“महिषासुर” उसका असली नाम नहीं, बल्कि उपनाम/उपाधि (विशेषण) है। संस्कृत में “महिष” = भैंसा, और “असुर” = दैत्य या जो देव ना हो । अतः “महिषासुर” का शाब्दिक अर्थ है — भैंसे का रूप धारण करने वाला असुर। महिषासुर शुद्ध रूप से पाताल लोक का निवासी था जो आज का उत्तरी अमेरिका है।
दानवराज मय जो पाताल लोक के श्रेष्ठ वास्तु शिल्प के आचार्य के साथ साथ एक समय राजा भी थे। उसी पाताल लोक (उत्तर अमेरिका) का एक समय राजा महिषासुर भी था। कभी अमेरिका के रेड इंडियन अर्थात मय सभ्यता के बारे में जानने वाले इस तथ्य कों अच्छे से जान जाएंगे। अगर इंटरनेट पर ही पढ़ लिए होते तो कुछ लोगों का भ्रम दूर हो जाता। कथाकथित महान कोलंबस के बारे में सुना ही होगा आप लोगों ने। पश्चिमी सभ्यता में कई लुटेरों को महान बताया गया है जिन्होंने कई हंसती खेलती उन्नत श्रेष्ठ सभ्यताओ को स्वयं लुटकर एवं दूसरों से भी लुटवाकर नष्ट करवा दिया।
जब पृथ्वी के दो कुख्यात समुन्द्री लुटेरे एक स्पेन का कोलंबस और दूसरा पुर्तगाल का वास्को दि गामा में आपस में लूटने के वर्चस्व पर जंग छिड़ी तो दोनों उस समय की ईसाई सत्ता के केंद्र पोप के पास गए। तब पोप ने झगड़ा सुलझाने हेतु कोलंबस को पश्चिम की दिशा में लुटेने का अधिकार दिया और वास्को दि गामा को पूर्व दिशा में लूटने का अधिकार दिया। वास्को दि गामा पूर्व दिशा के सबसे संपन्न देश भारत में २० मई १४९८ में केरल के कालिकट बन्दरगाह पर पहुंचा और कोलंबस पश्चिम दिशा के देश अमेरिका में १४९२ में पहुंचा था। पश्चिम में मय दानव द्वारा विकसित संपन्न मय सभ्यता (MAYA CIVILIZATION) के रेड इंडियन रहते थे। जब लुटेरा कोलंबस वहां से लूट लूट कर धन स्पेन लेकर जाने लगा इसकी खबर स्पेन की आर्मी को लगी। तब स्पेन की आर्मी स्वयं लुटेरे बनकर आई और मय सभ्यता अर्थात पाताल लोक (अमेरिका) के अश्वेत (काला या गहरा रंग) मूल निवासियों को लूट लूटकर उनका नरसंहार करके नष्ट कर दिया था। आज वहाँ अश्वेत कुछ गिनती के लोग बच गए हैं। आज जो अमेरिका में गोरे अर्थात श्वेत लोग हैं वो लोग वहाँ के मूलनिवासी नहीं हैं।
इन गोरों अर्थात श्वेतों ने इस पृथ्वी की बहुत सी सभ्यताओं को लूटकर नष्ट किया है, जिसका ज्वलंत उदाहरण अविभाजित भारत है। केवल लूटने और नष्ट करने से इनका मन नहीं भरा है इन्होंने बहुत सी सभ्यताओं के लोगों का नरसंहार भी किया है, परंतु विश्व के इतिहास में इसे कोई नहीं पढ़ाता। अगर पढ़ाएंगे तो ईसाइयो की सर्वोच्च सत्ता के केंद्र पोप नाराज हो जाएंगे।
अब पुन: आते हैं कथाकथित भारत के मूलनिवासी महिषासुर के इतिहास पर जिसका मूल देश उत्तर अमेरिका था जो मय सभ्यता (माया सिविलाइज़ेशन) अर्थात मय दानव द्वारा बसाईं गई एक संपन्न समृद्ध सभ्यता। ये दानवराज मय भी असुर थे। असुर या दानव पाताल लोक पर ही शासन करते थे, ये मानवो के देश भरतखंड पर कभी कभार आ जाते तो ऋषि मुनि या यहाँ के शूरवीर राजा उन्हें नष्ट कर देते थे। वे असुर वनों में या अपने पाताल लोक में ही ज्यादा निवास करते थे। महिष का अर्थ होता है भैंसा। भैंसा अमेरिका महाद्वीप (पाताल लोक) में पाए जाते थे उन्हें बाइसन (bison) कहा जाता था। आज भी वहाँ की आदिवासी समुदाय या अन्य लोग अपने नाम में इस शब्द का प्रयोग करते हैं। वहाँ के राजाओं को पशुओं में शक्तिशाली प्रतिक भैसा अर्थात 'महिष' से जोड़ा जाता था। जैसे भरतखंड के राजाओं को यहां के शक्ति के प्रतीक पशु ' सिंह 'की उपाधि से जोड़ा जाता था जो आज एक उपनाम के रूप में प्रसिद्ध है।
