अधिकार हनन हमेशा कमजोर का होता है।सरकार की कमजोरी की वजह से सुप्रीम कोर्ट चुनी हुई सरकार की विश्वसनीयता को समाप्त करने का काम कर रहा है।सरकार को चाहिए कि संसद के बजाए किसी भी प्रस्तावित कानून का मसौदा कोर्ट को भेज दे वे कहे तो कानून बनाए।वरना नहीं।भारतीय न्यायपालिका की नौटंकी जारी है। सरकार वक्फ संशोधन को दो सदनों में पास कर के राष्ट्रपति से संस्तुति करा के, कानून बना कर,तीसरे सदन में पिछड़ गई।
तीन बातों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।बात यह नहीं है कि ये बाद में सरकार पलट देगी,बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार, कब तक स्वयं को संसद से ऊपर मान कर चुनी हुई सरकार पर वामपंथियों/विपक्ष के द्वारा परोक्ष रूप से आक्रमण करती रहेगी?
SIR को ले कर भी सुप्रीम कोर्ट हीरोइन बनी घूम रही है कि ये डॉक्यूमेंट ले लो,वो क्यों नहीं लेते?जबकि,संविधान ने @ECISVEEP को यह विशेषाधिकार दिया है कि वो स्वयं यह तय करेगी कि कौन नागरिक है,कौन नहीं।कोर्ट उस पर दवाब नहीं बना सकती।
नेता तो पाँच वर्षों में आते-जाते रहते हैं,पर ये कॉलेजियम की उपज,स्वयं को सर्वेसर्वा मान कर नाटक करते रहते हैं।साथ ही,संविधान के सम्मान के चक्कर में नरेन्द्रमोदी जी ने इन्हें उचित बातों पर भी बोलना रोक रखा है।
क्या ये लोग देश में समानांतर सरकार चलाना चाहते हैं? इनके जजों के घर से नोटों की बोरियाँ निकलती हैं,और ज्ञान ये दुनिया को देते हैं।
लोगों के मन में प्रश्न उठने लगे हैं कि सुप्रीम कोर्ट कोई कोर्ट नहीं है वामपंथियों जिहादियों का संसद भवन है और इसमें बैठकर फैसला देनेवाले जज नहीं है वे तो मोदी सरकार के बनाए हुए कानूनो में खामी निकालकर अपना कानून थोपने वाले सर्वश्रेष्ठ सांसद हैं।ये छद्म स्वघोषित सांसद हैं जो अपने आपको देश से भी ऊपर मानते हैं।
साभार
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253