🔏 लेखक : पंकज सनातनी
शमीम- भाईजान बकरीद आने वाली है और आपको हमारे घर पर होने वाली दावत में शरीक होना ही पड़ेगा इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा।
मैं- वो सब तो ठीक है मियां पर यह तो बताओ कि बकरीद मनाते क्यों हैं…?
शमीम- भाईजान बहुत पहले एक हजरत इब्राहिम हुए थे जिनका अल्लाह पर ईमान बहुत पुख्ता था और जिन्होंने अल्लाह के कहने पर अपनी सबसे प्यारी चीज यानि अपने बेटे की कुर्बानी दी थी और अल्लाह ने खुश होकर उनके बेटे को फिर से जिंदा कर दिया था। तो उसी की याद में हम भी अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देते हैं।
मैं- अच्छा मतलब आप भी अपने बेटे या किसी और करीबी की कुर्बानी देते हो इस दिन…?
शमीम- लाहौल विला कुव्वत कैसी बातें करते हो भाईजान बेटे की कुर्बानी कैसे दे दें हम…? हम तो किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं इस दिन।
मैं- क्यों समस्या क्या है इसमें…? अगर आपका ईमान पुख्ता है तो अल्लाह आपके बेटे को फिर जिंदा कर देगा।
शमीम- अरे ऐसा कोई होता है भाईजान।
मैं- क्यों आपका ईमान पुख्ता नहीं है क्या…?
शमीम- अरे नहीं भाईजान हमारा ईमान तो एकदम पुख्ता है।
मैं- तो फिर क्या अल्लाह के इंसाफ पर शुबहा है कि वो बाद में मुकर जाएगा और बेटे को जिंदा नहीं करेगा…?
शमीम- तौबा-तौबा हम अल्लाह पर शुबहा कैसे कर सकते हैं…?
मैं- अल्लाह पर भी भरोसा है। ईमान भी पुख्ता है। फिर बेटे की कुर्बानी क्यों नहीं देते…? या फिर आपको सबसे प्यारा वो जानवर है जिसकी कुर्बानी देते हो…?
शमीम- नहीं…! नहीं…! भाईजान हमें सबसे प्यारा हमारा बेटा ही है। भला बकरीद से कुछ दिन पहले बाजार से खरीदा कोई जानवर कैसे हमें हमारे बेटे से ज्यादा प्यारा हो जाएगा आप ही बताओ…?
मैं- तो मतलब आप अल्लाह से भी फरेब कर रहे हो। पैसे देकर खरीदे जानवर को औलाद से भी प्यारा बताकर अल्लाह को उसकी कुर्बानी दे रहे हो। यह तो बड़ी शर्म की बात है।
शमीम- छोड़ें जनाब यह आपकी समझ में नहीं आएगा क्योंकि आप काफिर हो। चलते हैं हमारी नमाज़ का वक्त हो गया।
👉 बकरीद / बड़ी ईद / ईद-उल-अजहा
(1) ईद-उल-अजहा (बकरीद) का अर्थ है कुर्बानी वाली ईद। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरा, भेड़, गाय, भैंस, ऊंट या किसी अन्य पशु की कुर्बानी देते हैं (सिर तन से जुदा)
2) बकरीद का सम्बंध अब्राहम से है, अब्राहम को अरबी भाषा में इब्राहीम कहा जाता हैं। अब्राहम को यहूदी मजहब, ईसाई मजहब और इस्लाम में एक पैगंबर माना गया है। इन तीनों मजहबों को इब्राहीमी मजहब कहते हैं।
(3)अब्राहम का जन्म लगभग 4000 वर्ष पहले हुआ था, अब्राहम ने यहूदी मजहब को आरंभ किया था। ईसाई मजहब और इस्लाम के आरंभ होने के सैकड़ों वर्षों पहले अब्राहम की मृत्यु हो गई थी।
- यहूदी मजहब 4000 वर्ष पुराना
- ईसाई मजहब 2000 वर्ष पुराना
- इस्लाम 1400 वर्ष पुराना
(4) इस्लाम में बकरीद की कहानी —
- इब्राहीम (अब्राहम) नींद में सोते हुए सपना देखते है कि अल्लाह की ध्वनि (आवाज) आती हैं जिसमें अल्लाह उसे कहते हैं जो तुम्हें सबसे प्रिय हो उसकी कुर्बानी दो। इब्राहीम नींद से जागते हैं और सपने को अल्लाह का आदेश मानते हैं। इब्राहीम को सबसे अधिक प्रिय अपना पुत्र इस्माइल था। वह इस्माइल को अल्लाह के लिए कुर्बान करने लिए उसे घर से बाहर किसी अन्य स्थान पर लेकर जाते है। इब्राहीम अपने बेटे इस्माइल को बता देते हैं कि वह अल्लाह के कहने पर उसकी कुर्बानी देने वाले है। इब्राहीम अपनी आँखों पर काली पट्टी बाँधकर कुर्बानी देते हैं और जब आँखों से पट्टी हटाते है तो बेटे के स्थान पर बकरा मरा हुआ होता है और इस्माइल जीवित हैं।
(5) बकरीद कहानी को सच माना जाए तो…
- (i) अल्लाह ने केवल अब्राहम (इब्राहीम) से अपने सबसे प्रिय की कुर्बानी मांगी थी, किसी अन्य से कुर्बानी नहीं मांगी थी।
- (ii) अब्राहम को अपना बेटा सबसे अधिक प्रिय था और वह अपने बेटे को कुर्बान कर रहे थे, फिर मुस्लिम बकरा या अन्य पशु की कुर्बानी क्यों देते हैं…? क्या सभी मु&लमानों को बकरा या पशु ही सबसे अधिक प्रिय है…?
क्या इब्राहीम के बाद मु&लमानों में ऐसा एक भी अल्लाह भक्त पैदा हुआ, जो अपने लड़के को कुर्बान कर देता। यहूदी और ईसाई भी इब्राहीम को मानते हैं लेकिन कभी कुर्बानी का त्यौहार नहीं मनाते। अर्थात कहने का आशय है कि पैगम्बर मोहम्मद ने 'ईद-उल-अजहा' की परंपरा मु&लमानों को हत्या की ट्रेनिग देने के लिए की थी। अब आप इसे कुर्बानी कहें या हत्या करने की ट्रेनिंग।
अभी तक आप ने हिन्दू धर्म की मान्यताओं को लेकर मजाक बनाने वाले मेसेज तो बहुत ही मजे लेकर पढ़े और फॉरवर्ड भी किये हैं अब इस मैसेज को भी फॉरवर्ड करो। देखता हूँ ये मेरे पास वापस आता है या नहीं। क्योंकि 100 करोड़ में से कोई तो होगा जो इसे मेरे पास दोबारा भेजेगा।
✍️ साभार
शेयर… शेयर… शेयर…