जहरीली गैस का आकस्मिक रिसाव
2-3 दिसंबर, 1984 के दौरान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित कंपनी यूनियन कार्बाइड में एक बड़ी दुर्घटना घटी और मिथाइल आइसोसाइनाइड के रिसाव की वजह से लाखों जिंदगियां खतरे में पड़ गईं। जहरीली और दम घोंटने वाली इस गैस का फैलाव पूरे राजधानी परिक्षेत्र में होने के कारण लोगों के पास भागने का भी रास्ता नहीं बचा और देखते-देखते हजारों लोगों ने अपने प्राण गंवा दिए।
जिस रात यह तबाही फैल रही थी उस रात अचानक भोपाल के रहने वाले एस.एल. कुशवाहा, जो पेशे से अध्यापक थे, अपनी पत्नी की तबियत खराब होने की वजह से नींद से जाग गए। कुछ देर बाद उनके बच्चों की हालत भी खराब होने लगी और बाहर से भी शोर की आवाजें आने लगीं। तब उन्हें समझ आया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से गैस लीक होने लगी है।
उनके आसपास के लोग अपना घर छोड़कर भाग रहे थे और उन्हें भी यही सुझाव दिया गया। लेकिन इसी बीच उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि “भागने से बेहतर हम अग्निहोत्र यज्ञ क्यों नहीं संचालित करते?”
चमत्कार था यह
कुशवाहा यज्ञ संचालित करने के लिए राजी हो गए और यज्ञ शुरू करने के मात्र 20 मिनट के अंदर ही उस घातक गैस का असर उनके शरीर से कम होता गया।
अपने चार बच्चों के साथ एम.एल. राठौड़ भोपाल स्टेशन पर ट्रेन के इंतजार में बैठे थे और उनके सामने कई लोग अपना दम तोड़ चुके थे।
वातावरण की स्वच्छता
करीब पांच वर्ष पहले राठौड़ ने अग्निहोत्र यज्ञ करने की शुरुआत की थी और समय की मांग की वजह से स्टेशन पर बैठे हुए ही यज्ञ को अंजाम देना शुरू कर दिया। इसके बाद हजारों अग्निहोत्रियों ने लोगों और वातावरण को इस भयंकर गैस त्रासदी से बचाने के लिए इस यज्ञ का संचालन शुरू कर दिया।
प्रजापति परिवार
प्रजापति परिवार के साथ तो जैसे चमत्कार ही हो गया। भोपाल गैस त्रासदी के दौरान इनका पूरा परिवार प्रभावित हुआ। ओ. एन. प्रजापति की पत्नी मरने की हालत तक पहुंच गई थीं, स्वयं प्रजापति और उनके बच्चे गैस के प्रभाव को झेल नहीं पा रहे थे। ऐसे में उन्होंने अग्निहोत्र यज्ञ की शुरुआत की और लगभग एक सप्ताह बाद वे और उनके पुत्र ठीक हो गए, हालांकि उनकी पत्नी को ठीक होने में एक माह लगा लेकिन उनके साथ एक अजीब सा चमत्कार हुआ।
हैरान करने वाली घटना
जहां भोपाल त्रासदी से पीड़ित लोगों की आने वाली पीढ़ी को भी इस गैस का दंश झेलना पड़ा था वहीं करीब एक वर्ष बाद प्रजापति के घर बेटी ने जन्म लिया, जिसका स्वास्थ्य उनके अन्य दोनों बच्चों से बेहतर था।
दवाई के तौर पर प्रयोग
हर प्रभावित स्थान पर 8-10 लोगों के समूह ने 40-50 जगहों पर लगातार अग्निहोत्र यज्ञ किया और इस यज्ञ की राख लोगों को दवा के तौर पर दी।प्रतिदिन सुबह-शाम अग्निहोत्र यज्ञ किया जाता और इसकी राख से बनाई जाने वाली दवाई पीड़ित लोगों की आंखों में डाली जाती।
बैरी रैथर
फरवरी 1985 में अमेरिका के रहने वाले बैरी रैथर भोपाल के लोगों की मदद करने के उद्देश्य से भारत आए और अग्निहोत्र यज्ञ के प्रभाव से इस कदर प्रभावित हुए कि स्वयं इस यज्ञ को करने के लिए तैयार हो गए।
रेडियोएक्टिव किरणें
वैज्ञानिकों ने इस मसले की जांच शुरू की कि कैसे मात्र एक यज्ञ करने से ही वातावरण में मौजूद रेडियोएक्टिव किरणें अपना प्रभाव खो बैठती हैं। पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों को लगता था कि जरूर यज्ञ में बेहद प्रभावी केमिकल का प्रयोग किया जाता है।लेकिन फिर उन्होंने सोचा अगर यह सिर्फ एक केमिकल प्रॉसेस है तो किसी भी रूप में परमाणु के नाभिक को बदलना मुश्किल है इसलिए यह केमिकल का कमाल तो नहीं हो सकता।
पिछले कुछ सालों में कई लेख प्रकाशित हुए जो पूरी तरह ‘कोल्ड फ्यूजन’ अर्थात लैब के अंदर सामान्य हालातों में अणुओं को फ्यूज करने पर आधारित थे। तब जाकर वैज्ञानिकों को यह यकीन हुआ कि हां, वाकई अणुओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।इस प्रक्रिया के दौरान अणु मिलकर एक नए तत्व का सृजन करते हैं और अंततः उनका दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है।
हवन
अग्निहोत्र यज्ञ भी इसी विधा का एक रूप है, जिसके अंतर्गत अग्निहोत्र यज्ञ को संचालित करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगें हवन की ज्वाला को प्रभावित करती हैं।
हालांकि वर्तमान समय के मद्देनजर यह कहा जाता है कि 4-5 या इससे अधिक लोग समूह बनाकर वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए इस यज्ञ को अंजाम दे सकते हैं लेकिन उनका तरीका वैदिक नहीं होता। इस हवन को मात्र 15 मिनट में संपन्न कर लिया जाता है। परंतु आज से करीब हजारों साल पहले केरल के नंबूदरी ब्राह्मण इस यज्ञ को करते थे और आज भी वे पूरी वैदिक रीति से अग्निहोत्र यज्ञ करते हैं।
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