लगने वाले कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में इन्हीं अखाड़ों की सबसे बड़ी भूमिका होती है। कुंभ-अर्धकुंभ में अमृत स्नान से लेकर धर्म-कर्म के लिए इन अखाड़ों को विशेष सुविधाएं भी मिलती हैं। और इसी वजह से इन अखाड़ों में वर्चस्व को लेकर लड़ाईयां भी होती रहती हैं।
इस लड़ाई से बचने के लिए ही साल 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई थी। उसी दौरान अखाड़ों के कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान का वक्त और उनकी जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, जिसे सभी अखाड़े द्वारा पालन किया जाता है।
✍️ साभार
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