महिषासुर जैसे विदेशी असुरों ने विशालकाय सेना बनाकर और कुछ आस पास के सहायकों के साथ उस समय के भारत खंड के मूलनिवासियों पर आक्रमण किया। जिसमें उसके कई लोगों में -मुर (Morocco-Moor), दौर्ह्रद ((Dardennal), कालक (कजाकिस्तान), कालकेय (काकेशस, तुर्की), कम्बोज (ईरान के उत्तर अजरबैजान), कोटिवीर्य (अरब)। इन्ही लोगों के संघ ने ७५६ ईपू में असीरिया की रानी सेमिरामी के नेतृत्व में आक्रमण किया था, जिसका असीरिया तथा सुमेरिया के इतिहासकारों ने विस्तार से उल्लेख किया है। इनको रोकने के लिए भारतवर्ष के राजाओं ने देवताओं की सहायता से मालव संघ बनाया था। इस भीषण युद्ध में असुरों संहार हुआ था। उसके बाद भारत के उस समय के दिल्ली के चाहमान राजा ने असीरिया की राजधानी निनेवे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। इस सभी ऐतिहासिक युद्धों का उल्लेख उस काल के सभी ग्रीक लेखकों मेगास्थनीज, एरियन, सोलिनस आदि ने विस्तार से वर्णन किया है।
महिषासुर का वध दशर्शन रूप में मध्यमा चरित्र में आता है, और विशेषतः मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत देवी महात्म्य अथवा दुर्गा सप्तशती का अध्याय ३ में वर्णित है। अध्याय २ में महिषासुर के सेनाओं का संहार, अध्याय ३ में महिषासुर का वध माता दुर्गा के हाथों वर्णित है। इस अध्याय में बताया गया है कि देवताओं की प्रार्थना से माता दुर्गा प्रकट हुईं और नौ दिन-रात युद्ध करने के बाद उन्होंने दसवें दिन महिषासुर का वध किया। इसीलिए विजयादशमी (दशहरा) को "महिषासुरमर्दिनी विजय दिवस" माना जाता है।
निष्कर्ष यही निकलता है कि महिषासुर एक असुर था और विदेशी था जिसका संहार यहाँ के मूल निवासियों ने मिलकर किया। जिसकी मुख्य रूप से सहायता देवताओं की ओर से माता दुर्गा ने मुख्य असुर महिषासुर का वध करके किया था। अतः विदेशी असुरों का गुणगान यहां के मूलनिवासियों को नहीं करना चाहिए। वामपंथी इतिहासकारों ने विदेशियों की सहायता से हम सभी भारतीय मूलनिवासियों में आपस में फूट डालने के लिए महिषासुर प्रकरण को विकृत किया है। आर्य और द्रविड़ संप्रदाय दोनों ही यहां के मूलनिवासी हैं। द्रविड़ शब्द आर्य का ही विशेषण है। आर्य कोई विदेशी नस्ल नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिक डीएनए रिपोर्ट सैंपलिंग से यह सब सिद्ध हो चुका है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र सभी यहां के मूलनिवासी हैं। हमारे वेद शास्त्र पुराण पाखंड या अंधविश्वाव नहीं है, इसमें इसमें हमारे पूर्वजों का संपूर्ण इतिहास है। वामपंथियों एवं विदेशी ताकतों ने हमें आपस में लड़ाने का षड्यंत्र चलाए रखा है, उन्होंने झूठा इतिहास लिखकर हमें भ्रमित करके रखा है। हम सभी सनातनियों को अपनी ही संस्कृति और मान्यताओं के विरोध में भ्रमित करके इसलिए भड़काया जा रहा है कि भारतवर्ष की समृद्ध सनातन संस्कृति सभ्यता को यहां के सभी मूलनिवासी ही अपने हाथों स्वयं नष्ट कर दें। जिससे महिषासुर जैसे विदेशी पुनः आक्रमण करके भारत को गुलाम बनाने का प्रयास करें।
इसलिए हे भारत के चारों वर्णों के रूप में समाहित मूलनिवासियों (आर्य एवं द्रविड़ो) हमारे स्वर्णिम भारत की संपन्न, समृद्ध, सनातन संस्कृति को आपसी विभेद से अपने हाथों नष्ट ना करो।
संकलक एवं लेखक - पं. संतोष आचार्य