वे होटलों में दो प्रकार का भोजन परोसते हैं। एक मुसलमानों के लिए. दूसरा गैर-मुसलमानों के लिए है। गैर-मुस्लिमों के लिए तैयार भोजन में मल और मूत्र मिलाया जाता है। सुनिए एक वकील क्या कहता है...समय समय पर कहा जा रहा है कि कट्टरपंथी आबादी द्वारा संचालित किसी भी होटल, ढाबे या रेस्तरां में खाना न खाएं। सुनिए सुप्रीम कोर्ट के वकील क्या कहते हैं।
अब ये बातें कोई आम आदमी नहीं बोल रह अपितु एक वकील साहब ये बातें बता रहे है और अनेकों कारनामे तो दुनिया के सामने भी का जेहादी मानसिकता के आ चुके जहां...फिर भी हम नहीं सुधरेंगे?? हम कब बदलेंगे??? हम इस जेहादी मानसिकता का बहिष्कार कब करेंगे..?
साभार
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