इस पोस्ट के माध्यम से एक कट्टर मुसलमान अली सोहराब जो कहना चाह रहे हैं या जो इनके भाव है वो समझना इतना कठिन नहीं है.. हां किसी को भाईचारे का कुछ ज्यादा हो नशा चढ़ा हो तो बात अलग है। अंतिम लाइन पर ध्यान केंद्रित कीजिए "वक्त आने पर वो जानवरों को आसानी से जीबह कर लें".. अब यहां वक्त आने से क्या तात्पर्य है और जानवर किसके लिए कहा है बस इतना ही समझना है
अब सवाल उठता है को क्या ये वाकई एक पर्व है या किसी एजेंडे का हिस्सा? क्या इस पर्व के माध्यम से कोई साइलेंट प्रैक्टिस की जा रही है? हिंदुओं को इस सत्य को समझना चाहिए और कम से कम अपने आप को और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के प्रश्न पर गहराई से विचार करना चाहिए... अन्यथा "वक्त आने पर ये तो "जानवरों" को जिबह करेंगे ही".