अकबर की क्रूरता का सच किताबों में आने पर नाराज हुए SC के पूर्व जज, बोले- ‘तोड़ा-मरोड़ा जा रहा इतिहास’: जानें कैसे मुगल तानाशाह ने करवाया था 30000 हिंदुओं का नरसंहार
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज रोहिंटन नरीमन और मुगल शासक अकबर (फोटो साभार: इकोनॉमिक टाइम्स, विकिपीडिया)
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस रोहिंटन नरिमन ने हाल ही में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में मुगल शासक अकबर को ‘क्रूर शासक’ (tyrant) के रूप में दिखाए जाने पर नाराजगी जताई है। उन्होंने इसे इतिहास का ‘तोड़-मरोड़’ कर प्रस्तुत करना बताया है।
1 सितंबर 2025 को त्रिवेंद्रम के प्रेस क्लब में आयोजित केएम बशीर स्मृति व्याख्यान (KM Bashir Memorial Lecture) में बोलते हुए उन्होंने अपने एक निजी अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि एक बच्चे ने उन्हें एक इतिहास की किताब से कुछ पढ़कर सुनाया, जिसे सुनकर वे चौंक गए।
जस्टिस नरिमन ने कहा, “मैं हैरान रह गया जब बच्चे ने पढ़कर सुनाया कि अकबर को उस किताब में एक ऐसा व्यक्ति बताया गया है जो अत्याचारी था और उसने चित्तौड़ में बड़े पैमाने पर हत्याएँ कराई थी, जहाँ कई महिलाओं ने जौहर किया था। किताब में बस इतना ही लिखा था और महान मुगलों के बारे में लगभग कुछ भी नहीं बताया गया।”
उन्होंने आरोप लगाया कि यह न केवल इतिहास को मिटाने की कोशिश है बल्कि पूरी तरह से तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना है।
जस्टिस नरीमन ने लोगों को कथित ‘इतिहास के विरूपण’ के खिलाफ कोर्ट जाने के लिए किया प्रोत्साहित
जस्टिस रोहिंगटन नरिमन ने कहा कि मुगल शासकों, खासकर अकबर ने, भारत की ‘संयुक्त संस्कृति’ को बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सँभाल कर रखें और उसका सम्मान करें।
अगर इस साझा संस्कृति को तोड़ा जाता है या हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा या मिटाया जाता है, तो नागरिक इसके खिलाफ कोर्ट जा सकते हैं। जस्टिस नरिमन ने माना कि इतिहास जैसे विषयों में कोर्ट के पास खुद विशेषज्ञता नहीं होती। लेकिन ऐसी स्थिति में कोर्ट विशेषज्ञों की एक समिति बना सकती हैं, जो मामले की जाँच कर सही सुझाव दे और असली इतिहास को बहाल करे।
उन्होंने साफ कहा, “कोर्ट खुद यह काम नहीं कर सकती लेकिन विशेषज्ञों की मदद से सच्चाई सामने लाई जा सकती है। यह सिर्फ मेरी एक सलाह है लेकिन रोकथाम इलाज से बेहतर होता है।”
भारतीय इतिहास की सटीक तस्वीर प्रस्तुत करने के लिए इतिहास की पुस्तकों को किया गया है संशोधित
जस्टिस नरिमन की टिप्पणी हाल ही में कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में किए गए बदलाव के संदर्भ में आई है। यह बदलाव राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 (NCFSE 2023) की सिफारिशों के अनुसार किया है।
इतिहास की यह संशोधित पुस्तक लंबे समय से पेश की जा रही एक एकतरफा और सुंदर रूप में दिखाए गए मध्यकालीन भारत के इतिहास को संतुलित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश करती है। इसका उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाओं और कालखंडों की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को सामने लाना है, यानी यह बदलाव किसी कल्पनात्मक या भावनात्मक इतिहास पर नहीं, बल्कि ठोस ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है।
नई किताब में यह बताया गया है कि जहाँ एक ओर जहाँगीर और शाहजहाँ जैसे मुगल शासकों ने कला और स्थापत्य का संरक्षण किया, वहीं दूसरी ओर यह भी उल्लेख किया गया है कि बाबर जैसे शासकों ने पूरे शहरों की जनता का नरसंहार किया था।
औरंगजेब को एक ऐसा सैनिक शासक बताया गया है जिसने गैर-इस्लामी परंपराओं पर पाबंदी लगाई और गैर-मुसलमानों पर जजिया कर फिर से लगाया। वहीं अकबर के शासन को ‘उदारता और कठोरता का मिश्रण’ कहा गया है।
चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के बाद अकबर ने 30 हजार हिंदुओं के नरसंहार का दिया था आदेश
पहले के इतिहास की किताबों में मुगल शासक अकबर को धार्मिक सहिष्णुता (tolerance) का प्रतीक बताकर दिखाया गया था। इसमें खास तौर पर यह बताया गया कि अकबर ने जजिया कर (जो गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाता था) हटा दिया था। लेकिन इन किताबों में यह बात छुपा ली गई कि चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान अकबर ने हिंदुओं के खिलाफ जिहाद छेड़ा था और करीब 30,000 हिंदुओं का नरसंहार (massacre) करवाया था।
चार महीने तक चले इस युद्ध के अंत में अकबर ने इसे ‘इस्लाम की काफिरों पर जीत’ बताया था। युद्ध के बाद न केवल पुरुषों की हत्या की गई बल्कि महिलाओं और बच्चों को गुलाम बना लिया गया। ऐसे में जब जस्टिस नरिमन ने नई इतिहास की किताबों को लेकर अपनी राय दी, तो लगता है कि उनकी जानकारी अधूरी या गलतफहमी पर आधारित थी।
छात्रों को इतिहास का पूरा और संतुलित चित्र दिखाना जरूरी है। शासकों के अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं को जानना चाहिए। लेकिन यह भी जरूरी है कि जो इतिहास उन्हें पढ़ाया जा रहा है, वह तथ्यों पर आधारित हो, न कि कल्पना या एकतरफा सोच पर। आखिरी फैसला छात्रों पर छोड़ देना चाहिए कि वे किसी ऐतिहासिक व्यक्ति या काल के बारे में क्या राय बनाते हैं।